केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि केंद्र सरकार ने किसान यूनियनों को एक प्रस्ताव भेजा था, जिसमें हम मंडियों, व्यापारियों के पंजीकरण और अन्य समस्याओं के बारे में उनकी आशंकाओं को दूर करने पर सहमत हुए थे। सरकार ने पराली जलाने और बिजली को लेकर कानूनों पर चर्चा के लिए भी सहमति दी था, लेकिन किसान यूनियन केवल कानूनों को निरस्त करने पर अड़े हुए हैं।
उन्होंने दोहराया कि सरकार कानूनों में संशोधन लाने के लिए तैयार है। भारत सरकार ने किसान यूनियन के साथ एक बार नहीं 9 बार घंटों तक वार्ता की, हमने लगातार किसान यूनियन से आग्रह किया कि वो कानून के क्लॉज पर चर्चा करें और जहां आपत्ति है वो बताएं। सरकार उस पर विचार और संशोधन करने के लिए तैयार है।
We had sent a proposal to farmer unions in which we agreed to address their apprehensions regarding mandis, traders' registration &others. Govt also agreed to discuss laws on stubble burning & electricity but unions only want repeal of the laws:Union Agriculture Minister NS Tomar pic.twitter.com/9lnaI7nTzE
— ANI (@ANI) January 17, 2021
केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि किसान यूनियन टस से मस होने को तैयार नहीं है, उनकी लगातार ये कोशिश है कि कानूनों को रद्द किया जाए। भारत सरकार जब कोई कानून बनाती है तो वो पूरे देश के लिए होता है, इन कानूनों से देश के अधिकांश किसान, विद्वान, वैज्ञानिक, कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लोग इन कोनूनों से सहमत हैं।
मंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से कानूनों को निरस्त करने के बारे में किसानों की मांग का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कानूनों के क्रियान्वयन को रोक दिया है तो मैं समझता हूं कि जिद का सवाल ही खत्म होता है। हमारी अपेक्षा है कि किसान 19 जनवरी को एक-एक क्लॉज पर चर्चा करें और वो कानूनों को रद्द करने के अलावा क्या विकल्प चाहते हैं वो सरकार के सामने रखें।
वहीं, भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा है कि सरकार जब तक कानून वापस नहीं लेती, किसान घर नहीं जाएंगे। कृषि मंत्री के बयान पर उन्होंने कहा कि क्लॉज पर चर्चा वो करेगा जिसे कानून में संशोधन कराना हो, ये हमारा सवाल है ही नहीं। सरकार को ये तीनों कानून खत्म करने पड़ेंगे।
12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगा दी। इसके साथ की कोर्ट ने 4 सदस्यों की एक कमेटी भी बनाई थी, जो कानूनों के संबंध में दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। कमेटी को निर्देशित किया गया है कि वह किसानों के साथ बातचीत कर दो महीने के भीतर कृषि कानूनों से संबंधित अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करे।