अपने धुआंधार प्रचार के लिए मशहूर रहे नवजोत सिंह सिद्धू के इस बार पंजाब के स्थानीय निकाय चुनाव में एक जगह भी प्रचार के लिए नहीं गए। इसके बावजूद कांग्रेस ने राज्य 108 में 101 नगर काउंसिलों और आठ में से छह नगर निगमों में अप्रत्याशित जीत हासिल की है। इससे मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी पार्टी को यह संदेश देने में कामयाब हो गए हैं कि वह सिद्धू के प्रचार के बिना भी पार्टी को वह जीत दिला सकते हैं। ऐसे में नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर कांग्रेस की दुविधा और बढ़ गई है। इसमें सिद्धू की ‘बड़ी’ मांग भी आड़े आ रही है। बताया जा रहा है कि वह पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष का पद मांग रहे हैं।
स्थानीय निकाय चुनाव के प्रचार दूर रहे सिद्धू, फिर भी कांग्रेस को मिली भारी जीत
पिछले कुछ दिनों से नवजोत सिंह सिद्धू को सरकार या पार्टी में कोई अहम स्थान देने के लिए पंजाब मामलों के प्रभारी हरीश रावत लगातार कोशिश कर रहे हैं। इसी संदर्भ में बीते शुक्रवार को उन्होंने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से मुलाकात भी की थी। यह मुलाकात इसलिए मायने रखती है क्योंकि एक दिन पहले ही वह कांग्रेस की प्रधान सोनिया गांधी से मीटिंग करके आए थे। इस मीटिंग में नवजोत सिद्धू भी शामिल थे।
नवजोत सिद्धू पंजाब कांग्रेस प्रधान बनने के लिए अड़े, कैप्टन देना चाहते हैं ऊर्जा विभाग
पार्टी सूत्रों का कहना है कि नवजोत सिंह सिदधू लगातार स्थानीय निकाय विभाग लेने की मांग पर अड़े हुए हैं, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह उन्हें ऊर्जा विभाग ही देना चाहते हैं। इसके अलावा सिद्धू ने यह भी मांग रखी हुई है कि उन्हें पार्टी का प्रदेश प्रधान बनाया जाए। कैप्टन अमरिंदर सिंह इसके लिए राजी नहीं हैं। उनका कहना है कि इससे प्रदेश में कांग्रेस का जातिगत समीकरण बिगड़ जाएगा।
इस समय मुख्यमंत्री के पद पर एक जट्ट सिख नेता है और अगर पार्टी का प्रधान भी जट्ट सिख को लगा दिया जाता है इससे प्रदेश में गलत संदेश जाएगा। प्रदेश के प्रधान के पद पर पार्टी हिंदू चेहरा ही सामने रखना चाहती है। सुनील जाखड़ को कैप्टन अमरिंदर सिंह का करीबी भी माना जाता है। ऐसे में कैप्टन अमरिंदर सिंह उन्हें इस पद से हटाना नहीं चाहते। निश्चित तौर पर आज जिस तरह से पूरे प्रदेश में, खासतौर पर शहरों और कस्बों ने कांग्रेस ने जीत हासिल की है उसके कैप्टन का कद पार्टी में बढ़ा है।
दिलचस्प बात यह है कि 2017 के विधान सभा चुनाव से पूर्व जब नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस में शामिल हुए तो उन्होंने पूरे नौ -दस दिन धुंआंधार प्रचार किया। उनका फोकस मुख्य रूप से शहरी क्षेत्र थे और यहां से कांग्रेस को अच्छी खासी सफलता मिली। इसलिए जब सिद्धू को स्थानीय निकाय जैसा विभाग मिला तो उन्होंने शहरों में सुधार के लिए ही कई कदम उठाए लेकिन वह अपने इस काम को निरंतर जारी नहीं रख पाए। लोकसभा चुनाव में उन्होंने पार्टी नेताओं के खिलाफ ही उनका नाम लिए बगैर कई टिप्पणियां कीं जिसके चलते कैप्टन ने उन्हें इस महकमे से चलता कर दिया।