पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में बढ़त बनाने की कोशिश में जुटे राजनीतिक दलों और गठबंधन के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है। लोकसभा चुनाव की सफलता के बाद भाजपा सरकार बनाने के मंसूबे बांध रही है, वहीं सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस अपने जमीनी आधार को बरकरार रखने में जुटी हुई है। लगभग तीन दशक तक सत्ता में रहने वाली माकपा भी इस चुनाव में कांग्रेस के साथ अपनी खोई ताकत वापस हासिल करने की कोशिश में है।
पश्चिम बंगाल का आगामी विधानसभा चुनाव त्रिकोणीय संघर्ष में उलझता जा रहा है। राज्य में विभिन्न दलों में तोड़फोड़ कर अपनी ताकत बढ़ा रही भाजपा को सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस से तो जूझना ही पड़ रहा है, कई क्षेत्रों में उसे माकपा और कांग्रेस के गठबंधन की चुनौती का भी सामना करना पड़ सकता है। तृणमूल अभी भी राज्य की सबसे ताकतवर पार्टी है और उसे ममता बनर्जी के जुझारूपन पर भरोसा है। दूसरी तरफ भाजपा, तृणमूल कांग्रेस में लगातार सेंध लगाकर माहौल को बदलाव के पक्ष में खड़ा करने में जुटी हुई है।
भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के साथ कांग्रेस और माकपा का गठबंधन इस बार सत्ता समीकरणों में आहम है। क्योंकि तृणमूल कांग्रेस के कमजोर होने पर लाभ केवल भाजपा को ही नहीं मिलेगा, बल्कि कई सीटें कांग्रेस और माकपा गठबंधन को भी जा सकती हैं। यही वजह है कि भाजपा अब उन क्षेत्रों में भी अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रही है, जहां माकपा और कांग्रेस मजबूत हैं।
पार्टी के एक प्रमुख नेता ने कहा है कि चुनाव में विरोधियों को कभी भी कमजोर नहीं मानना चाहिए। दरअसल, भाजपा में आए अधिकांश नेता दूसरी विचारधारा और संस्कृति से आए हैं, इसलिए पार्टी को उनको अपने साथ जोड़े रखने में भी समस्याएं आ सकती हैं। बता दें कि पश्चिम बंगाल में अप्रैल-मई में विधानसभा चुनाव होने हैं।