पुडुचेरी में सोमवार को कांग्रेस की वी. नारायणसामी के नेतृत्व वाली सरकार गिरने के बाद दो ही विकल्प बचे हैं। इनसे पहला विकल्प किसी दूसरी पार्टी के सामने आकर सरकार बनाने का दावा पेश करना है तो दूसरा राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना है। जहां तक पहले विकल्प का सवाल है तो इसकी उम्मीद कुछ कम ही नजर आती है। इसकी वजह ये है क्योंकि वहां पर अप्रेल-मई में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में वहां पर कोई दूसरी पार्टी आकर कुछ दिनों के लिए सत्ता का स्वाद कम ही चखना पसंद करेगी। ऐसे में राष्ट्रपति शासन का विकल्प काफी मजबूत दिखाई देता है।
सोमवार को पुडुचेरी में बदले राजनीतिक घटनाक्रम के बाद विधानसभा में सरकार को बहुमत साबित करना था, लेकिन इससे पहले ही मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दे दिया। विधानसभा स्पीकर ने इसके बाद सरकार के गिरने की घोषणा कर दी। इस घटना कुछ दिन पहले ही केंद्र ने यहां की उप-राज्यपाल किरण बेदी को हटाकर यहां का कार्यभार तेलंगाना के राज्यपाल तमिलिसाई सौंदरराजन को सौंप दिया गया था। उन्होंने ही नारायणसामी को विधानसभा में बहुमत साबित करने का निर्देश दिया था।
जहां तक कांग्रेस सरकार और किरण बेदी के बीच संबंधों का सवाल है तो ये हमेशा ही तनावपूर्ण बने रहे। कई बार इन दोनों के बीच की खींचतान खुलकर सामने आई। ये नाराजगी सोमवार को विधानसभा में उस वक्त उजागर हुई जब नारायणसामी ने केंद्र और पूर्व उप-राज्यपाल पर उनकी सरकार गिराने के लिए काम करने का आरोप लगाया। बेदी ने 29 मई 2016 को यहां के 24वें उप-राज्यपाल का पदभार ग्रहण किया था। फरवरी 2019 और इस साल जनवरी में भी नारायणसामी की सरकार की तरफ से उन्हें हटाने के लिए राजनिवास के बाहर धरना तक दिया गया था।
विधानसभा की मौजूदा सीटों की बात करें तो कांग्रेस की नौ, सात सीटें ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस, चार सीटें एआईएडीएमके, एक सीट डीएमके, एक निर्दलीय, सात सीट रिक्त और तीन पर भाजपा के सदस्य नामित हैं। गौरतलब है कि 1962 में भारत के साथ मिलने से पहले तक यहां पर फ्रांस का शासन हुआ करता था। उस वक्त उन्होंने इसको चार जिलों में बांटा हुआ था और इनमें 39 विधानसभा क्षेत्र थे। भारत में शामिल होने के बाद पुडुचेरी को 30 विधानसभा क्षेत्र में बांट दिया गया। 2005 में डिलिमिटेशन कमीशन द्वारा विधानसभा सीटों की सीमाओं को दोबारा तय किया गया था।