ओवर द टॉप मीडिया र्सिवस यानी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर नियंत्रण की बात तो लंबे समय से की जा रही है लेकिन समस्या का समधान नहीं हो पा रहा है। हाल ही में वेबसीरीज तांडव और मिर्जापुर के बहाने एक बार फिर यह मुद्दा देश में चर्चा में है। जागरण ने साइबर विशेषज्ञ पवन दुग्गल से जानना चाहा कि आखिर ओटीटी को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है?

क्या वजह है कि हम ओटीटी प्लेटफार्म पर वेब सीरीज और उसके कंटेंट नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं? क्या यह मुश्किल है?

-हमारे पास कड़े कानून नहीं है और अभी सरकार इस दिशा में पूरी सक्रियता के साथ नहीं सोच रही है। अब समय आ गया है जब सरकार को तत्काल इस पर कदम उठाना चाहिए।

क्या हमारे पास कानून नहीं है?

-हमारे पास सिर्फ इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 है। यह अभी उतना सख्त नहीं है। यदि ओटीटी या सोशल मीडिया के कंटेंट को नियंत्रित करना है तो हमें चार कानून बनाना ही पड़ेंगे। हमें डाटा प्रोटेक्शन कानून, निजता कानून, सायबर सुरक्षा कानून की भी जरूरत है।

इन चार कानून की जरूरत

  • डाटा प्रोटेक्शन कानून
  • निजता संबंधि कोई कानून
  • सायबर सुरक्षा कानून नहीं है
  • इंटरनेट मीडिया को नियंत्रित करने

यह ध्यान रखें

  • इंटरनेट मीडिया न सोता है और न ही भूलता है…
  • आपने आज जो भी लिखा या देखा है वो रिकॉर्ड में दर्ज हो गया है

आपके अनुसार गड़बडी कहां है?

बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारतीय बाजार दिख रहा है। वे यहां तेजी से कमाई करना चाहती हैं लेकिन यहां के नियमों का पालन करने को तैयार नहीं है। ओटीटी प्लेटफॉर्म ने वर्ष 2012 से भारतीय बाजार में पैर जमाना शुरू कर दिया था। साल दर साल यह बढ़ता जा रहा है। हमें शुरुआत में ही सचेत होना चाहिए था।

अमेजन और नेटफ्लिक्स जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म के सर्वर विदेश में है? क्या मीडिया कंटेट पर फिल्टर लगाना संभव नहीं है?

देशभर में वेब सीरीज को लेकर कई बार शिकायतें हो चुकी है। सरकार के पास उसके आधार पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर कार्रवाई करने का पूरा अधिकार है। यह सिर्फ कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा डाटा नियमों के उल्लंघन का मामला नहीं है। 40-45 करोड़ लोग वाट्सएप से जुड़े है। 35 करोड़ फेसबुक इस्तेमाल करते हैं। इन कंटेट के बारे में सबसे ज्यादा प्रसारित किया जा रहा है। साल दर साल यह बढ़ता जा रहा है।

 

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