बालू का खेल… सब गोलमाल है

बालू ऐसा तिलिस्म है, जो आम जनता को छोड़कर बाकी सबकी समझ में आ रहा है। जनता तो झख मारकर मनमाने दाम पर बालू खरीद ही लेती है, क्योंकि उनके पास दूसरा चारा नहीं है, लेकिन उन्हेंं यह समझ नहीं आता कि घाटों की नीलामी नहीं होने व तमाम धर-पकड़ के बावजूद माफिया धड़ल्ले से बालू उपलब्ध कहां से करा देते हैं। इस व्यवस्था में शामिल लोगों को पता है कि नदी में घाट से बालू निकालने, उसे गाड़ी पर लोड करने व इसके बाद शहर व गांव तक उसे पहुंचाने का खेल बेरोक-टोक यूं ही नहीं चल रहा। इस हमाम में सभी नंगे हैं। हर किसी को उसका हिस्सा ईमानदारी से मिलता है। इसमें जरा सी भी लापरवाही हुई तो अगले दिन उसकी गाड़ी जब्त हो जाती है। सिस्टम से जुड़े लोग खेल अच्छे से जानते हैं। तभी तो कहते हैं… सबकी हिस्सेदारी है भाई।

अबुआ राज काना हो दादा…

टुंडी नक्सल प्रभावित क्षेत्र है। यहां नक्सलियों पर नकेल कसने में जनता भी अहम भूमिका निभाती है। पुलिस-पब्लिक संबंध बेहतर बने रहें, इसके लिए कई तरह के आयोजन भी होते हैं। प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार भी मनियाडीह थाना के बगल में फुटबाल मैच का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि खुद पुलिस कप्तान थे। आम जनता को उम्मीद थी कि प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार भी खेल में हार-जीत तय होने के बाद उनकी समस्याएं सुनी जाएंगी। इसी इंतजार में घंटों टकटकी लगाए बैठे रह गए। वैसे भी इनके पास गिने-चुने मौके ही होते हैं, जब अपनी समस्याएं सीधे अधिकारियों को ये सुना सकें, लेकिन इस बार बेचारे ग्रामीणों की आस धरी की धरी रह गई। खेल खत्म हुआ तो साहब भी चल दिए और जनता देखती रह गई। चुटकी लेते हुए एक मुखिया ने बोल ही दिया… अबुआ राज काना हो दादा…।

मलाई के लिए जद्दोजहद

कुछ दिनों पहले उपायुक्त ने बैठक की और 15 मिनट में ही जिले के सभी पंचायत सचिवों के तबादले का आदेश जारी कर दिया। आदेश जारी होते ही खलबली मच गई। सभी को एक सप्ताह के अंदर नए पंचायत में ज्वाइन करने का आदेश था, सो सबने ज्वाइन कर ली। यहीं से पंचायतों में रस्साकसी भी शुरू हो गई। एक-दो दिन तो मलाईदार पंचायतों का पता लगाने में बुजर गए। अब उसे अपने नाम कैसे किया जाए, इसकी तिकड़म भी सभी प्रखंडों में शुरू हो गई। हर किसी में परिक्रमा की होड़ थी। कुछ लोग तो यह भी पता करने लगे कि बीडीओ न सही तो उनके चहेते कर्मचारी को ही पकड़कर अपने हक में काम करा लिया जाए। कुछ लोगों को इसका फायदा भी मिला, लेकिन अधिकतर को मायूसी हाथ लगी। हालांकि पंचायत सचिवों ने भी हार नहीं मानी है। परिक्रमा अब भी जारी है।

कानून से पंगा, ना बाबा ना…

ठीक ही कहा गया है, सबकुछ करो लेेेेेकिन कानून से पंगा मत लो। यह बात आजसू समर्थकों को अब समझ आ रही होगी। बासुदेवपुर कोल डंप फिलहाल आंदोलन का अड्डा बना हुआ है। कभी झामुमो तो कभी आजसू समर्थक यहां धरना प्रदर्शन कर काम बाधित कर रहे थे। अंत में एसडीओ ने धारा 144 लगा दी, ताकि तकरार कम हो और काम शुरू हो सके, लेकिन कुछलोग खुद को सवा शेर समझ बैठे। निषेधाज्ञा लगने के बाद भी प्रदर्शन हुआ। आजसू समर्थकों ने तो बजाब्ता टेंट गाड़कर धरना जारी रखा। बस फिर क्या था, लोयाबाद पुलिस ने कानून का पाठ पढ़ा दिया। टेंट उखाड़ डाला। दरी, चादर, गद्दा सब जब्त कर लिया। चार धरनार्थी हिरासत में लिये गए। चले थे सरदारी विवाद सुलझाने, लेकिन खुद ही कानून तोड़ बैठे। कानून ने भी ठीकठाक पाठ पढ़ाया तो सब ठंडे पड़ गए। अब आगे ईश्वर जाने।