उत्तराखंड की धर्मनगरी हरिद्वार हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है. सालभर देश के अलग अलग राज्यों और विदेशों से हिंदू धर्म के लोग हरिद्वार में मोक्ष पाने की कामना को लेकर यहां धर्म, कर्म और गंगा में आस्था की डुबकी लगाने आते हैं. हरिद्वार में कई धार्मिक स्थल है, जो प्राचीन है. हरिद्वार को ‘हरी का द्वार’ के नाम पूरे जगत में जाना जाता है, जबकि इसका प्राचीन नाम ‘मायापुरी’ है. हरिद्वार देश की सात पुरी में से एक है, इसलिए हरिद्वार धर्मनगरी के नाम से भी विश्व विख्यात है.

वैसे तो हरिद्वार को हरद्वार ‘हर का द्वार’ यानी भगवान शिव के द्वार के नाम से भी जाना जाता है. यहां भगवान शिव के बहुत से मंदिर होने के साथ साथ उनकी ससुराल भी है. ब्रह्मांड के सबसे पहले राजा और ब्रह्मा के सबसे बड़े मानस पुत्र राजा दक्ष की सबसे बड़ी पुत्री सती के साथ भगवान शिव की शादी हुई थी. हरिद्वार की सबसे प्राचीन नगरी कनखल भगवान शिव की ससुराल है.

धार्मिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मांड में भगवान शिव और माता सती की शादी सबसे पहली शादी थी. कहा जाता है कि सृष्टि शुरू होने से पहले भगवान शिव और माता सती की शादी हरिद्वार की प्राचीन नगरी कनखल में हुई थी. भगवान शिव के बाद ही विष्णु, ब्रह्मा और अन्य देवी देवताओं की शादी हुई थी. माना जाता है कि भगवान शिव की बारात कैलाश से चलकर हरिद्वार की प्राचीन नगरी कनखल में आई थी. भगवान शिव की शादी में ब्रह्मा, विष्णु व अन्य देवी-देवताओं समेत शिव के गण आए थे.

ब्रह्मांड में सबसे पहले हुई भगवान शिव की शादी को लेकर हमने दक्षेश्वर महादेव मंदिर के व्यवस्थापक महंत विश्वेश्वर पुरी (डॉ बाबा) से जाना. महंत विश्वेश्वर पुरी बताते हैं कि पूरे ब्रह्मांड में भगवान शिव और माता सती की शादी सबसे पहले हुई थी. कनखल भगवान शिव की ससुराल है, जहां पर सावन का पूरा महीना शिव वास करते हैं. सावन के महीने में दक्षेश्वर महादेव मंदिर में एक लोटा जल से अभिषेक करने पर ही भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं और मन में उत्पन्न सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं.