पूरी दुनिया में हर वर्ष करीब 1.03 अरब टन खाद्य उत्पादन बर्बाद हो जाता है। ये करीब 17 फीसद है। इसको लेकर संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें इसको लेकर चिंता जताई गई है। इतने भोजन से करोड़ों का पेट भर सकता है।
संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि दुनियाभर में हर साल 17 फीसद खाद्य उत्पादन बर्बाद हो जाता है। यह करीब 1.03 अरब टन होता है। यह बर्बादी पिछली रिपोर्टो से कहीं अधिक है। हालांकि इसकी सीधी तुलना मुश्किल है क्योंकि इसके आकलन की अलग-अलग पद्धतियां हैं और कई देशों में आंकड़ों का अभाव है।
ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता ब्रायन रो ने कहा कि आकलन में सुधार से प्रबंधन में सुधार किया जा सकता है। ज्यादातर बर्बादी या उसका 61 फीसद घरों में होती है जबकि खाद्य सेवाओं में यह बर्बादी 26 फीसद और फुटकर में 13 फीसद है। संयुक्त राष्ट्र विश्वभर में खाद्य बर्बादी कम करने के प्रयासों में जुटा है और शोधकर्ता भी बर्बादी का आकलन करने के काम में लगे हैं, इसमें उपभोक्ताओं तक पहुंचने से पहले बर्बाद होने वाले खाद्य पदार्थ शामिल हैं।
संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 में 930 करोड़ टन खाना कचरे में बर्बाद किया गया। आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2030 तक खाने की बर्बादी को कम करने का संकल्प लिया है। यूएन एनवायरमेंट प्रोग्राम और पार्टनर ऑगेनाइजेशन डब्ल्यूआरएपी के सहयोग से फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2021 में ये बातें कही गई हैं। इसमें दुनिया को इस खतरे से आगाह भी किया गया है।
यूएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि खराब किया गया ये भोजन भी खेतों में ही उगता है और सप्लाई चेन के माध्यम से बाजारों और फिर ग्राहकों तक पहुंचता है। इसके बाद इसको खाया नहीं जाता है और इसको कचरे के डिब्बे में फेंक दिया जाता है। जबकि इस भोजन से करोड़ों लोगों का पेट भरा जा सकता है। इस रिपोर्ट को बनाते समय यूएन ने दुनिया के देशों को उस तकनीके के बारे में भी बताया है जिससे वो अपने यहां पर खराब होते खाने का सटीक अनुमान लगा सकते हैं।
यूएनईपी के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर इंगर एंडरसन का कहना है कि यदि हम क्लाइमेट चेंट और प्राकृतिक संसाधनों के नुकसान के प्रति अपनी जिम्मेदारी को नहीं समझेंगे तो इसका खामियाजा भी एक दिन हम ही को उठाना होगा। दुनिया के हर देश और हर देशवासी को इस तरफ ध्यान देना होगा कि अन्न का एक दाना भी खराब न होने पाए। खाद्य उत्पादन के बेकार करने में सबसे आगे अमीर देश हैं।