आज 8 अप्रैल को भारत के पहले स्‍वतंत्रता संग्राम के सेनानी मंगल पांडे की पुण्‍यतिथी है। अंग्रेजो के खिलाफ उन्‍होंने ही सबसे पहले देश की आजादी का बिगुल बजाया था। उस वक्‍त जो क्रांति हुई उसको इतिहास में 1857 की क्रांति के नाम से जानते हैं। 8 अप्रैल 1857 को अंग्रेजों ने उन्‍हें फांसी दे दी थी। इसके लिए अंग्रेजों को कलकत्‍ता से जल्‍लादों को बुलाना पड़ा था क्‍योंकि स्‍थानीय जल्‍लादों ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया था।

1857 की क्रांति की शुरुआत 29 मार्च को शुरू हुई थी। उस वक्‍त मंगल पांडे 34वीं बंगाल नेटिव इंफेंट्री के मातहत बैरकपुर में तैनात थे। उनकी बटालियन को एनफील्‍ड पी 53 राइफल दी गई थी जो एक .877 केलीबर की बंदूक थी। ये काफी मजबूत थी और इसका निशाना भी अचूक था। ब्राउन बैस राइफल के मुकाबले ये कहीं अधिक बेहतर थी। लेकिन इसमें लगने वाले कारतूस को दांत से काटकर खोलना होता था। इसके बाद इसको बंदूक की नली में डालना होता था। यहां पर उन्‍हें ऐसी कारतूस दी गई थी जिसके ऊपरी खोल पर चर्बी लगी होती थी जो कारतूस को सीलन से बचाती थी। इस कारतूस को लेकर जवानों के बीच में ये बात फैली हुई थी कि इसको बनाने में गाय और सूअर की चर्बी का इस्‍तेमाल किया जाता है।

इसकी जानकार होने पर मंगल पांडे ने इसका इस्‍तेमाल करने से इनकार कर दिया। उनकी देखा-देखी दूसरे जवानों ने भी इसका इस्‍तेमाल करने से इनकार कर दिया था। 29 माच 1857 के दिन बैरकपुर के परेड मैदान में मंगल पांडे ने अपने अफसर का आदेश मानने से न सिर्फ इनकार कर दिया बल्कि उसको घायल भी कर दिया था। इसके बाद उनके अधिकारी ने एक अन्‍य सैनिक को मंगल को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। लेकिन उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया।

मंगल पांडे ने भारतीय सैनिकों को अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंकने का एलान कर दिया और इस तरह से शुरू हुई 1857 की क्रांति की शुरुआत हुई। कहा जाता है कि एक बार मंगल पांडे ने खुद को खत्‍म करने की भी कोशिश की थी जिसमें वो घायल हो गए थे। मंगल पांडे को अंतत: गिरफ्तार कर लिया गया और छह अप्रैल 1857 को उनका कोर्ट मार्शल हुआ, जिसमें उन्‍हें दोषी करार देते हुए फांसी की सजा दी गई थी। 8 अप्रैल 1857 को उन्‍हें पेड़ से लटकाकर फांसी दे दी गई थी।

मंगल पांडे का जन्‍म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में 30 जनवरी 1831 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। हालांकि कुछ इतिहासकार उनका जन्‍म स्‍थान फैजाबाद के गांव सुरहुरपुर को बताते हैं। उनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था। सन 1849 में मंगल पांडे 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हो गए थे।