सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि लॉकर की सुरक्षा व संचालन में जरूरी सावधानी बरतना बैंकों का दायित्व है। बैंक अपनी जिम्मेदारी से हाथ नहीं झाड़ सकते। ग्राहक बैंक में लॉकर सुविधा यह सुनिश्चित करने के लिए लेता है कि वहां उसकी संपत्ति और चीजें सुरक्षित रखी जाएंगी। बैंकों के जिम्मेदारी से हाथ झाड़ लेने से न सिर्फ उपभोक्ता संरक्षण कानून के प्रविधानों का उल्लंघन होगा बल्कि निवेशक का भरोसा भी टूटेगा।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को दिया आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को आदेश दिया है कि वह छह महीने के भीतर लॉकर सुविधा या सुरक्षित धरोहर प्रबंधन के बारे में उचित रेगुलेशन जारी करे। कोर्ट ने साफ किया है कि बैंकों को इस बारे में एकतरफा नियम तय करने की छूट नहीं होनी चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने बैंक लॉकर प्रबंधन के बारे में बैंकों के लिए दिशा-निर्देश जारी किया है। आरबीआइ का नियम जारी होने तक बैंकों को सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा।
यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया पर सुनाया फैसला
यह फैसला शुक्रवार को न्यायमूर्ति एमएम शांतनगौडर और विनीत सरन की पीठ ने यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के खिलाफ दाखिल एक ग्राहक अमिताभ दासगुप्ता की याचिका पर सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया को उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत सेवा में कमी का जिम्मेदार ठहराते हुए याचिकाकर्ता को पांच लाख रुपये हर्जाना और एक लाख रुपये मुकदमा खर्च अदा करने का आदेश दिया है।
बताए बगैर तोड़ा लॉकर
अमिताभ दासगुप्ता ने बैंक पर आरोप लगाया था कि लॉकर का किराया देने के बावजूद बैंक ने समय से किराया अदा न करने के आधार पर उसका लॉकर उसे बताए बगैर तोड़ दिया। लॉकर तोड़ने की सूचना भी उसे नहीं दी। जब वह करीब साल भर बाद लॉकर संचालित करने बैंक गया तब उसे इसकी जानकारी हुई और बैंक ने लॉकर में रखे उसके सात आभूषण वापस नहीं किए। सिर्फ दो ही आभूषण वापस किए।
आभूषणों की संख्या को लेकर विवाद
इस मामले में बैंक ने आभूषणों की संख्या को लेकर विवाद उठाया था। राज्य उपभोक्ता आयोग और राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने आभूषणों के विवाद के बारे में याचिकाकर्ता को दीवानी अदालत जाने को कहा था। इसके बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
बैंक ने की दायित्व की अवहेलना
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है बिना किसी तर्कसंगत कारण के बैंक ने याचिकाकर्ता का लॉकर उसे बताए बगैर तोड़ दिया। इस तरह बैंक ने ग्राहक के प्रति सेवा प्रदाता के तौर पर अपने दायित्व की अवहेलना की है। बैंक इसके लिए सेवा में कमी का जिम्मेदार है।
मौजूदा रेगुलेशन से जताई नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे लगता है कि लॉकर प्रबंधन के बारे में मौजूदा रेगुलेशन अपर्याप्त और घालमेल वाले हैं। हर बैंक का अपना नियम है। देखने में आया है कि उपभोक्ता फोरम के समक्ष अपना स्टैंड रखने को लेकर बैंक भ्रमित हैं। बैंकों को लगता है कि अगर उन्हें लॉकर में रखे सामान की जानकारी नहीं है, तो वे अपने दायित्व से भी मुक्त हो जाते हैं। पीठ ने कहा कि देश की सर्वोच्च अदालत होने के चलते वह बैंक और ग्राहकों के लॉकर प्रबंधन को लेकर चल रहे विवाद को जारी नहीं रहने दे सकती।
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश
1- बैंक लॉकर रजिस्टर और लॉकर की चाबी का रजिस्टर मेनटेन करेंगे और उसे अपडेट भी करते रहेंगे
2- लॉकर किसी दूसरे को आवंटित करने से पहले मूल आवंटी को सूचित करेंगे और उसे सामान निकालने का मौका देंगे
3- बैंक का कस्टोडियन अलग से लॉकर के बारे मे रिकॉर्ड मेनटेन करेगा
4- लॉकर में इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम होने पर बैंक सुनिश्चित करेंगे कि सिस्टम हैंकिंग और सिक्योरिटी ब्रीच से सुरक्षित हो
5- बैंक सिर्फ आरबीआइ के तय नियमों के मुताबिक ही लॉकर तोड़ सकते हैं और ऐसा करने से पहले ग्राहक को नोटिस दिया जाएगा
6- बैंक वेरिफिकेशन की उचित प्रक्रिया अपनाएंगे, ताकि कोई अवैध पक्ष लॉकर तक न पहुंच सके
7- लॉकर किराये पर लेने के करार की एक प्रति ग्राहक को दी जाएगी, ताकि उसे अपने अधिकार और दायित्व पता रहे