बीते कुछ माह से रूस के अंदर छिड़ी एक राजनीतिक जंग को पूरी दुनिया देख रही है। ये जंग रूस में पुतिन सरकार के घोर विरोधी नेता एलेक्सी नवलनी और सरकार के बीच चल रही है। एलेक्सी नवलनी के देश वापसी के बाद जिस तरह से रूसी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार किया और सजा सुनाई उसके खिलाफ पश्चिमी देशों में रूस के प्रति गुस्सा दिखाई दे रहा है।
रूस में एलेक्सी के समर्थन में हुए आंदोलन को भी दबाने के लिए बल प्रयोग किया जा रहा है। इस घटना से पहले और बाद में रूस के ऊपर प्रतिबंधों को बढ़ाने को लेकर भी यूरोपीय संघ में मंथन हुआ है। कुछ देश रूस के ऊपर इन प्रतिबंधों को बढ़ाने के समर्थक हैं। बहरहाल, पश्चिमी देशों में चल रही इस कवायद के इतर रूस की पुतिन सरकार के ऊपर इन प्रदर्शनों का क्या कोई असर होगा। ये एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब जानना बेहद जरूरी है।
रूस की राजनीति पर नजर रखने वाली जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी स्थित सेंटर फॉर रशिया एंड सेंट्रल एशिया स्टडीज की प्रमुख प्रोफेसर अर्चना उपाध्याय का मानना है कि इन प्रदर्शना का पुतिन के राजनीतिक भविष्य पर कोई असर देखने को नहीं मिलेगा। उनके मुताबिक बीते कुछ वर्षों में पुतिन के खिलाफ इस तरह के प्रदर्शन काफी बढ़े हैं। इन पदर्शनों के पीछे भी एलेक्सी ही रहे हैं। इसके बावजूद वहां की सरकार को कुछ नहीं हुआ। पुतिन की सरकार पर संकट की बात करें तो वहां पर इसको लेकर न तो उनकी सरकार के खिलाफ किसी तरह का कोई अविश्वास प्रस्ताव आया है और न ही निकट भविष्य में वहां पर राष्ट्रपति चुनाव होने हैं।
रूस के इतिहास पर यदि नजर डाली जाए तो पता चलता है कि वहां पर एक मजबूत राष्ट्रीय नेतृत्व को जनता हमेशा स्वीकारती आई है। जार से लेकर लेनिन और स्तालिन और फिर बाद में मिखाइल गोर्बाचोव और अब पुतिन के दौर में यही देखने को मिला है। प्रोफेसर अर्चना के मुताबिक रूस में हो रहे प्रदर्शन और उसके खिलाफ पश्चिमी देशों की जुगलबंदी रूस के खिलाफ एक प्रोपेगेंडा से ज्यादा कुछ नहीं है।
उनका ये भी मानना है कि एलेक्सी को जहर दिए जाने की घटना के बाद उनका इलाज रूस में ही शुरू किया गया और उन्हें जर्मनी भेजने की इजाजत भी रूस की सरकार ने ही दी थी। इसके बाद जब एलेक्सी ने वापस आना चाहा तो रूस की सरकार ने इसकी भी इजाजत उन्हें दी। यदि रूस की सरकार का उनको जान से मारने के षड़यंत्र में कोई हाथ होता तो शायद वो ऐसा नहीं करती।