हम स्त्री-पुरुष की समानता की चाहे कितनी ही दुहाई दे दें, लेकिन आज भी यदि कोई महिला अपने पति से ज़्यादा कमाती है, तो उनके रिश्ते में खटास आनी शुरू हो जाती है. कई केसेस में ऐसा भी होता है कि पति-पत्नी को इस बात से कोई परेशानी नहीं होती, लेकिन परिवार के लोग बात-बात में उन्हें इस बात का एहसास कराते रहते हैं.
बदलाव आया है, लेकिन…
सपना कहती हैं, स्वाति मैंने और मेरे पति सुयश ने एक साथ पढ़ाई की और एक साथ करियर की शुरुआत भी की. साथ पढ़ते दोनों में प्यार हुआ और करियर में सेटल होते ही हमने शादी कर ली. शादी के बाद मुझे करियर में अच्छी अपॉर्चुनिटीज़ और प्रमोशन मिलते गए, जिससे शादी के दो साल बाद ही मेरी सैलरी सुयश से ज़्यादा हो गई. इससे हम दानों को तो कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, लेकिन मेरे सास-ससुर को लगने लगा कि बहू यदि ज़्यादा कमाएगी तो कहीं बेटे और परिवार पर हुकुम न चलाने लगे, इसलिए पहले उन्होंने मुझ पर फैमिली प्लान करने का प्रेशर डाला और मां बनते ही जॉब छोड़ देने की ज़िद करने लगे. कई बार उन्होंने सुयश के भी कान भरने की कोशिश की, लेकिन सुयश समझदार हैं, उन्होंने मेरा साथ दिया इसलिए मैं आसानी से जॉब कर पा रही हूं. ज़रूरी नहीं कि मेरे जैसी सभी महिलाओं को पति का सपोर्ट मिलता होगा, कई पुरुषों को बीवी का उनसे ज़्यादा कमाना पसंद नहीं होता, ऐसे में औरत की काबिलियत ही उसकी कमज़ोरी बन जाती है. समाज में अभी भी बहुत बदलाव की ज़रूरत है.
अभी दिल्ली दूर है…
साइकोलॉजिस्ट माधवी सेठ के अनुसार, महिलाओं की कमाई हमारे देश में आज भी एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर बहस ख़त्म होने का नाम नहीं लेती. महिलाओं की कमाई यदि पुरुष से ज़्यादा हो, तो इसका असर उनके रिश्ते पर पड़ने लगता है. पुरुषों को कमाऊ पत्नी तो चाहिए, लेकिन उसे वे ख़ुद से ऊपर उठता नहीं देख सकते. पत्नी के सामने अपना रुतबा कम होता देख पुरुषों के अहम् को ठेस पहुंचती है और यही ठेस उनकी शादीशुदा ज़िंदगी में दरार डाल देती है. कई महिलाएं तो परिवार में क्लेश होने से बचने के लिए घर में अपनी सैलरी कम बताती हैं. ऑफिस में जब उन्हें अच्छे परफॉर्मेंस के लिए प्रमोशन या पुरस्कार मिलता है, तो वो अपनी ख़ुशी जाहिर करने के बजाय ये कहकर बात को टाल देती हैं कि ये प्रमोशन अकेले मुझे ही नहीं मिला है, बहुत लोगों को मिला है, इसमें कोई बड़ी बात नहीं है.
महिलाएं भी हैं ज़िम्मेदार
हमारे देश में महिलाओं की कमाई को हमेशा दूसरे पायदान पर रखा जाता है और ज़्यादातर महिलाएं भी ऐसा ही सोचती है. कई महिलाएं अपनी कमाई को स़िर्फ अपने जेबख़र्च और ऐशो-आराम तक ही सीमित रखती हैं. उन्हें लगता है कि घर की आर्थिक ज़िम्मेदारी स़िर्फ पति की है, उनकी नहीं. ऐसे में जब कभी उन्हें घर के लिए ख़र्च करना पड़ता है, तो उन्हें ये अच्छा नहीं लगता. जब महिलाएं ही अपनी कमाई को ज़रूरी नहीं समझती, तो परिवार में उनकी कमाई को कैसे महत्व मिल सकता है. महिलाओं को स़िर्फ अपने शौक के लिए नहीं, बल्कि परिवार का आर्थिक स्तर मज़बूत करने के लिए कमाना चाहिए, तभी उनकी कमाई को महत्व दिया जाएगा.
पुरुषों को सोच बदलनी चाहिए
आज भी युवाओं को पत्नी वर्किंग तो चाहिए, लेकिन अपनी शर्तों पर, यानी पत्नी की सैलरी और ओहदा उनसे ऊंचा न हो, यदि ऐसा हो जाए तो उनके अहम् को ठेस पहुंच जाती है. पत्नी यदि ज़्यादा कमाती है, तो पति उसकी हर बात को उसका अहंकार समझने लगता है, पत्नी का ज़्यादा कमाना वो सहन नहीं कर पाता. ऐसे में पत्नी को बात-बात पर ताने देना, बिना बात के झगड़ा बढ़ाकर उसे दोषी ठहराना जैसी बातें पति की फितरत बन जाती है और धीरे-धीरे उनके रिश्ते में खटास बढ़ने लगती है. ऐसे में अपनी क़ामयाबी ही महिलाओं को कुंठित कर देती है.
औरत की कमाई पर सवाल
आज भी कई घरों में औरत की कमाई को सही नहीं माना जाता, उन्हें लगता है कि औरतों को तभी कमाना चाहिए जब घर में पैसे की कमी हो. यदि परिवार संपन्न है, तो महिला चाहे कितनी ही पढ़ी-लिखी और क़ाबिल क्यों न हो, उसे काम नहीं करना चाहिए. सपना कहती हैं, मैं शादी से पहले जॉब करती थी, लेकिन शादी के बाद मेरे ससुराल वालों ने ये कहकर मुझे जॉब करने से मना कर दिया कि हमारे घर की बहू-बेटियां नौकरी नहीं करती. उनके कहने पर मैंने जॉब छोड़ दी और अपना पूरा ध्यान घर-गृहस्थी पर लगा दिया. फिर मेरे बेटे के जन्म के कुछ समय बाद मेरे पति की नौकरी छूट गई. काफी समय तक जब उन्हें नौकरी नहीं मिली और घर में पैसों की किल्लत होने लगी, तो मेरे ससुराल वालों ने मुझे फिर से नौकरी करने को कहा. उस व़क्त मैं बच्चे को छोड़कर जॉब नहीं करना चाहती थी, लेकिन घर वालों ने मुझ पर इतना दबाव डाला कि मजबूरन मुझे नौकरी करनी पड़ी. कुछ समय बाद मेरे पति को भी जॉब मिल गई. अब हम दोनों जॉब गर रहे थे, घर में किसी को कोई शिकायत नहीं थी. समस्या तब शुरू हुई जब मेरी सैलरी पति से ज़्यादा हो गई. परिवार वालों ने एक बार फिर मुझ पर जॉब छोड़ने का दबाव डालना शुरू कर दिया, लेकिन इस बार मैंने उनकी बात नहीं मानी और अपना जॉब जारी रखा. जब मैं अपने दूध पीते बच्चे के साथ घर में रहना चाहती थी, तब परिवार में किसी ने मेरी नहीं सुनी और आज जब मैं अपने जॉब में अच्छी तरह सेटल हो गई हूं तो मुझ पर स़िर्फ इसलिए जॉब छोड़ने का दबाव डाला जा रहा है, क्योंकि मैं अपने पति से ज़्यादा कमाने लगी हूं. सिचुएशन देखकर इन लोगों के नियम-कायदे बदल जाते हैं, ऐसे में कब तक मैं अपने करियर के साथ खिलवाड़ करती रहूं. न मैंने कभी परिवार को अपनी कमाई का रौब दिखाया, न ही कभी अपनी ज़िम्मेदारियों से पीछे हटी, फिर बार-बार मुझे ही त्याग करने को क्यों कहा जाता है?
ये तस्वीर बदलनी चाहिए
कुछ समय पहले करीना कपूर और अर्जुन कपूर अभिनित एक फिल्म की और का काफ़ी चर्चा में रही. इसकी वजह थी फिल्म की कहानी, जिसमें पति-पत्नी दोनों अपनी मर्ज़ी से अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियां निर्धारित करते हैं. पत्नी घर की आर्थिक ज़िम्मेदारी संभालती है यानी नौकरी करती है और पति घर संभालता है. हमारे देश में ऐसी कहानी चौंका देने वाली हो सकती है, लेकिन यूरोपीय देशों में हाउस हसबैंड का कॉन्सेप्ट बहुत पहले से मान्य है. वहां पर कई पुरुष घर पर रहकर परिवार व बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारी उठाते हैं और महिलाएं आर्थिक मोर्चा संभालती हैं, लेकिन हमारे देश में इस तरह के कॉन्सेप्ट को समाज पचा नहीं पाता
भारतीय महिलाएं हैं अवसाद की शिकार
शिकागों की एक शोधकर्ता ने 10 साल तक भारतीय महिलाओं पर शोध के बाद ये नतीजा निकाला कि लगभग 72 फीसदी भारतीय महिलाएं गहरे अवसाद की शिकार हो रही हैं. शोधकर्ता के मुुताबिक, महिलाओं के तनाव का सबसे बड़ा कारण ख़ुद उनका परिवार है