केंद्रीय सूचना आयोग ने एक याचिका खारिज करते हुए कहा कि राजनीतिक दलों के दानकर्ताओं का ब्योरा सार्वजनिक करने में कोई जनहित नहीं है। इसको लेकर केंद्रीय सूचना आयोग ने अपनी स्थिति साफ की है। चुनावी बांडों की बिक्री के ब्यौरे का मामला।
(सीआइसी) ने एक याचिका खारिज करते हुए कहा कि राजनीतिक दलों के दानकर्ताओं का ब्योरा सार्वजनिक करने में कोई जनहित नहीं है। आयोग ने पुणे के आरटीआइ कार्यकर्ता विहार दुर्वे की याचिका को खारिज करने के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआइ) की दलील का समर्थन किया।
सूत्रों के अनुसार दुर्वे ने एसबीआइ की उस शाखा से चुनावी बांडों की बिक्री का ब्योरा मांगा था जिसे इन बांड को बेचने का अधिकार हासिल है। एसबीआइ के सूचना देने से इन्कार करने के बाद दुर्वे ने केंद्रीय सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। यहां उन्होंने दलील दी कि एसबीआइ को जनता का हित कायम रखना चाहिए था, नाकि राजनीतिक दलों के हितों का ख्याल रखना चाहिए था।
उन्होंने कहा कि एसबीआइ पर किसी राजनीतिक दल की जिम्मेदारी नहीं है। उन पर किसी सरकारी या गैर सरकारी सेक्टर के बैंक को लाभ पहुंचाने का जिम्मा भी नहीं है। इसलिए उनके बीच विश्वास का संबंध नहीं है। दुर्वे ने कहा कि सूचना को पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक करने को कहा जा रहा है।
ध्यान रहे कि इलेक्टोरल बांड स्कीम के तहत एसबीआइ पर यह जिम्मेदारी है कि वह इन बांडों को खरीदने वालों की जानकारी को गुप्त रखे। उसे किसी भी मकसद से इसे किसी भी विभाग या प्रशासन से साझा करने का अधिकार नहीं है। दुर्वे की दलीलों को खारिज करते हुए सूचना आयुक्त सुरेश चंद्रा ने कहा कि दानकर्ता और लेने वाली की निजता का मामला है और इसका जनहित से कोई लेना-देना नहीं है।