गुजरात के लिए औद्योगिक विवाद अधिनियम में कुछ संशोधनों को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने स्वीकृति दे दी है। इस संशोधन में कर्मचारियों की छंटनी, खर्च में कमी, तालाबंदी और मुआवजे की रकम को लेकर प्रक्रिया के सरलीकरण के प्रावधान किए गए हैं। इस संशोधन में उद्योगों पर पड़ने वाले बोझ को कम करने की सिफारिश की गई थी। औद्योगिक विवाद (गुजरात संशोधन) विधेयक 2020 राज्य विधानसभा ने 22 सितंबर, 2020 को पारित कर दिया था। इसे एक जनवरी को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल गई है। यह जानकारी गुजरात के अतिरिक्त मुख्य सचिव विपुल मित्रा ने दी है। संशोधन का उद्देश्य कारोबार को सरल बनाने के लिए सुधारों को लागू करना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुधार संबंधी कदमों को गुजरात ने मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के नेतृत्व में आगे बढ़ाया है।
औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के अनुसार 100 या इससे ज्यादा श्रमिकों वाले कारखाने को कर्मचारियों की छंटनी या तालाबंदी से पहले राज्य सरकार की अनुमति लेनी होती थी। लेकिन संशोधन के बाद यह नियम 300 या इससे ज्यादा कर्मचारियों वाले कारखाने पर लागू होगा। इससे कम कर्मियों वाले कारखाने सुविधा अनुसार छंटनी या तालाबंदी के लिए स्वतंत्र होंगे। पहले छंटनी के समय कर्मचारी को उसकी सेवा अवधि के प्रत्येक वर्ष के हिसाब से 15 दिन का वेतन देने का प्रावधान था। अब कर्मचारी अपने आखिरी तीन महीने के सेवाकाल में मिले वेतन के बराबर धनराशि मुआवजे के रूप में पाने का भी हकदार होगा। पहले छंटनी के दायरे में आने वाले कर्मचारी को तीन महीने का नोटिस या वेतन देना अनिवार्य था। लेकिन अब सिर्फ तीन महीने के नोटिस के बाद यह कार्य किया जा सकेगा।
मित्रा के अनुसार, सुधारों का उद्देश्य उद्योगों पर से बोझ कम करना है। ऐसा राज्य की उद्योगों को बढ़ावा देने और निवेश को आकर्षित करने की नीति के तहत किया गया। निवेश होने और नए उद्योग खुलने से प्रदेश में रोजगार भी बढ़ेंगे। कोविड-19 महामारी ने उद्योगों की स्थिति पर विपरीत असर डाला है। इसलिए तरक्की की रफ्तार को बढ़ाने के लिए सरकार पर सुधार उपायों को लागू करने की जिम्मेदारी है। श्रम कानूनों में इन सुधारों से नीति उद्योगों के लिए सुविधाजनक, त्वरित निर्णय लेने वाली और दक्ष श्रमिकों के लिए बेहतर बनेगी। इससे गुजरात के प्रति नए उद्योग आकर्षित होंगे। साथ ही, श्रमिकों के हितों की भी पूर्ति होगी। औद्योगिक विवाद अधिनियम केंद्र सरकार का कानून है। किसी राज्य को इसमें संशोधन के लिए विधानसभा में पारित विधेयक को राष्ट्रपति का अनुमोदन आवश्यक होता है।