कई बार हमें अपने ज्ञान धन संपदा पर बहुत ही घमंड होता है। हम अपने आगे सभी को तुच्छ समझने लगते हैं। दूसरों का उपहास करना और उनको नीचा दिखाने की आदत मन में घर कर लेती है।
कई बार हमें अपने ज्ञान, धन, संपदा पर बहुत ही घमंड होता है। हम अपने आगे सभी को तुच्छ समझने लगते हैं। दूसरों का उपहास करना और उनको नीचा दिखाने की आदत मन में घर कर लेती है। जागरण अध्यात्म में आज हम आपको एक प्रेरक कथा के बारे में बता रहे हैं। यदि आप भी लोगों को नीचा दिखाने का काम करते हैं, तो इस आदत को बदल लें। जो दूसरों को नीचा दिखाता है, उसके अंदर क्या होता? यह आप इस कथा के माध्यम से जान सकते हैं।
एक चीनी कवि सू तुंग-पो को राजदरबार में राज कवि की पदवी प्राप्त थी, इस बात का उन्हें अभिमान था। वहीं एक बौद्ध संत भी थे बुद्धस्तंप, जो अपने दर्शन-चिंतन की वजह से जाने जाते थे। एक दिन सू बौद्ध मंदिर गए। वहां उन्होंने बुद्धस्तंप नाम के एक बौद्ध संत के साथ ध्यान का अभ्यास किया।
चलते समय सू ने संत से पूछा, ‘मैं ध्यान करता हुआ कैसा दिखता हूं?’ बुद्धस्तंप ने कहा, ‘आप अत्यंत शांत, स्वस्थ और सुंदर लगते हैं। साक्षात बुद्धस्वरूप।’ यह सुनकर सू बहुत खुश हो गये। बुद्धस्तंप ने भी सू से पूछा, ‘और मैं ध्यान करते समय कैसा लगता हूं?’ सू ने बुद्धस्तंप को नीचा दिखाने के उद्देश्य से कहा, ‘आप तो ध्यान करते हुए बिल्कुल गोबर के ढेर जैसे लगते हैं।’
बुद्धस्तंप उनकी बात सुनकर मुस्कुरा दिए। इससे सू ख़ुशी से फूला न समाये। शाम को यह बात उन्होंने पत्नी को बताई, तो वह बोलीं, ‘आपने बुद्धस्तंप को नीचा नहीं दिखाया है, एक बार फिर आप नीचे होकर लौटे हैं।’ सू बोले, ‘यह क्या कह रही हो। बुद्धस्तंप मेरी बात से निरुत्तर रह गये। मैं भला कैसे हार सकता हूं?’
पत्नी ने कहा, ‘बुद्धस्तंप ने तुम्हारे अंदर बुद्ध की छवि देखी, इसका अर्थ है कि उनका हृदय बुद्ध को प्राप्त हो चुका है जबकि तुम्हारे हृदय में जो भरा हुआ था, वही तुम्हें बुद्धस्तंप में दिखाई दिया। शायद इसीलिए बुद्धस्तंप मुस्कुराए थे।’
कथा का सार : आप अच्छाई को अपनाएंगे, तो आपको हर जगह अच्छाई दिखेगी, वहीं अगर बुराई को अपनाएंगे, तो आपको बुराई ही नजर आएगी।