एआईएमआईए और भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल का चुनाव काफी मायने रखता है। भाजपा जहां ममता को हटाकर सत्ता पर काबिज होना चाहती है वहीं एआईएमआईएम पार्टी का मकसद यहां पर अपने को मजबूत करने से जुड़ा हुआ है।
भारतीय जनता पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और असदुद्दीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) के लिए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (/west Bengal Assembly Election 2021) काफी खास है। तीनों ही पार्टियों के लिए ऐसा होने की तीन बड़ी वजह हैं। टीएमसी की यदि बात करें तो वो सत्ता पर 2011 से काबिज है। टीएमसी ने वर्षों से यहां पर शासन करने वाली लेफ्ट सरकार को हराकर ये सत्ता हासिल की थी। ऐसे में इस जीत को बरकरार रखने की जिम्मेदारी भी उसके ऊपर सबसे अधिक है। वहीं भाजपा की बात करें तो वो वर्षों से यहां पर पैर जमाने की कोशिश कर रही है। हाल ही में हुए ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (GHMC Election) के चुनाव, और जम्मू कश्मीर में हुए डीडीसी चुनाव (Jammu Kashmir District Development Council Election 2021) में भाजपा को मिली कामयाबी से पार्टी काफी उत्साहित है। इसका फायदा वो पश्चिम बंगाल के चुनाव में भी उठाने की कोशिश कर रही है। वहीं तीसरी पार्टी एआईएमआईएम भी बिहार विधानसभा के चुनाव (Bihar Assembly Election 2021) में मिली कामयाबी से काफी उत्साहित है। भाजपा की तरह वो इसका फायदा पश्चिम बंगाल में उठाना चाहती है। यही वजह है कि पार्टी के मुखिया असदुद्दीन औवेसी (Asaduddin Owaisi) लगातार इसकी रणनीति पर काम कर रहे हैं।
गठबंधन के सहारे नैया पार लगाने की कोशिश
राज्य में पार्टी के अध्यक्ष जमीरउल हसन ने इन चुनावों के मद्देनजर दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में बताया कि इसमें पार्टी यहां की छोटी-छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन करना चाहती है। इस गठबंधन के सहारे एआईएमआईएम यहां पर पार्टी की नैया पार लगाने की कोशिश में लगी है। अपनी इस रणनीति को अंजाम तक पहुंचाने के मकसद से कुछ दिन पहले औवेसी कोलकाता भी आए थे। उनके मुताबिक राज्य के विधानसभा चुनाव सबसे बड़ा मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और एआईएमआईएम के बीच में ही होना है।
ममता की बड़ी भूल
हसन का कहना है कि औवेसी ने टीएमसी और राज्य की मुखिया ममता बनर्जी को साथ में आने का न्यौता दिया था, जिसको उन्होंने ठुकरा दिया। यह उनकी सबसे बड़ी भूल है। उनके मुताबिक हैदराबाद में औवेसी की पार्टी को मिली हार का असर पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव पर दिखाई नहीं देगा। इसके उलट बिहार विधानसभा चुनाव में मिली जीत का फायदा उन्हें जरूर यहां पर मिलेगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि राज्य के कई जिले बिहार से लगते हैं जहां की राजनीति एक दूसरे को काफी हद तक प्रभावित करती है। ऐसे में इसका फायदा भी उन्हें होगा।
भाजपा से होगी सीधी टक्कर
इस बातचीत के दौरान हसन ने उन दावों और खबरों को भी खारिज कर दिया जिसमें कहा जा रहा था कि एआईएमआईएम के इस चुनाव में उतरने का फायदा सीधेतौर पर भाजपा को होने वाला है। इन दावों के मुताबिक ऐसा करके औवेसी टीएमसी के ही वोट काटेंगे। हालांकि हसन ऐसा नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि पश्चिम बंगाल में मुस्लिम समुदाय के लोगों का विश्वास टीएमसी के ऊपर नहीं रहा है। वहीं टीएमसी के कई नेता भाजपा खेमे की तरफ आने को तैयार बैठे हैं। ऐसे में यदि वो लोग टीएमसी का रुख करते भी हैं तो इसकी कोई गारंटी नहीं है कि वो नेता भविष्य में भाजपा की गोद में जाकर नहीं बैठेंगे। उनके मुताबिक टीएमसी का प्रदर्शन राज्य में बीते एक दशक के दौरान निराशाजनक रहा है। वहीं औवेसी का दोस्ती का हाथ ठुकराकर ममता ने अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया है।
बड़ी रैली करने की योजना
हसन के मुताबिक आने वाले दिनों में औवेसी फिर राज्य का दौरा करेंगे। यहां पर पार्टी एक बड़ी रैली भी करने के बारे में विचार कर रही है। वहीं यदि एआईएमआईएम छोटी पार्टियों को अपने साथ मिलाने में कामयाब रहती है तो उसके लिए ये बड़ी कामयाबी का रास्ता खोल सकती है। उनके मुताबिक पार्टी के लिए यहां पर चुनाव के मैदान में उतरना केवल फायदे का ही सौदा साबित होगा। इसमें उन्हें कोई नुकसान नहीं होने वाला है।