आसमान में उड़ान की विजय गाथा, भारत के प्रथम अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा की कहानी

आज ही के दिन यानी तीन अप्रैल को वर्ष 1984 में अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय यात्री बने राकेश शर्मा निश्चित रूप से प्रत्येक देशवासी के लिए एक प्रेरणा स्रोत की तरह। आइए आपको बताते हैं कि अंतरिक्ष में साहसिक अभियान और उड़ान की विजय गाथा।

आज से 37 साल पहले राकेश शर्मा अंतरिक्ष में प्रवेश करने वाले और वहां लंबा समय व्यतीत करने वाले पहले भारतीय बने थे और यह कीíतमान आज भी कायम है। किसी भारतीय का अंतरिक्ष में प्रवेश भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के लिए एक स्वíणम पल था। यह सही है कि भारत को यह अवसर रूस से मैत्री के सौजन्य से मिला, लेकिन यह भी सच है कि इस उपलब्धि से हमें अंतरिक्ष के क्षेत्र में पूरी तरह आत्मनिर्भर होने की प्रेरणा मिली। हमने स्वदेशी साधनों का तेजी से विकास किया और इस क्रम में कई महत्वपूर्ण मुकाम हासिल किए। आज हमारे पास चांद और मंगल पर पहुंचाने वाले शक्तिशाली रॉकेट हैं। आज हम न केवल अपने महत्वपूर्ण उपग्रह खुद अपने रॉकेटों के जरिये पृथ्वी की कक्षा में पहुंचा रहे हैं, बल्कि दूसरे देशों को भी अपनी तकनीक का लाभ दे रहे हैं।

इसरो यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने भारी भरकम व्यावसायिक मिशनों को अंजाम देने के बाद 2017 में पीएसएलवी के जरिये एक साथ 104 उपग्रह प्रक्षेपित करने का विश्व रिकॉर्ड बनाया था। भारत के चंद्रयान-1 और मंगलयान मिशनों की पूरी दुनिया में चर्चा हो चुकी है। इन्हें इसरो की सबसे बड़ी उपलब्धियों में गिना जाता है।

कुछ लोग अंतरिक्ष में राकेश शर्मा की उपस्थिति का जिक्र नहीं करते। उनकी उपस्थिति भले ही सांकेतिक रही हो, लेकिन उसका महत्व बड़ा था।  राकेश शर्मा को अंतरिक्ष यात्री बनने से पहले कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ा था। पहले बेंगलुरु स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन में उनके कई टेस्ट हुए। एक बार तो उन्हें एक कमरे में 72 घंटे तक बंद रखा गया। इसके पश्चात मास्को की स्टार सिटी में यूरी गगारिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में लगभग दो साल तक उनको बहुत ही कठोर ट्रेनिंग दी गई। उनके साथ रवीश मल्होत्र भी थे। दोनों भारतीय वायुसेना के पायलट थे। अंतिम ट्रेनिंग के लिए दो अंतरिक्ष यात्री इसलिए चुने गए थे, क्योंकि एक अंतरिक्ष यात्री को ‘स्टैंड बाय’ रखना पड़ता है।

अंतरिक्ष में भारहीनता की स्थिति में रहना बहुत चुनौतीपूर्ण होता है। इसका शरीर पर प्रतिकूल असर पड़ता है। लेकिन राकेश शर्मा ने भारहीनता से निपटने के लिए विशेष तैयारी की थी। वे रोज दस मिनट तक योग करते थे। वे शून्य गुरुत्वाकर्षण की स्थिति में भी योग का अभ्यास करते थे। योग का अभ्यास करके उन्होंने यह दिखा दिया कि भारहीनता जैसी कठिन स्थितियों से निपटने में भारत का पारंपरिक ज्ञान भी उपयोगी साबित हो सकता है।

दो अप्रैल 1984 को शर्मा ने सोवियत रॉकेट सोयूज-टी-11 से अंतरिक्ष की उड़ान भरी। यह रॉकेट बैकानूर कॉस्मोड्रॉम से रवाना हुआ था। उनके साथ फ्लाइट कमांडर यूरी मालिशेव और फ्लाइट इंजीनियर गेन्नाडी स्त्रेकालोव शामिल थे। सोयूज से चालक मंडल को साल्यूत स्पेस स्टेशन में हस्तांतरित किया गया। इस तरह किसी भारतीय के लिए रॉकेट से जाने और अंतरिक्ष स्टेशन पर चहलकदमी करने का यह पहला अनुभव था। इसे भी एक अनोखा कीíतमान कहा जा सकता है।

बाद में राकेश शर्मा को अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। रूस ने उन्हें ‘हीरो ऑफ सोवियत यूनियन’ का खिताब दिया। वर्ष 1987 में भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर पद से रिटायर होने के बाद शर्मा ने हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड में काम किया। बाद में वह तेजस विमान प्रोजेक्ट के साथ भी जुड़े।

राकेश शर्मा ने साल्यूत अंतरिक्ष स्टेशन पर सात दिन 21 घंटे और 40 मिनट बिताए थे। उन्होंने अंतरिक्ष से भारत के कई चित्र खींचे। उनके द्वारा लिए गए चित्रों से हवाई फोटोग्राफी में लगने वाले समय में बचत हुई। किसी क्षेत्र का नक्शा तैयार करने में जो काम हवाई फोटोग्राफी से दो वर्ष में पूरा होना था, वह शर्मा ने अंतरिक्ष से महज सात दिन के अंदर पूरा कर दिया। इस प्रकार शर्मा ने दिखाया कि दूर संवेदन के लिए अंतरिक्ष का प्रयोग कितना उपयोगी साबित हो सकता है। अंतरिक्ष मिशन ने अनेक वैज्ञानिक और तकनीकी अध्ययन किए। शर्मा का कार्य मुख्य रूप से बायो मेडिसिन और दूर संवेदन से जुड़ा था।

एक टीवी कांफ्रेंस के दौरान जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राकेश शर्मा से पूछा कि अंतरिक्ष से भारत आपको कैसा दिखता है? उनका जवाब था- सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा। यह जवाब आज भी हमारे कानों में गूंजता रहता है।

अंतरिक्ष में चहलकदमी करते हुए मनुष्य को सात दशक से अधिक हो चुके हैं। इस दौरान हम चांद पर उतर चुके हैं और मंगल की पड़ताल करने के लिए कई यान भेज चुके हैं। शुक्र, बृहस्पति और शनि जैसे सौरमंडल के दूसरे ठिकानों के आसपास पृथ्वीवासियों के यान पहुंच चुके हैं। सौरमंडल के बाहरी पिंडों के अवलोकन के लिए भेजे गए वॉयेजर-1 और 2 यान अब अंतर-नक्षत्रीय अंतरिक्ष में पहुंच चुके हैं। इन यानों द्वारा प्रेषित आंकड़ों से इन ग्रहों के बारे में हमारे ज्ञान में निश्चित रूप से वृद्धि हुई है। लेकिन तमाम उपलब्धियों के बावजूद अंतरिक्ष के बारे में हमारा ज्ञान अधूरा है। अंतरिक्ष के बहुत से रहस्य अनसुलङो हैं। हम अभी तक डार्क मैटर, डार्क एनर्जी और ब्लैक होल के बारे में नहीं जान सके हैं।

पिछले काफी समय से हम मंगल पर पारलौकिक जीवन के चिह्न् खोजने में जुटे हैं। पारलौकिक जीवन की उपस्थिति एक शाश्वत प्रश्न है जिसका जवाब हर कोई खोजना चाहता है।

अंतरिक्ष एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें हम सिर्फ एक-दो देशों के सामथ्र्य पर निर्भर नहीं रह सकते। इस संदर्भ में भारत के चंद्रयान-1 मिशन को याद करना चाहिए जिसने दुनिया को पहली बार यह दिखाया कि चांद पर पानी मौजूद है। यानी अंतरिक्ष के रहस्यों के अनावरण में भारत बड़ा योगदान कर सकता है। प्रथम भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा दर्शा चुके हैं कि अंतरिक्ष में आगे बढ़ने के लिए हमारे समक्ष समुचित अवसर हैं। हैंमुकुल व्यास। (लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं)