पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री तथा राकांपा प्रमुख शरद पवार ने मंगलवार को कहा कि सरकार किसान आंदोलन को गंभीरता से ले और प्रधानमंत्री इस आंदोलन के लिए विपक्षी दलों पर दोष मढ़ना छोड़ें। उन्होंने आंदोलनकारी किसानों से वार्ता के लिए गठित तीन सदस्यीय मंत्री समूह पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी को इस मामले में कृषि तथा किसानों के मुद्दे की ‘गहरी समझ’ रखने वाले नेताओं को आगे करना चाहिए। अब तक पांच दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकला है।
यदि सरकार किसानों के साथ वार्ता में विफल रही तो विपक्ष भविष्य की रणनीति पर करेगा विचार: पवार
एक साक्षात्कार में पवार ने कहा कि यदि सरकार किसानों से अगले दौर की वार्ता में भी समाधान निकालने में विफल रही तो विपक्ष बुधवार को भविष्य की रणनीति पर विचार करेगा।
पूर्व कृषि मंत्री बोले- कृषि क्षेत्र में सुधार तो मैं भी करना चाहता था, लेकिन ‘इस तरह’ नहीं
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के इस दावे पर कि मनमोहन सिंह की सरकार में बतौर कृषि मंत्री वह (पवार) भी कृषि सुधार चाहते थे, लेकिन राजनीतिक दबाव के कारण विफल रहे, पवार ने कहा कि निश्चित ही वह कृषि क्षेत्र में सुधार लाना चाहते थे, लेकिन इस तरह नहीं, जैसा भाजपा सरकार ने किया है। वह आज के सुधार से बिलकुल अलग था।
पवार ने कहा- मैंने सुधार की पहल से पूर्व सभी राज्य सरकारों से विमर्श किया था
पवार ने कहा कि उन्होंने सुधार की पहल से पूर्व सभी राज्य सरकारों से विमर्श किया था और तब तक आगे नहीं बढ़े जब तक उनकी आपत्तियों का समाधान नहीं हो गया। उन्होंने कहा कि खेती दिल्ली में बैठकर नहीं होती है, क्योंकि किसान गांवों में कड़ी मेहनत करता है और इस मामले में राज्य सरकारों की बड़ी जिम्मेदारी होती है। इसलिए जब अधिकांश कृषि मंत्रियों को कुछ न कुछ आपत्तियां हैं तो केंद्र सरकार का यह दायित्व है कि इस मामले में आगे बढ़ने से पहले उन्हें विश्वास में लेकर उनके मुद्दों का समाधान करे।
पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा- केंद्र ने विधेयक तैयार करने से पहले राज्यों से विमर्श नहीं किया
उन्होंने आरोप लगाया कि इस बार केंद्र ने विधेयक तैयार करने से पहले न तो राज्यों से विमर्श किया और न ही राज्यों के कृषि मंत्रियों की कोई बैठक बुलाई। सरकार ने अपने दम पर संसद में विधेयक पारित करा लिए और उसी से ये समस्याएं शुरू हुई हैं।
राकांपा प्रमुख शरद पवार ने कहा- राजनीति और लोकतंत्र में बातचीत होनी चाहिए
उन्होंने कहा कि राजनीति और लोकतंत्र में बातचीत होनी चाहिए। लोकतंत्र में कोई सरकार कैसे कह सकती है कि वह बात नहीं सुनेगी या अपनी लाइन नहीं बदलेगी? सरकार ने तो एक तरह से इन तीनों विधेयकों को थोप दिया। केंद्र ने यदि राज्यों से विचार-विमर्श कर उन्हें विश्वास में लिया होता तो ऐसी परिस्थिति पैदा नहीं होती।