हर साल 25 जनवरी को हम राष्ट्रीय मतदाता दिवस के तौर पर याद करते हैं। इसे मनाए जाने के पीछे मकसद यह होता है कि देश के सभी जिम्मेदार नागरिक जिनकी उम्र 18 वर्ष हो चुकी है वो एक मतदाता के रूप में खुद को निर्वाचन आयोग में दर्ज कराएं और लोकतंत्र के उत्सव कहे जाने वाले चुनावों में बढ़चढ़ कर भागीदारी करें। ऐसे मौके पर कुछ घटनाएं… जहां व्यवस्था की खामियों को उजागर करती हैं तो सुधार की आवाज को भी बुलंद करती हैं। प्रस्तुत है छत्तीसगढ़ से एक ऐसी ही रिपोर्ट…
छत्तीसगढ़ की 66 पंचायतों में सरपंच नहीं
छत्तीसगढ़ में पंचायत चुनाव के एक साल बीतने के बाद भी 66 ग्राम पंचायत ऐसी हैं, जहां सरपंच का पद खाली है। दरअसल, ज्यादातर ग्राम पंचायतें अनुसूचित जाति या जनजाति के लिए आरक्षित हैं। मजे की बात है कि इन गांव में संबंधित जाति के उम्मीदवार ही नहीं रहते। ऐसी स्थिति में इन गांवों में बिना सरपंच के ही पंचायती सरकार का काम चल रहा है। मतदाता आरक्षण की व्यवस्था के कारण मतदाता अपना सरपंच नहीं चुन सके हैं।
874 आरक्षित वार्डों में कोई नामांकन नहीं
इतना ही नहीं, आरक्षण का ही परिणाम यह रहा है कि प्रदेश के 874 आरक्षित वार्डों में पंचों के लिए कोई नामांकन तक दाखिल नहीं हो पाया। एक साल बाद भी आयोग ने यहां दोबारा चुनाव कराने में दिलचस्पी नहीं ली। जानकारी के मुताबिक, इन गांवों के परिसीमन या गांव वालों के विस्थापित होने की वजह से इस तरह की नौबत आई है।
रायपुर में 415 सरपंच के पदों में दो गांव खाली
रायपुर में सरपंच के कुल 415 पद हैं। इनमें दो ग्राम पंचायतें खाली हैं। इसी तरह पंच के 6158 पदों में से 11 पद अभी तक खाली पड़े हुए हैं। प्रदेश के 28 जिलों में से ज्यादातर खाली पद रायपुर समेत कांकेर, कवर्धा, बेमेतरा, जगदलपुर व अन्य जिलों से हैं।
गांव में कोई एससी नहीं फिर भी आरक्षित
राजधानी से लगे गांवों में पंच और सरपंचों के पद आरक्षण के कारण खाली पड़े हुए हैं। अभनपुर विकासखंड के जौंदी ग्राम पंचायत में कार्यवाहक सरपंच के तौर पर काम कर रहे टोमन साहू बताते हैं कि गांव वालों के सहयोग से ही कुछ काम कर पाते हैं, बाकी गांव में कोई भी मतदाता एससी (अनुसूचित जाति) वर्ग का नहीं है। गांव में 12 वार्ड और 1094 मतदाता हैं। यहां की आधी आबादी ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) से है।
ओड़का में नहीं मिली महिला सरपंच
आरंग के ओड़का ग्राम पंचायत को ओबीसी महिला मुक्त रखा गया है। यहां कुछ महिलाओं ने चुनाव के दौरान नामांकन दाखिल किया था लेकिन बाद में किसी के पास प्रमाण-पत्र नहीं होने से नाम वापस लेना पड़ा। अब यहां जय डहरिया कार्यवाहक सरपंच का पद संभाल रहे हैं। जय डहरिया ने बताया कि ओबीसी महिला नहीं मिलने से यह नौबत बनी हुई है। आरंग के चटौद गांव में वार्ड 11 में पंच के लिए एक भी नामांकन नहीं आया। इसी तरह अभनपुर में एक, धरसींवा में दो और तिल्दा में एक पंच के लिए एक भी नामांकन नहीं मिला था।