पश्चिम बंगाल में इसी वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं। इसको लेकर वहां पर राजनीतिक सरगर्मियां काफी बढ़ गई हैं। इस चुनावी अखाड़े में असल मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और राज्य की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के बीच है। हालांकि इन दोनों के अलावा भी दूसरी पार्टियां मैदान में हैं लेकिन उनकी भूमिका इस चुनाव में खास नहीं रह गई है। चुनावी सरगर्गी बढ़ने के साथ ही राज्य में हिंसा का दौर भी शुरू हो गया है।
मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा की ताजा घटना ने वहां पर चुनाव के दौरान हुए खूनी संघर्ष के इतिहास को दोबार जिंदा कर दिया है। पको बता दें बुधवार को मुर्शिदाबाद में राज्य के श्रम राज्यमंत्री जाकिर हुसैन के ऊपर बमों से हमला किया गया। इस हमले में उन्हें घायल होने के बाद कोलकाता के अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उनके अलावा इस हमले में 21 लोग जख्मी हुए हैं। जानकार मानते हैं कि यहां पर होने वाली चुनावी संघर्ष का इतिहास काफी लंबा रहा है। लगभग हर चुनाव में यहां पर हिंसा हुई है और लोगों की मौत हुई हैं।
देश की राजनीति पर नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप सिंह का कहना है कि पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा का लंबा इतिहास रहा है। कोई भी पार्टी इससे अछूती नहीं रही है। सभी की पृष्ठ भूमि इससे होकर गुजरती है। यहां तक की टीएमसी भी इससे अलग नहीं रह सकी है। उनका मानना है कि ताजा घटना कहीं न कहीं राजनीतिक भी है। चुनावी हिंसा के बारे में उनका कहना है कि इसकी शुरुआत पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की सरकार से हुई थी। इसके बाद सीपीआई-एम ने इसको नए आयाम दिए और अपने स्थानीय कैडर को इससे जोड़कर एक संगठित आर्मी की तरह इस्तेमाल किया और सत्ता पर काबिज हुई। पश्चिम बंगाल के हर चुनाव में इस पार्टी ने इस विकल्प का जमकर इस्तेमाल किया।
उनके मुताबिक ममता इससे वाकिफ थीं कि कांग्रेस में रहते हुए वो सीपीआई-एम से नहीं लड़ सकती हैं। इसलिए उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई और लोगों को अपने साथ जोड़ा। इसी दौरान सीपीआई-एम के काफी लोग टीएमसी में जुड़े। सत्ता पाने के बाद के बाद जो चुनावी हिंसा सीपीआई-एम के दौर में हुआ करती थी वहीं टीएमसी के दौर में भी हुई। प्रदीप सिंह की मानें तो ममता ने इसको रोकने की कोशिश भी नहीं की क्योंकि इससे उनकी सत्ता पर पकड़ में कहीं न कहीं मदद मिल रही थी। उनके मुताबिक इस बार के विधानसभा चुनाव में भी हिंसा के खत्म होने की बात नहीं की जा सकती है। लेकिन इसमें कमी जरूर आएगी। इसकी वजह वो मानते हैं कि चुनाव केंद्र की देखरेख में होगा और सुरक्षा की जिम्मेदारी भी वो खुद ही उठाएंगे। जहां तक वहां पर भाजपा की रैलियों और उनके नेताओं की सुरक्षा का सवाल है तो उन्हें भी वो अपनी सुरक्षा मुहैया करवाएंगे।
आपको बता दें कि वर्ष 2011 से पश्चिम बंगाल में टीएमसी की सत्ता है। 2011 में टीएमसी ने यहां पर वर्षों से राज करने वाली पार्टी सीपीआई-एम को जबरदस्त शिकस्त देने के बाद सत्ता पर काबिज हुई थीं। प्रदीप सिंह का मानना है कि पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव प्रमुख रूप से भाजपा और टीएमसी में होने वाला है। उन्हें इस बात की भी उम्मीद है कि भाजपा का प्रदर्शन इस चुनाव में अच्छा रहेगा। ये भी हो सकता है कि वो टीएमसी को सत्ता से हटाने में कामयाब हो जाए।