बंगाल में विधानसभा चुनाव की जंग तृणमूल और भाजपा के बीच स्पष्ट दिखाई दे रहा है। वहीं कांग्रेस-वाममोर्चा गठबंधन को उम्मीदें अभी भी कायम हैं। वामदलों का मानना है कि मुख्य मंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ लोगों में सत्ता विरोधी लहर है जिसका लाभ उन्हें राज्य में नए सिरे से खड़े होने में मिल सकता है।

वामदलों की यह उम्मीद पिछले दो चुनावों के नतीजों के उलट दिखती है। यदि 2016 के विधानसभा चुनाव और उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो वह स्पष्ट दिखाते हैं कि भाजपा ने कांग्रेस और वामपंथियों का सफाया कर राज्य में प्रमुख विपक्षी दल बनकर उभर चुका है।

2016 के चुनावों में तृणमूल को 44.91 फीसद और उसके बाद हुए लोकसभा चुनावों में 43.3 फीसद मत मिले। जबकि इन दो चुनावों में वामो के मत 19.75 फीसद से घटकर 6.33 फीसद रह गए। कांग्रेस के मत 12.25 से घटकर 5.67 फीसद रह गए। जबकि भाजपा 10 फीसद से बढ़कर 40.7 फीसद तक पहुंच गई। मतों का यह रुझान साफ बताता है कि भाजपा गैर तृणमूल मतों को हथियाने में कामयाब रही।

क्या आगामी विधानसभा चुनावों में भी यही स्थिति रहेगी या मतों का पैटर्न बदल जाएगा, इसे लेकर हर दल की राय अलग-अलग है। तृणमूल का मानना है कि उसके वोट प्रतिशत में ज्यादा बदलाव नहीं होगा। लेकिन वामदलों का मानना है कि यह चुनाव अलग है। क्योंकि इस बार तृणमूल के खिलाफ लोगों में नाराजगी है। नाराज मतदाता सीधे भाजपा की तरफ जाएगा, यह जरूरी नहीं है। इसका बड़ा फायदा कांग्रेस वामदलों के गठबंधन को होगा। क्योंकि उनका संगठन जमीन स्तर पर अभी भी मजबूत है जिसकी भाजपा के पास कमी है।

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