भारत में हमेशा से गोपनीय समझे जानेवाले सेक्स जैसे अहम् विषय पर बात या चर्चा करने से पढ़े-लिखे जागरुक लोग आज भी हकलाने लगते हैं, फिर बच्चों को सेक्स शिक्षा देना तो बहुत दूर की बात है… लेकिन हमारी ये हिचक हमारे बच्चों के भविष्य पर क्या असर डाल सकती है, इस बारे में कभी सोचा है हमने…? क्या ये सच नहीं कि आज बच्चों के इन सवालों का जवाब देना फिर भी आसान है, लेकिन कल उनकी समस्याओं को सुलझाना बहुत मुश्किल हो जाएगा…?
अक्सर माता-पिता बच्चों को सेक्स के बारे में यह सोचकर कोई जानकारी देना ज़रूरी नहीं समझते कि उन्हें भी तो उनके माता-पिता ने इस बारे में कुछ नहीं बताया था… तो क्या इससे उनके सेक्स जीवन पर कोई बुरा प्रभाव पड़ा? फिर आज तो ज़माना इतना एडवांस हो गया है कि उम्र से पहले ही बच्चों को सब कुछ पता चल जाता है… फिर अलग से कुछ बताने-समझाने की ज़रूरत ही क्या है? लेकिन अक्सर हमारी यही सोच बच्चों के लिए हानिकारक साबित होती है.
हम अपने बच्चों को सेक्स शिक्षा दें या न दें, उन्हें अश्लील पत्र-पत्रिकाओं, टीवी, फ़िल्म, इंटरनेट, यहां तक कि शौचालय की दीवारों से भी सेक्स संबंधी ऐसी कई आधी-अधूरी व उत्तेजक जानकारियां मिल ही जाती हैं, जो उन्हें गुमराह करने के लिए काफ़ी होती हैं. उस पर उनका चंचल मन अपने शरीर की अपरिपक्वता को देखे-जाने बिना ही सेक्स को लेकर कई तरह के प्रयोग करने के लिए मचलने लगता है और कई मामलों में वे इसे हासिल भी कर लेते हैं… और नतीजा? अनेक शारीरिक-मानसिक बीमारियां, आत्मग्लानि, पछतावा… और पढ़ाई, करियर का नुक़सान सो अलग…
लेकिन हमारी विडंबना ये है कि 21वीं सदी के जेट युग में जीते हुए भी अभी तक हम ये नहीं तय कर पा रहे हैं कि हम अपने बच्चों को सेक्स एज्युकेशन दें या न दें और दें तो कब और कैसे…? जबकि अब समय आ गया है कि सेक्स एजुकेशन दें या न दें से परे हम ये सोचें कि कैसे और किस उम्र से बच्चों को सेक्स शिक्षा दी जाए. बच्चों को सेक्स-शिक्षा देने का मापदंड और सही तरीक़ा क्या हो, बता रहे हैं सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. राजन भोसले.
जन्म से ही शुरुआत करें
चूंकि बच्चा भी हमारी तरह आम इंसान है और हर इंसान में सेक्स की भावना विद्यमान होती है, अतः बच्चे में भी जन्म से ही यह भावना मौजूद रहती है और वह अपने शरीर के सभी अंगों के बारे में जानने के लिए उत्सुक भी रहता है, जो कि बिल्कुल सामान्य बात है. लेकिन अधिकतर अभिभावक इस ओर ध्यान ही नहीं देते और बच्चों को सही मार्गदर्शन भी नहीं दे पाते.
कई बार ऐसा भी होता है कि हम स्वयं ही बच्चे के नाज़ुक मन में बचपन से ही सेक्स के बारे में उत्सुकता जगाने लगते है. बच्चा जब पैदा होता है तो उसे दुनिया-जहान यहां तक कि अपने शरीर के बारे में भी कुछ पता नहीं होता. ऐसे में जब कभी बच्चा अन्य अंगों की तरह अपने प्राइवेट पार्ट्स को हाथ लगाता है या सबके सामने बिना कपड़े पहने आ जाता है तो माता-पिता तुरंत उसे झिड़क देते हैं. उस समय उस मासूम को अपनी ग़लती का एहसास तो होता नहीं, उल्टे मन में उत्सुकता जागने लगती है कि आख़िर मेरे शरीर के इस हिस्से को छूने के लिए मना क्यों किया जाता है. अतः माता-पिता की डांट से बचने के लिए वह अकेले में अपने गुप्तांगों को छूने-सहलाने लगता है और माता-पिता को ख़बर तक नहीं होती. अतः माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों की सामान्य क्रियाओं पर भी उन्हें डराएं-धमकाएं नहीं, समय के साथ उनका व्यवहार ख़ुब-ब-ख़ुद बदल जाएगा.
3-4 वर्ष की उम्र में क्या बताएं?
3-4 साल की उम्र से ही समझा दें कि बेटा जिस तरह सभी लोगों के ब्रश, टॉवेल आदि बिल्कुल निजी और अलग-अलग होते हैं तथा उन्हें किसी और को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, ठीक उसी तरह तुम्हारे शरीर के ये हिस्से भी बिल्कुल निजी हैं, जिन्हें आपको किसी दूसरे के सामने नहीं खोलना चाहिए. साथ ही यह भी बताएं कि यदि कोई उसके इन अंगों को छूए या सहलाए तो वह फौरन आपको बता दे. ऐसा करने से हम बच्चों को उनके गुप्तांगों की निजता की जानकारी के साथ-साथ उन्हें बाल यौन शोषण से भी बचा सकेंगे.
5-6 वर्ष की उम्र में क्या बताएं
5-6 साल के बच्चे से मां कह सकती है कि आपको अब अपने प्राइवेट पार्ट्स मुझे भी नहीं दिखाने चाहिए, अतः अब आपको स्वयं स्नान करना होगा. इस तरह वे जान सकेंगे कि उनके प्राइवेट पार्ट बिल्कुल निजी हैं, जिन्हें किसी को भी देखने या छूने का हक़ नहीं.
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6-7 वर्ष में क्या बताएं
6-7 साल की उम्र के आस-पास के बच्चे माता-पिता पर बहुत ज़्यादा विश्वास करते हैं. वे अपने पिता को हीरो और मां को आदर्श मानने लगते हैं. उनके माता-पिता की कही बातें उनके लिए अंतिम वचन होती हैं. ऐसे में माता-पिता की ज़िम्मेदारी और भी ज़्यादा बढ़ जाती है कि वे अपने बच्चे के सामने ऐसी कोई हरकत या बात न करें, जिससे बच्चे के मन पर उनकी बुरी छवि बने, क्योंकि माता-पिता यदि इस उम्र में उनके सवालों का ग़लत जवाब देते हैं और बाद में उन्हें इसका पता चलता है, तो उनका माता-पिता पर से विश्वास उठने लगता है और उनके मन में बनी अपने अभिभावकों की श्रेष्ठ छवि भी धराशायी होने लगती है. अतः इस उम्र में माता-पिता को बहुत सतर्कता बरतनी चाहिए और बच्चों द्वारा पूछे सवालों का सही व तर्कपूर्ण जवाब देना चाहिए.
प्री-टीन्स (8 से 12 वर्ष)
इस समय बच्चों को उनके शरीर में आनेवाले बदलावों यानी माहवारी, स्तनों का विकास, गुप्तांगों में आनेवाले बाल आदि के बारे में बताएं. वैसे भी इस उम्र में लड़के-लड़कियां अपने शरीर में आनेवाले बदलावों को लेकर असमंजस की स्थिति में रहते हैं, ऐसे में आपका मार्गदर्शन उनकी कई उलझनें दूर कर सकता है.
अमूमन 12 वर्ष की उम्र में बच्चे सेक्स या बच्चे के जन्म-संबंधी बातों को समझने के लिए तैयार हो जाते हैं. उनके मन में सेक्स व सामाजिक संबंधों के बारे में जानने की उत्सुकता भी जागने लगती है. इस समय में उन्हें एसटीडी (सेक्सुअली ट्रांसमीटेड डिसीज़), टीन प्रेगनेंसी के नुक़सान आदि के बारे में बताएं, ताकि आगे चलकर वे ग़लत क़दम न उठा सकें.
टीनएजर्स (13 से 19 वर्ष)
ये उम्र का वो दौर होता है, जहां बच्चों को अपनी आज़ादी बेहद प्यारी होती है और उन पर अपने दोस्तों का बेहद असर होता है. कई बार न चाहते हुए भी दोस्तों की बातों में आकर युवा सेक्स को लेकर एक्सपेरिमेंट करने लगते हैं. फिर कई बार दोस्तों द्वारा मिला आधा-अधूरा ज्ञान उन्हें गुमराह भी कर देता है. दूसरे, सेक्स को लेकर इस उम्र में काफ़ी कुछ जानने की उत्सुकता भी रहती है. ऐसे में उत्तेजक जानकारियां उन्हें सेक्स के लिए उकसाने का भी काम कर सकती हैं. अतः इस उम्र में आप उन्हें टीन प्रेगनेंसी, सेक्सुअली ट्रांसमीटेड डिसीज़, गर्भपात से होनेवाली शारीरिक-मानसिक तकलीफ़ों से अवगत कराएं, ताकि वे गुमराह होने से बच सकें.
यूं करें बच्चे को सतर्क
बच्चों को अच्छे व बुरे स्पर्श के बारे में बताएं. यहां तक कि यदि कोई करीबी रिश्तेदार, पड़ोसी, टीचर या डॉक्टर आदि भी उन्हें ग़लत नीयत से छुए तो उन्हें ये हिदायत देकर रखें कि वे तुरंत आपको सूचित करें. आपकी ये ट्रेनिंग बच्चे को सेक्सुअल एब्यूज़ से बचाए रखेगी. क्योंकि कई बार ऐसा भी होता है कि करीबी लोगों के ग़लत स्पर्श को भी बच्चे ग़लत नहीं समझ पाते और जाने-अनजाने उनके मोहपाश में फंसते चले जाते हैं और माता-पिता को उनके सेक्सुअल शोषण की ख़बर तक नहीं लगती. और जब तक सच्चाई सामने आती है, तब तक कई बार बहुत देर हो चुकी होती है.
बच्चों के प्रश्नों का ग़लत जवाब न दें
अक्सर बच्चे माता-पिता से सवाल करते हैं कि उनका जन्म कैसे हुआ? इसके जवाब में कभी ‘तुम्हें हॉस्पिटल से लाए’, ‘भगवान जी से मांगा’ जैसे जवाब माता-पिता देते हैं, लेकिन ऐसा करना ठीक नहीं. आप बच्चे को इतना तो बता ही सकते हैं कि वो मां के गर्भ में अंडा बनकर आया, फिर गर्भ में ही बड़ा हुआ और वेजाइना के रास्ते बाहर आया. यानी बच्चे जब भी पूछें, उनके किसी भी सवाल का संतुष्टिपूर्ण जवाब अवश्य दें, ताकि उन्हें सही जानकारी भी मिले और उनका आप पर पूरा विश्वास भी बना रहे और आगे भी वे अपने मन में उपजी हर जिज्ञासा आपसे पूछ सकें. यदि आपको बच्चे द्वारा पूछे गए सवाल का फ़िलहाल कोई उत्तर नहीं सूझ रहा है तो उससे कहें कि आप उसके सवाल का जवाब थोड़ी देर बाद देंगे और फिर सोच-समझकर बच्चे के प्रश्नों का तथ्यपूर्ण उत्तर दें. इसके अलावा यदि आपका बच्चा सेक्स संबंधी कोई प्रश्न न पूछे तो इसका मतलब ये नहीं कि आप इस विषय को नज़रअंदाज़ कर दें. आप बच्चे को शरीर विज्ञान के तौर पर सेक्स एज्युकेशन दे सकते हैं.
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सेक्स को टालना सिखाएं
यदि आपके टीनएजर बच्चे के मन में सेक्स के बारे में जानने या सेक्स पर प्रयोग करने की भावनाएं आती हैं, तो इसमें कोई बुराई नहीं. लेकिन ये हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम उन्हें इसे सही समय तक टालना सिखाएं. हम अपने बच्चों को इस तरह समझा सकते हैं कि जिस तरह खाने-पीने, सोने-जागने का उचित समय होता है, जिस तरह जीवन में हर चीज़ के लिए अनुशासन ज़रूरी है, उसी तरह सेक्स जीवन में प्रवेश करने की भी एक उम्र होती है. शारीरिक-मानसिक रूप से अपरिपक्व युवा जब सेक्स का आनंद लेने की कोशिश करते हैं तो उन्हें सिवाय पछतावे, ग्लानि और शारीरिक-मानसिक तकलीफ़ के और कुछ भी हासिल नहीं होता. सेक्स स़िर्फ इच्छापूर्ति का ज़ारिया नहीं, बल्कि प्रेम के इज़हार और उत्तम संतान की उत्पत्ति का सशक्त माध्यम भी है. अतः उन्हें समझाएं कि सेक्स को मात्र भोग या हवस पूरी करने का माध्यम न मानकर जीवन के अहम पहलू के तौर पर लिया जाना चाहिए, ताकि सेक्स जीवन का सही आनंद लिया जा सके.
क्यों ज़रूरी है सेक्स एजुकेशन?
यूं तो हमारे न बताने पर भी बच्चों को दोस्तों, पत्र-पत्रिकाओं या फिर इंटरनेट के ज़रिए सेक्स की जानकारी मिल ही जाती है, फिर भी क्यों हमें उन्हें सेक्स एजुकेशन देना चाहिए, आइए जानते हैं-
* उन्हें अपने शरीर के बारे में संपूर्ण जानकारी हो सके.
* वे लड़का-लड़की दोनों के ही साथ कंफ़र्टेबल होकर बातचीत व व्यवहार कर सकें.
* उनके साथ या किसी अन्य के साथ हो रहे सेक्सुअल शोषण, बलात्कार आदि को समझ सकें और उसे रोकने में सहयोग कर सकें.
* किशोरावस्था में होनेवाले शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सेक्सुअल बदलावों को जानने-समझने के लिए तैयार हो सकें.
* आगे चलकर जब उनके मन में सेक्स की भावना उत्पन्न हो, तो उसे हेल्दी तरी़के से ले सकें तथा इसे लेकर उनके मन में कोई अपराध भावना न जन्म ले.
* एसटीडी (सेक्सुअली ट्रांसमीटेड डिसीज़) से बचाव को लेकर जागरुक हो सकें.
* आगे चलकर एक सुखद वैवाहिक जीवन जी सकें तथा आदर्श अभिभावक की ज़िम्मेदारी निभाने के लायक बन सकें.
स्कूलों में सेक्स शिक्षा दी जाए या नहीं
बच्चों को सेक्स शिक्षा देना बेहद ज़रूरी है, लेकिन भारतीय स्कूलों में यदि सेक्स शिक्षा दी जाए तो निम्न बातों पर ध्यान देना ज़रूरी है-
* सेक्स शिक्षा वही शिक्षक दें, जिनकी इस विषय पर अच्छी पकड़ हो तथा जो बच्चों के सवालों का जवाब वैज्ञानिक तथ्यों के साथ अर्थपूर्ण तरी़के से दे सकें.
* प्यूबर्टी पीरियड के शुरू होने से पहले सेक्स शिक्षा दी जाए.
* बच्चों को सेक्स शिक्षा देते समय भाषा तथा शब्दों पर विशेष ध्यान दिया जाए.
* धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यताओं से परे वैज्ञानिक व सामाजिक मापदंडों को ध्यान में रखकर सेक्स शिक्षा दी जाए.
* लड़के-लड़कियों को एक साथ सेक्स शिक्षा दी जाए, ताकि आगे चलकर इस मुद्दे पर बात करते समय वे हिचकिचाएं नहीं.
* सेक्स शिक्षा देते समय स्केचेज़, डायग्राम, चार्ट, स्लाइड्स आदि का प्रयोग किया जाए, नग्न तस्वीरों, पोर्नोग्राफ़ी आदि का बिल्कुल भी प्रयोग न हो.
* बच्चों को उनके सवाल लिखकर देने का सुझाव भी दें, ताकि बच्चे पूछने से हिचकिचाएं नहीं तथा शिक्षक उनके मन को अच्छी तरह जान-समझ सकें.
* सेक्स शिक्षा हमेशा ग्रुप में दी जाए, अकेले नहीं.