कांग्रेस के लिए कांटे का काम करेगा उत्तर-दक्षिण पर राहुल का नया बयान

केवल उत्तर भारत के ही कुछ राज्यों में सीमित कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का उत्तर भारतीय राजनीति पर नया बयान पार्टी को भारी पड़ सकता है। उन्होंने उत्तर भारत की राजनीति को सतही और नीरस करार दिया था। इससे एक तरफ जहां पार्टी के अंदर असंतोष और राहुल गांधी के कामकाज के तरीके पर विरोध को और हवा मिलेगी। वहीं उनकी बहन और उत्तर प्रदेश की प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

उत्तर प्रदेश चुनाव अब जबकि महज एक साल दूर है, भाजपा केरल में दिए गए राहुल के इस बयान को हर एक तक पहुंचाएगी। कांग्रेस ने हालांकि राहुल के बयान का बचाव करते हुए कहा कि वह मुद्दों की राजनीति की बात कर रहे हैं। लेकिन कांग्रेस के लिए उत्तर भारत के लोगों को यह समझाना बहुत मुश्किल होने वाला है कि क्या वह उत्तर भारतीयों की समझ पर सवाल खड़े कर रहे हैं या फिर वह यह मानते हैं कि इससे पहले उत्तर भारत में कांग्रेस को मिला समर्थन भी किसी बदलाव के लिए या मुद्दों के लिए नहीं था।

कुछ दिन पहले केरल में पंचायत व स्थानीय निकास चुनावों में कांग्रेस का पस्त हाल भी क्या इसीलिए था कि वहां के लोग मुद्दों की बात करते हैं। यह नतीजे तब आए जबकि वहां की वामपंथी सरकार पर भ्रष्टाचार के कई मामले थे। केरल से लोकसभा में बड़ी जीत हासिल करने वाली कांग्रेस की यह दशा क्यों हुई क्या इसे राहुल नहीं समझ पाए।

बात इतनी ही नहीं है। राहुल के नए बयान ने जहां यह स्पष्ट कर दिया कि अमेठी पर परिवार का पारंपरिक दावा खत्म हो गया है वहीं दूसरी पारंपरिक सीट रायबरेली में भी कांटे बिछा सकता है। दरअसल यह माना जा रहा है कि अगले लोकसभा चुनाव में रायबरेली से सोनिया गांधी की जगह प्रियंका दावेदार होंगी। लेकिन अब उनसे सवाल पूछा जाएगा कि वह अपने भाई राहुल के बयान से सहमत हैं या नहीं।

ध्यान रहे कि प्रियंका पिछले कुछ महीनों में लगातार मंदिर भ्रमण भी कर रही हैं और गंगा स्नान भी। वे स्थानीय राजनीति से तालमेल बिठा रही हैं और ऐसे में राहुल गांधी का बयान अड़चन पैदा कर सकता है। राहुल के बयान पर सफाई न सिर्फ प्रियंका बल्कि कांग्रेस के हर उम्मीदवार को देनी पड़ सकती है।

भाजपा ने अपनी मंशा साफ कर दी है। राहुल के बयान के तत्काल बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री धर्मेद्र प्रधान से लेकर स्मृति ईरानी और पार्टी प्रवक्ताओं ने राहुल के इस बयान को तोड़ो और राज करो की राजनीति ठहरा दिया है। बताया जाता है कि भाजपा नेता और कार्यकर्ता इसे जमीन तक पहुंचाने से नहीं चूकेंगे।

स्मृति ईरानी ने तो सीधे सीधे ‘एहसान फरामोश’ करार देते हुए यह याद दिला दिया कि जिस उत्तर भारत से उनके परनाना पंडित नेहरू, दादी इंदिरा गांधी, पिता राजीव गांधी और मां सोनिया गांधी समेत खुद प्रतिनिधित्व मिला उसे राजनीति की खातिर सतही और नीरस ठहरा दिया।

कुछ दिन पहले ही पुडुचेरी के रूप में दक्षिण का एकमात्र राज्य भी कांग्रेस के हाथ से छूट गया। पार्टी के असंतुष्ट इसे भी सीधे तौर पर राहुल के नेतृत्व से जोड़ने का अवसर ढूंढ़ रहे हैं। ऐसे में नया बयान आग में घी का काम कर सकता है। पांच राज्यों के चुनाव के बाद पार्टी अध्यक्ष का चुनाव भी होना है। माना जा रहा है कि उस अवसर पर भी पार्टी के अंदर घमासान होगा और असंतुष्ट वरिष्ठ नेताओं की ओर से राहुल की क्षमताओं पर सवाल खड़ा किया जा सकता है।