हम अपने जीवन में कई ऐसे काम करते हैं, जो स्वयं के लिए आश्चर्य वाला हो सकता है। जब हमें उन घटनाओं के सकारात्मक पहलू के बारे में पता चलता है, तो फिर वही हमारे लिए प्रेरणा देने वाला बन जाता है। जागरण अध्यात्म में आज हम आपको एक बालक के साथ घटी रोचक घटना के बारे में बता रहे हैं, जिससे आप भी प्रेरणा ले सकते हैं। आइए पढ़ते हैं यह प्रेरक कथा।
एक नगर में एक बच्चा रहता था। वह पहली बार किसी पहाड़ी पर पहुंचा। पथरीले रास्ते से होकर पहाड़ी के शिखर तक पहुंचना, उसके लिए किसी सुखद आश्चर्य से कम न था। वह खुश होकर चिल्लाया- अरे वाह, मैं पहाड़ी पर पहुंच गया। तब पहाड़ी के दूसरी ओर से भी यही आवाज आई कि मैं पहाड़ी पर पहुंच गया। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। आखिर उसकी बात को दोहरा कौन रहा है? वह तो अकेला वहां तक पहुंचा था।
इसी उधेड़बुन में उसने फिर चिल्लाकर पूछा- पहाड़ी के दूसरी तरफ कौन है? तो उधर से भी यही आवाज गूंजी- पहाड़ी के पीछे कौन है। बच्चा भी आश्चर्य में पड़ गया। उस को लगा कि पहाड़ी की दूसरी तरफ से कोई उसकी नकल उतार रहा है। इस बात पर उसे गुस्सा आ गई। उसने क्रोध से कहा- तुम बहुत बुरे हो। उधर से भी यही आवाज आई। वह बोला- मैं तुमसे नफरत करता हूं।
वह जो भी बातें कहता था, बदले में उसे पहाडी की दूसरी छोर से वही बातें सुनने को मिलती थीं। पहाड़ी पर हुई इस घटना से वह थोड़ा आश्चर्यचकित था। वह नफरत करने वाली बात कहकर घर लौट आया। घर आकर उसने सारी घटना अपनी मां से बताई। बच्चे की बातें सुनकर उसकी मां मुस्कुराईं। उन्होंने बेटे को समझाने की सोची।
मां ने बेटे से कहा कि पहाड़ी पर दूसरी तरफ से आने वाली आवाज भी तुम्हारी ही थी। वहां पर कोई और नहीं था। मां ने बेटे को समझाया कि उस पहाड़ी पर जो भी बोलो, उसकी प्रतिध्वनि आती है। यह बात जानकर वह बच्चा बहुत खुश हुआ। वह अगले दिन सुबह ही पहाड़ी पर पहुंच गया और बोला- तुम बहुत अच्छे हो, तो उधर से भी यही आवाज आई। वह बोला- मैं तुमसे प्यार करता हूं। उधर से जब उसने अपनी ही आवाज सुनी, तो उसे बहुत अच्छा लगा।
कथा-मर्म : जीवन में भी प्रतिध्वनि होती है। हम जैसा व्यवहार दूसरों से करते हैं, वैसा ही व्यवहार हमारे साथ होता है।