सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में आरोप लगाया गया था कि चुनावी बॉन्ड के जरिए सत्ताधारी पार्टी को चंदे के नाम पर रिशवत देने का खेल चल रहा है जिसे रुकना चाहिए। हालांकि चुनावी बॉन्ड के जरिए किसी एक दल को नहीं बल्कि सभी पार्टियों को चंदा मिलता है।
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी में विधानसभा चुनावों से पहले 1 अप्रैल से चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है।चुनावी बॉन्ड (इलेक्टोरल बॉन्ड) शुरुआत से विवादों में रहे हैं। इनके दुरुपयोग का मुद्दा उठाता रहा है। इससे पहले बुधवार को कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए चुनावी बॉन्ड के दुरुपयोग को लेकर केंद्र सरकार से सवाल पूछा था।
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में आरोप लगाया गया था कि चुनावी बॉन्ड के जरिए सत्ताधारी पार्टी को चंदे के नाम पर रिशवत देने का खेल चल रहा है, जिसे रुकना चाहिए। हालांकि, चुनावी बॉन्ड के जरिए किसी एक दल को नहीं, बल्कि सभी पार्टियों को चंदा मिलता है।
कोर्ट ने पूछा- क्या चुनावी बॉन्ड पर कोई नियंत्रण है?
इससे पहले पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी बॉन्ड के जरिये लिए जाने वाले फंड का आतंकवाद जैसे गलत कार्यो में दुरुपयोग होने की आशंका को लेकर केंद्र सरकार से सवाल पूछा था। सुप्रीम कोर्ट ने जानना चाहा कि क्या इस फंड का उपयोग किए जाने पर कोई नियंत्रण है?
कैसे रोका जाए चुनावी बॉन्ड का दुरुपयोग
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल से कहा कि सरकार को देखना चाहिए कि चुनावी बॉन्ड से प्राप्त धन का इस्तेमाल आतंकवाद जैसे गैरकानूनी उद्देश्यों के लिए किए जाने से किस तरह रोका जाए। पीठ में जस्टिस एएस बोपन्ना और वी रामासुब्रह्मणियन भी शामिल थे। अदालत ने कहा कि इस धन का इस्तेमाल किस तरह किया जाएगा, इसको लेकर सरकार का किस तरह का नियंत्रण है? अदालत ने इस सिलसिले में दायर एक याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। याचिका में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले सरकार को चुनावी बांड खोलने से रोकने का निर्देश देने की मांग की गई है। पीठ ने कहा कि फंड का दुरुपयोग किया जा सकता है। सरकार को इस मामले को देखना चाहिए।