हिमाचल प्रदेश में 71.8 फीसद प्रत्याशी पैसा कमाने के लिए ही पंचायत चुनाव लड़ते हैं। लोग राजनीतिक दलों के मुकाबले व्यक्तिगत क्षमता का आकलन करते हुए प्रत्याशी के पक्ष में वोट करते हैं। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (एचपीयू) शिमला की ओर से किए सर्वे में ये तथ्य सामने आए हैं। इसमें पाया गया है कि 79.8 फीसद लोग अपने मत का इस्तेमाल प्रत्याशी की व्यक्तिगत क्षमता को देखते हुए करते हैं। एचपीयू के हिमालयन एकीकृत अध्ययन संस्थान के परियोजना अधिकारी डा. बलदेव नेगी और संजौली कॉलेज के राजनीति शास्त्र के सहायक प्रोफेसर डा. देवेंद्र कुमार शर्मा ने यह शोध किया है। इस दौरान प्रदेशभर में 67 ब्लॉक व 327 ग्राम पंचायतों के 514 लोगों से बात की गई है। इनमें छात्र, कर्मचारी, कारोबारी, युवा से लेकर बुजुर्ग हर वर्ग के व्यक्ति को शामिल किया गया।

प्रदेश में पंचायत चुनाव भले ही गैर राजनीतिक माने जाते हैं, लेकिन राजनीतिक दलों का पूरा हस्तक्षेप इसमें रहता है। इसके बावजूद पंचायत चुनाव में 67.7 फीसद लोग मतदान सामाजिक संबंधों को देखते हुए करते हैं। सर्वे में लोगों से पूछा गया कि वे जाति, वंश या क्षेत्र से प्रभावित होते हैं तो 56.4 फीसद ने साफ कहा कि इसका कोई असर नहीं होता है। 67.7 फीसद ने तो यहां तक कहां कि यदि अभिभावक क्षेत्र, जाति या अन्य किसी आधार पर वोट करने की बात करते भी हैं तो युवा इस बात को नहीं मानते।

सर्वे के अनुसार इन चुनावों में धन का इस्तेमाल कर भी जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी जाती है। 65.8 फीसद लोगों का मानना है कि पैसे के दम पर चुनाव जीतने की कोई कसर नहीं छोड़ी जाती है। महज 27.6 मतदाता ही मानते हैं कि कुछ अच्छे प्रत्याशियों का खर्च उनके समर्थक वहन करते हैं।

रास्ते, नालियों पर होते हैं चुनाव

पंचायत चुनावों के दौरान राष्ट्रीय मुद्दों का कोई असर नहीं होता है। सर्वे के दौरान 63.2 लोगों ने माना कि गांव की जनता को राष्ट्रीय मुद्दों से कोई सरोकार नहीं रहता है। 66 फीसद लोगों ने कहा कि गांव के रास्ते, नालियों से लेकर अन्य मसलों पर ही ये चुनाव होते हैं।

प्रधान पद आरक्षित होने से घटी रुचि

अधिकतर पंचायतों में प्रधान पद आरक्षित होने के बाद 55.1 फीसद लोगों की रुचि चुनाव में कम हो रही है। हालांकि यदि प्रधान का पद आरक्षित न हो तो लोगों की चुनाव में ज्यादा रुचि होती है।