संसद द्वारा पारित तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन जारी है। सरकार के साथ किसान संगठनों की कई दौर की वार्ता भी हो चुकी है, लेकिन बेनतीजा रही है। न तो किसान नेता झुकने के लिए तैयार हैं और न ही सरकार तीनों कानूनों के वापसी की उनकी मांग मानती दिख रही है। अब आने वाले दिनों में किसान संगठनों के द्वारा पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में पंचायत-स्तर की सभा फिर से बुलाई जा सकती है। हालांकि उन्हें इस बात का भी इंतजार है कि सरकार कोई नया प्रस्ताव उन्हें दे।
अपने आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने के उद्देश्य से किसान संगठनों ने बुधवार को अपने संयुक्त विरोध मंच और उच्चतम निर्णय लेने वाली उनकी संस्था संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) की बैठक में आम सहमति पर पहुंचने के बाद औपचारिक रूप से अपनी योजनाओं की घोषणा करेंगे।
उनकी चार-स्तरीय रणनीति के व्यापक संदर्भों में विभिन्न राज्यों (पंजाब-हरियाणा-पश्चिमी यूपी के बाहर) में पंचायत-स्तर पर जुटना, अधिक ‘चक्का जाम’ शामिल है। टोल प्लाजा और दो कॉरपोरेट्स (अंबानी-अडानी) के उत्पादों का बहिष्कार करने की भी योजना बना रहे हैं। हालांकि बैठक के बाद अंतिम विवरणों की घोषणा की जाएगी।
रणनीति के तहत, किसान नेता भीड़ जुटाने के लिए आने वाले दिनों में दिल्ली के आसपास के विभिन्न स्थानों से प्रदर्शन स्थलों की ओर प्रस्थान करेंगे। यहां वे पीएम नरेंद्र मोदी की टिप्पणी ‘आंदोलनजीवी’ (पेशेवर प्रदर्शनकारी) और ‘परिजीवी’ (परजीवी) का इस्तेमाल करेंगे। इसके लिए वे ट्रेड यूनियनों की भी मदद मांगेंगे। साथ ही औद्योगिक श्रमिकों, बेरोजगार युवाओं और अन्य लोगों के बीच जाएंगे। वे लामबंदी के दौरान सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं के लिए ‘कॉर्पोरेटजीवी’ शब्द का उपयोग करेंगे।