बस गहरी नहर में गिरी तो लोग बेबस हो गए लेकिन इस बीच देवदूत बनकर पहुंची छात्रा शिवरानी। उसने जान की परवाह न करते हुए अपने पांच स्वजन की मदद से बस में सवार चार यात्रियों को मौत के जबड़े से छीन लिया। घटनास्थल से करीब 300 मीटर दूर कक्षा 12वीं की छात्रा शिवरानी लुनिया (18) अपने परिवार के साथ घर के बाहर बैठी हुई थी। उसने अपने घर के सामने से तेज रफ्तार बस को गुजरते देखा। उसी समय वह किसी अनहोनी से सहम उठी। चंद पलों में ही उसकी आशंका सच में बदल गई। बस उसके सामने ही नहर में गिर गई। जैसे ही बस नहर में गिरी तो वह अपने स्वजन के साथ घटनास्थल की ओर दौड़ पड़ी। शिवरानी को तैरना आता था। उसने अपने स्वजन लवकुश, सुरेंद्र, जगबंधन, रामपाल और धर्मपाल के साथ नहर में छलांग लगा दी।

बकौल शिवरानी यह वह पल था, जब बस धीरे-धीरे नहर में ओझल हो रही थी। बस में पानी भरने लगा था। इसी बीच बस में सवार यात्री अनिल तिवारी (22), सुरेश गुप्ता (62), स्वर्णलता द्विवेदी (20), विभा प्रजापति (21), अर्चना जायसवाल (23), सुमन चतुर्वेदी, ज्ञानेश्वर चतुर्वेदी, पिंकी गुप्ता बस की खिड़की से निकलने की जद्दोजहद करने लगे। शिवरानी ने साहस दिखाते हुए साथियों की मदद से एक-एक कर चार यात्रियों को सुरक्षित निकाला और उनकी जान बचाई। शिवरानी ने बताया कि विभा, अर्चना और सुमन को तैरना नहीं आता था। अर्चना के शरीर का आधा हिस्सा बस की खिड़की में फंसा हुआ था।

शिवरानी ने झट से लवकुश की मदद से अर्चना को निकाला और नहर के ऊपर पहुंचा दिया। शिवरानी ने देखा कि विभा और सुमन भी पानी में डूब रही हैं। उसने अपने साथियों के साथ इन दोनों को निकालकर उनकी जान बचाई। स्वर्णलता द्विवेदी बस के पिछले हिस्से में फंसी हुई थी। वह खिड़की से निकलने की कोशिश में जुटी थी। रामपाल और धर्मपाल के साथ मिलकर स्वर्णलता को भी बाहर निकाल लिया।

पिंकी की हुई अस्पताल में मौत

शिवरानी ने अपने साथियों के साथ बस में सवार पिंकी गुप्ता को बस से जिंदा निकाला। उसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रामपुर पहुंचा दिया गया था, लेकिन उसके शरीर में काफी पानी जा चुका था। इसके चलते उसकी इलाज के दौरान मौत हो गई। पिंकी एएनएम की परीक्षा देने सतना जा रही थी।

हिम्मत से दी मौत को मात

अनिल तिवारी ने बताया कि जैसे ही बस नहर में डूबने लगी, उन्होंने बस की बंद खिड़की को जोर से हाथ मारा, जिससे खिड़की का कांच टूट गया। उन्हें तैरना आता था। अनिल ने अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए बगल में बैठे सुरेश गुप्ता को बचाने को कोशिश की और उनका हाथ पकड़कर खिड़की से बाहर खींच लिया। सुरेश गुप्ता 62 वर्ष के हैं, तैरना भी कम जानते थे लेकिन दोनों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़कर नहर का किनारा पकड़ लिया। करीब 300 मीटर दूर जाकर एक पत्थर मिला, जिसके सहारे दोनों अपनी जान बचा पाए।

सतर्कता और हिम्मत से बचाई खुद की जान

ज्ञानेश्वर चतुर्वेदी बस में सामने के कांच से आगे की ओर देख रहे थे। जैसे ही बस नहर में गिरने लगी तो उन्होंने खिड़की के कांच में पैर मारा और पानी में कूद गए। गनीमत यह रही कि वे बस के किसी हिस्से में नहीं फंसे। देखते ही देखते उनकी आंखों के सामने ही बस धीरे-धीरे डूब गई। वे नहर का किनारा पकड़कर तैरने लगे। तभी एक सीढ़ी मिली, जिसे पकड़कर ऊपर आ गए।