गुजरात के पूर्व सीएम शंकर सिंह वाघेला फिर पाला बदलने के मूड में नजर आ रहे हैं। वाघेला की फिर से कांग्रेस में शामिल होने की अटकलें हैं। हालांकि प्रदेश कांग्रेस आलाकमान तथा शंकर सिंह वाघेला गुट की ओर से इस बात को लेकर कोई स्पष्ट राय व्यक्त नहीं की जा रही है, लेकिन वाघेला के स्वभाव को देखते हुए उनकी कांग्रेस में वापसी से इनकार नहीं किया जा सकता। वाघेला 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस से अलग होकर जन विकल्प के नाम से एक मोर्चा खड़ा किया था। चुनाव में उनके सभी 120 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। इस दौरान भी वाघेला सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी के प्रति आक्रामक थे तथा पिछले कुछ माह से डेमोक्रेटिक प्रजाशक्ति नाम से नया राजनीतिक दल बनाने की घोषणा के बाद भी भाजपा नेतृत्व को लगातार निशाने पर ले रहे थे।
गुजरात में भारतीय जनता पार्टी तथा इंडियन नेशनल कांग्रेस के अलावा किसी भी तीसरे दल को बीते दो दशक में कोई खास सफलता हासिल नहीं हो पाई। कभी संघ की पाठशाला में राजनीति के गुर सीखने वाले शंकर सिंह वाघेला ने 1996 में भाजपा के साथ बगावत कर अपना अलग ग्रुप बना लिया था। कांग्रेस की मदद से वह मुख्यमंत्री भी बन गए, लेकिन एक साल से अधिक सत्ता में नहीं रह सके थे। 2002 में वाघेला ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था। कांग्रेस ने उन्हें प्रदेश का अध्यक्ष बनाया तथा केंद्र में सत्ता में आने के बाद उनको केंद्रीय मंत्री पद से भी नवाजा, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले वाघेला मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी बनने की जिद पर अड़ गए, जिसके चलते उन्हें कांग्रेस छोड़नी पड़ गई थी। अगले साल गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसी माह होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव में भाजपा व कांग्रेस अपना दमखम दिखाने को पूरी तरह तैयार है। ऐसे में वाघेला की कांग्रेस में वापसी पार्टी में नई ऊर्जा का संचार कर सकती है। हालांकि प्रदेश भर में कांग्रेस के कई स्थानीय नेता व कार्यकर्ता टूटकर भाजपा में शामिल हो रहे हैं, लेकिन वाघेला के कांग्रेस में शामिल होने पर निश्चित तौर पर कांग्रेस के खेमे में एक बड़ा मत बैंक का जाने की भी संभावना है।