हेल्थकेयर की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए शोध आधारित मेडिकल डिवाइस की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है।
हमारे पास इतनी क्षमता है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में हम आत्मनिर्भरता हासिल कर सकते हैं।
हमारे देश में सीएडी मौतों की एक बड़ी वजह है।
कोरोनरी आर्टरी डिजीज (सीएडी) भारत में मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक बन चुकी है। कोरोनरी आर्टरी डिजीज से तात्पर्य ऐसी बीमारी से है, जिसमें दिल तक रक्त सही तरह से नहीं पहुंच पाता है। ऐसा मुख्य रूप से हृदय तक रक्त पहुंचाने वाली धमनी में ब्लॉकेज या किसी अन्य खराबी के कारण होता है। हालांकि इसका इलाज संभव है, लेकिन यदि इलाज सही समय पर न किया जाए, तो वह किसी भी व्यक्ति की मौत का कारण बन सकता है।
हमारे देश में प्रति एक लाख की आबादी में से करीब 272 लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं और यह प्रति एक लाख पर 235 के वैश्विक औसत से अधिक है। सीएडी में आर्टरीज सिकुड़ जाती हैं या अवरुद्ध हो जाती हैं, जिसका कारण शारीरिक गतिविधियों का अभाव और भोजन संबंधी आदतों में बदलाव हो सकता है। कोरोनरी आर्टरी की जटिलताओं वाले रोगियों में डायबिटीज या मोटापा जैसी जीवनशैली से संबंधित रोगों के अलग-अलग लक्षण दिखाई देते हैं। हालांकि गंभीर मामलों के लिए, जिनमें रोगी कोरोनरी हार्ट डिजीज के उच्च जोखिम की शिकायत करते हैं, डॉक्टर विकल्प के तौर पर कार्डियक स्टेंट्स की सलाह देते हैं। उदाहरण के तौर पर प्लाक खुलने से हार्ट अटैक होता है, जिससे आंशिक रूप से बंद आर्टरी में रक्त का थक्का बन जाता है, जो रक्त के प्रवाह को अवरुद्ध करता है।
उल्लेखनीय है कि जैसे जैसे इंसान की उम्र बढ़ती है, वैसे वैसे उसकी धमनियों का सख्त होना और प्लाक का जमना संभावित है। लेकिन कुछ ऐसे कारक हैं, जिनमें व्यवहार, अवस्थाएं या आदतें शामिल हैं, उनसे सीएडी के विकसित होने की प्रक्रिया तेज हो सकती है। ऐसी दशा में अच्छी गुणवत्ता का स्टेंट जान बचा सकता है। इसलिए भारतीय रोगियों और उच्च गुणवत्ता के स्टेंट्स के बीच अंतर को दूर करना महत्वपूर्ण है, ताकि रोगी की सुरक्षा से कोई समझौता न हो। घरेलू विनिर्माताओं को विश्व में बनने वाले इन स्टेंट्स को मापदंड के तौर पर उपयोग में लाना चाहिए, ताकि गुणवत्तापूर्ण यंत्र बनाए जा सकें और इससे सही मायनों में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में योगदान दिया जा सकता है।
भारत में अलग-अलग रोगियों के लिए अलग-अलग तरह के स्टेंट्स हैं। जैसे ड्रग इलुटिंग स्टेंट्स और बेयर मेटल स्टेंट्स आदि। इन स्टेंट्स में अनूठी विशेषताएं होती हैं, जैसे स्ट्रेट थिकनेस, कोटिंग मैटेरियल की मैकेनिकल मजबूती और कोटिंग की मोटाई, जो उन्हें हृदय रोगों के उपचार के लिए खासतौर से बेहद उपयोगी बनाती हैं। कुछ स्टेंट्स बढ़ते चुनौतीपूर्ण मामलों के लिए होते हैं, जिनमें कई आर्टरीज होती हैं या आर्टरीज पूरी तरह से बंद होती हैं, जबकि अन्य स्टेंट्स ऐसे रोगियों के लिए बने होते हैं, जिन्हें डायबिटीज जैसी समस्याएं होती हैं
मेडिकल डिवाइस में नवाचार : मेडिकल डिवाइस के क्षेत्र में नई तकनीकी प्रगति गुणवत्तापूर्ण उपचार की प्रमुख नींव हैं।
वर्तमान समय में रोगियों के पास अधिकतम जानकारी होती है और वे गुणवत्तापूर्ण हेल्थकेयर चाहते हैं। रोगी कौन सा स्टेंट लगवाना चाहते हैं, इस बारे में डॉक्टरों को अलग-अलग विकल्प प्रदान करने में समर्थ होना चाहिए। इस संदर्भ में इस तथ्य पर ज्यादा जोर नहीं होना चाहिए कि उसका उत्पादन किस भौगोलिक क्षेत्र में किया गया है। रोगियों की नई पीढ़ी चिकित्सकीय मध्यस्थताओं की भारी मांग कर रही है। खासतौर से वे युवा, जिन्हें संबद्ध रोगों का ज्यादा जोखिम है, उनके लिए यह अत्यंत उपयोगी साबित हो सकती है। ऐसे में पारंपरिक बाजारों में प्रौद्योगिकी वाले नए वेरिएंट्स के मूल्यांकन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। पिछले दो दशकों में कार्डियोलॉजी के क्षेत्र में कोरोनरी एंजियोप्लास्टी जैसी मध्यस्थताएं बड़े पैमाने पर बढ़ी हैं और ड्रग इलुटिंग स्टेंट्स का विकास बेहतर हुआ है।
अगर हम चाहते हैं कि भारत का मेडिकल डिवाइस उद्योग अपने वैश्विक समकक्षों जैसा बने, तो मूल्य-आधारित नवाचार को सबसे अधिक महत्व दिया जाना चाहिए। भारत सरकार को ऐसी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो नवाचार के लिए लाभकारी हों। कम गुणवत्ता के मेडिकल डिवाइस के उत्पादन के जोखिम को कम करने के जरूरी उपाय किए जाने चाहिए। ऐसा तभी संभव होगा, जब घरेलू विनिर्माता अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करेंगे और वैश्विक तथा भारतीय विनिर्माताओं दोनों के लिए एक ऐसा माहौल तैयार किया जाए, जिससे रोगियों को सुरक्षित और भरोसेमंद मेडिकल डिवाइस तक पहुंच मिल सके।
मेडिकल डिवाइसेज के विनिर्माण का केंद्र बनने की क्षमता : भारत सरकार को गुणवत्ता बनाम वहनीयता के बीच संतुलन भी बनाए रखना चाहिए, जहां रोगियों को इसके केंद्र में रखा जाए। इस तरह से, भारत के बाजार को उन्नत गुणवत्ता के स्टेंट्स मिल सकते हैं और घरेलू उद्योग को ऐसे गुणवत्तापूर्ण उत्पादों का उत्पादन करने का मौका मिलेगा, जो सख्त क्लिनिकल ट्रायल्स और शोध एवं विकास के बाद तय मानदंडों का पालन करने वाले होंगे। इन कदमों से भारत समूचे विश्व में मेडिकल डिवाइस के विनिर्माण केंद्रों में से एक बनने के अपने सपने को पूरा कर पाएगा।
मेडिकल डिवाइस के उद्योग में मानक बनने के लिए एक कार्डियक स्टेंट को बुनियादी मापदंडों जैसे सुरक्षा, क्षमता और रोगी के उत्कृष्ट परिणामों का पालन करने वाला होना चाहिए। भारत सरकार, मेडिकल डिवाइस उद्योग और चिकित्सा पेशेवरों को ऐसे स्टेंट्स के विकास में योगदान देना चाहिए, जो गुणवत्ता जांच के प्रोटोकॉल का पालन करता हो। इस तरह से, भारत एक मजबूत हेल्थकेयर सिस्टम बना सकता है, जो उन्नत तकनीकी समाधानों के साथ रोगियों की वर्तमान समस्याओं से संबंधित जरूरतों को पूरी करने वाला हो। (लेखक कार्डियोलॉजिस्ट हैं-डॉ. टी एस क्लेर।)