म्यूचुअल फंड निवेश के तंत्र में हाल में एक बदलाव के बाद बैंक अकाउंट से पैसे कटने और यूनिट अलॉट होने के बीच कुछ समय लगने लगा है। इस अवधि में सिस्टम में अटकी हुई अपनी ‘सुस्त रकम’ को लेकर निवेशकों में चिंता देखने को मिलती है। निवेशक कई बार रोजाना के उतार-चढ़ाव के कारण चिंतित होते हैं। लंबी अवधि के मामले में यह सुस्त रकम बहुत बड़ा अंतर नहीं पैदा करती है। इस पर चिंतित होने की जरूरत नहीं है। हालांकि व्यवस्था को भी ऐसा बनाना होगा, जिसमें निवेशकों के सामने सभी बातें स्पष्ट हों।
कुछ निवेशकों ने हाल में ‘सुस्त रकम’ की समस्या का सामना किया है। ‘सुस्त रकम’ यानी ऐसा पैसा जो उनके बैंक अकाउंट से तो कट गया, लेकिन उस निवेश के बदले फंड अलॉट नहीं हो पाया। पिछले दिनों कुछ लोगों को पैसे कटने और आवंटन में 10 दिन तक का समय लग गया। इस अवधि तक सिस्टम में रुके हुए उस पैसे को ‘सुस्त रकम’ कहा जाता है।
दरअसल, हाल में म्यूचुअल फंड में निवेश के तंत्र में बड़ा बदलाव हुआ है। आपको यूनिट तब अलॉट होती है, जब फंड कंपनी को स्कीम के बैंक अकाउंट में आपकी रकम मिल जाती है। यूनिट अलॉट होने की एनएवी भी उसी दिन की होती है, जिस दिन यूनिट अलॉट होती है। यह व्यवस्था 31 जनवरी को ही सभी निवेशकों के लिए लागू की गई है। इसके पहले तक दो लाख रुपये से कम निवेश करने वाले निवेशक को उसी दिन की एनएवी पर आवंटन मिलता था, जिस दिन तीन बजे से पहले खरीद अनुरोध प्राप्त होता था।
असल में रकम के प्रवाह के बारे में सोचें तो यह अजीब लगेगा कि आपकी रकम फंड कंपनी तक पहुंचने से पहले ही फंड में आपका निवेश हो जाता था। जाहिर है कि इस बीच अगर एनएवी बढ़ जाती है, तो आपको कुछ रिटर्न मिलेगा। अब सवाल उठता है कि यह रिटर्न कहां से आया? जिस तरह से म्यूचुअल फंड काम करता है, उस हिसाब से आपको यह रिटर्न किसी दूसरे निवेशक से ही मिल सकता है, जिसने पहले से ही फंड में निवेश किया हुआ है। अगर एनएवी गिरती है, तो इसका उलटा भी उतना ही सच है।
नई व्यवस्था में इस पेच को खत्म किया गया है। अब आपका पैसा पहुंचने के बाद ही यूनिट अलॉट होती है। बहुत से निवेशक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि उतार-चढ़ाव वाले बाजार में एक दिन इधर-उधर होने से उनको मिलने वाली खरीद एनएवी में कुछ फीसद का अंतर हो सकता है। गणित के लिहाज से निश्चित तौर पर यह सही है। लेकिन यह लंबी अवधि के निवेश की भावना के खिलाफ है। लंबी अवधि की एसआइपी के रिटर्न पर यह मामूली असर डालता है।
इस बीच, निवेशकों की चिंता इसलिए भी बढ़ गई, क्योंकि संयोगवश इस बदलाव के तुरंत बाद पेमेंट की व्यवस्था संभालने वाले नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआइ) में कुछ तकनीकी दिक्कत पैदा हो गई। इस खामी के कारण रकम ज्यादा समय तक सिस्टम में अटकी रह जाती है। बड़ी अवधि में यह बहुत चिंता की बात तो नहीं है, लेकिन नियामकों को इस बारे में एक ऐसी व्यवस्था जरूर बनानी चाहिए, जहां निवेशकों को वादे के अनुरूप चीजें मिलें। अगर कोई बाधा हो, तो उन्हें सही जानकारी मिले। कारण जो भी हो, लेकिन बैंक अकाउंट से पैसे कटने के बाद 10 दिन फंड तक रकम नहीं पहुंचना, इसे व्यावहारिक नहीं कहा जा सकता। (लेखक वैल्यू रिसर्च ऑनलाइन डॉट कॉम के सीईओ हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)