पश्चिम बंगाल में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे ही वहां पर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई है। चुनाव से पहले राज्य में शुरू ही हिंसा और हमले की घटनाएं इस बात की तरफ इशारा कर रही है कि वहां पर चुनाव की राह आसान नहीं है। हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों की बात करें तो हिंसा की इन घटनाओं के पीछे वो राजनीतिक मकसद मानते हैं। आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल में स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तरीय नेताओं के ऊपर हमले की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर पिछले वर्ष दिसंबर में कोलकाता दौर के वक्त हमला हुआ था। इसमें पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय समेत कई नेता घायल हो गए थे। इसके बाद कुछ दिन पहले ही राज्य के मंत्री के ऊपर बम से हमला किया गया। इसके बाद दो दिन पहले पश्चिम बंगाल में भाजपा के अध्यक्ष के ऊपर भी हमला किया गया। सोमवार को पीएम नरेंद्र मोदी खुद पश्चिम बंगाल जा रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक इस बात को लेकर एक राय रखते हैं कि पश्चिम बंगाल के चुनाव में भाजपा और सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस पार्टी के बीच सीधा और कड़ा मुकाबला है। इन विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि यहां पर चुनावी इतिहास काफी लंबा है। इस बार भी शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव का होना काफी मुश्किल लगता है। हालांकि इनका ये भी कहना है कि इस बार के चुनाव में पहले की अपेक्षा कम हिंसा देखने को मिलेगी। पश्चिम बंगाल की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप सिंह का मानना है कि भाजपा पूरी ताकत के साथ इस चुनाव में उतरी है। भाजपा यहां पर राष्ट्रीयता के मुद्दे को लेकर आगे बढ़ी है। साथ ही पार्टी ने राज्य में ममता सरकार की तुष्टीकरण की राजनीति के खिलाफ जो मोर्चा खोला है उसका उसे फायदा जरूर होगा।
चुनाव में विपक्षी पार्टियों के वोटर्स को डराने की कोशिश पर प्रदीप सिंह का कहना है कि अब लोग इस तरह की राजनीति से थक चुके हैं। अब वो बाहर निकलेंगे। इसका फायदा भाजपा को होगा। वहीं शिवाजी सरकार भी मानते हैं कि पश्चिम बंगाल में वर्षों से सत्ताधारी पार्टियां इसी तरह से अपने विरोधियों को डरा धमकाकर चुनाव जीतती आई हैं। इस बार लोग बेहद करीब से इसको देख रहे हैं। शिवाजी की राय में ममता जिस तरह की भाषा का उपयोग करती हैं उसको वहां के पढ़े लिखे लोग सही नहीं मानते हैं। भाजपा इस चुनाव में ममता पर काफी आक्रामक है और साथ ही उसकी मौजूदगी भी पहले से कहीं ज्यादा दिखाई दे रही है, जिसका फायदा उसको हो सकता है।
प्रदीप सिंह का ये भी कहना है कि भाजपा लोगों को ये बताने में काफी हद तक सफल होती दिखाई दे रही है कि ममता हिंदुओं के बारे में नहीं सोचती हैं। वहीं ममता द्वारा जय श्री राम के नारे का विरोध करने की घटना ने इसको कहीं न कहीं प्रमाणित करने का काम किया है। इसके बाद यहां ये एक ममता विरोध का नारा बन चुका है। जहां तक इस चुनाव में ममता के तरीके की बात है तो ये पहले की ही तरह है लेकिन भाजपा उसको जवाब देने की भूमिका में है। केंद्र में सरकार होने का फायदा भी कहीं न कहीं पार्टी को मिल सकता है। उनका ये भी कहना है कि चुनावी हिंसा जिस तरह से लेफ्ट और टीएमसी पहले कर लेती थी इस बार वैसा नहीं हो सकेगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में इसकी शुरुआत हो चुकी है। इस बार के विधानसभा चुनव में राज्य पुलिस का उपयोग न के ही बराबर होगा। इसलिए टीएमसी इस बार हिंसा का फायदा अपनी जीत के लिए नहीं उठा सकेंगी। हालांकि वो ये भी मानते हैं कि ये चुनाव हिंसा रहित नहीं होने वाला है।
शिवाजी और प्रदीप दोनों ही इस बात को लेकर एकराय रखते हैं कि ममता को सत्ता से हटाना भाजपा के लिए आसान नहीं है तो इतना मुश्किल भी नहीं होगा। लेकिन इस बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। ये इस बात पर तय करेगा कि चुनाव में लोग कैसे वोट करते हैं। साथ ही मुस्लिम वोटों में जो बंटवारा होगा ये काफी कुछ इस पर भी निर्भर करेगा। दोनों विशेषज्ञों की निगाह में ममता न सिर्फ राजनीति में बड़ा कद रखती हैं बल्कि जमीन से जुड़ी हुई नेता है। इसके बावजूद सरकार के खिलाफ दस साल की पुरजोर होती आवाज और उनपर लगे भ्रष्टाचार के आरोप अभी लोगों के जहन में ताजा हैं। इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।