हमारे रोज के जीवन में कई घटनाएं होती हैं, जिनमें से कुछ हमारे आत्मविश्वास और सोच को प्रभावित करती हैं। कई लोग इन चीजों से नकारात्मकता की आरे मुड़ जाते हैं। ऐसा करने से बचना चाहिए क्योंकि जीवन का कोई भी पल बेकार नहीं होता। हर सफलता और असफलता हमें कुछ महत्वपूर्ण सीख ही देती है। जागरण अध्यात्म में आज हम पढ़ते हैं एक प्रेरक कथा, जो आपके सोच को परिवर्तित कर सकती है। आप में सकारात्मक विचारों की वृद्धि करने में मदद कर सकती है ताकि आप अपने विश्वास को कमजोर न होने दें और जीवन के पथ पर पूरे हिम्मत और हौसले से आगे बढ़ते जाएं।
फूटी बाल्टी की प्ररेक कथा
एक गांव में एक किसान रहता था। उसके पास दो बाल्टियां थीं। वह उन दोनों बाल्टी को एक डंडे के दोनों सिरों पर बांध दिया था और उनसे ही तालाब से पानी भरकर लाता था। काफी समय व्यतीत होने के बाद एक बाल्टी के तले में छेद हो गया था, जबकि दूसरी सही थी।
जब वह पानी लेकर घर पहुंचता था तो छेद वाली बाल्टी में आधा पानी ही बचता था। किसान सिर्फ डेढ़ बाल्टी पानी लेकर ही घर आता रहा। यह देखकर एक दिन अच्छी बाल्टी ने छेदवाली बाल्टी से कहा, ‘मैं तुझसे अच्छी हूं। मुझ से एक बूंद पानी नहीं रिसता है।’
अच्छी बाल्टी की यह बातें सुनकर छेदवाली बाल्टी दु:खी हो गई और उसके अंदर नकारात्मक विचार आने लगे। अब वह स्वयं को महत्वहीन समझने लगी। एक दिन उसने किसान से कहा, ‘मैं किसी काम की नहीं रही, तुम मुझे फेंक दो।’
यह बात सुनकर किसान आश्चर्य में पड़ गया। फिर बोला, ‘तुम ऐसा क्यों बोल रही है? क्या तुमने गौर किया कि जिस तरफ मैं तुम्हें बांधता हूं, उस तरफ की पगडंडी पर कितनी हरियाली है। वहां फूल खिले हैं। मैं तुम्हारी इस विशेषता को जानता था, इसीलिए मैं तुम्हारे तरफ की पगडंडी पर फूलों और पौधों के बीज छिड़कता रहता था। इन पौधों को तुमने अनजाने में सींच दिया और आज कितनी हरियाली है।
‘तुमने वह काम किया है, जिसके बारे में कोई सोच नहीं सकता। लेकिन जब वह इस पगडंडी की हरियाली को देखेगा तो फिर तुम्हारे महत्व को समझ जाएगा। तुम स्वयं को तुच्छ या महत्वहीन ना समझो। अच्छी बाल्टी ने तो मेरे परिवार की प्यास बुझाई है और तुमने इन पौधों, फूलों और धरतर की प्यास बुझाई है। तुम उतना ही मत्वपूर्ण हो जितना की वो अच्छी बाल्टी।
कथा का सार
आपके पास जो भी उपलब्ध संसाधन हैं, उनके बेहतरीन इस्तेमाल में ही बुद्धिमत्ता है, संसाधनों को दोष देने में नहीं।