आजादी के पहले और उसके उपरांत हम भारत के लोग संविधान के अतिरिक्त ऐसी धुर भारतीय सोच विकसित करने में नाकाम रहे जो आधुनिक परिप्रेक्ष्य में भारतीयता का एक स्थिर दर्शन व परिभाषा प्रतिपादित करती। हम अब कहीं जाकर राष्ट्रीय हित की दिशा में चले हैं। समझौतापरस्त राजनीति वास्तव में विभाजनकारी सोच के लोगों को भी सत्ता में ले आती है। यह देश उसका प्रतिरोध नहीं करता, बल्कि उसे बर्दाश्त करता है। समय-समय पर इसके प्रमाण मिलते रहे हैं। साल 1971 भी ऐसा ही एक पड़ाव था जब हमें महान विजय प्राप्त हुई, जिसमें हमने द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत को दफन किया था। वह एक सैन्य विजय के साथ महान वैचारिक विजय भी थी। बस एक और कदम की दरकार थी कि कश्मीर विवाद समाप्त हुआ होता। हम पाकिस्तान के विचार को ध्वस्त कर देते। 1971 में गंवाए इस अवसर ने राजनेता इंदिरा गांधी के नजरिये की सीमाएं स्पष्ट कर दीं। शायद नेताओं की जमात सत्ता हित से आगे सोच भी नहीं पाती।
1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर भारत के विजय की 50वीं वर्षगांठ के आयोजन की शुरुआत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज नेशनल वार मेमोरियल में अमर जवान ज्योति से ‘स्वर्णिम विजय मशाल’ को प्रज्वलित करेंगे। रक्षा मंत्रालय के एक बयान के मुताबिक, अमर जवान ज्योति से चार विजय मशाल प्रज्वलित की जाएंगी, जिन्हें देश के विभिन्न हिस्सों में ले जाया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर ‘स्वर्णिम विजय मशाल’ को प्रज्जवलित करेंगे। पीएम नरेंद्र मोदी थोड़ी देर में नेशनल वॉर मेमोरियल पहुंचेंगे। इस मौके पर वह शहीदों को श्रद्धांजलि देंगे और स्वर्णिम विजय यात्रा को रवाना करेंगे। इस मौके पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, सीडीएस बिपिन रावत और तीनों सेनाओं के प्रमुख भी मौजूद रहेंगे।
ये मशाल 1971 के युद्ध के लिए वीर चक्र तथा महावीर चक्र विजेताओं के गांवों में भी जाएंगी। इन पदक विजेता वीरों के गांवों तथा जहां अहम लड़ाई लड़ी गई, उन जगहों की मिट्टी नेशनल वार मेमोरियल लाई जाएगी।1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर विजय हासिल किए जाने की याद में भारत 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाता है। इसी विजय से बांग्लादेश का निर्माण हुआ था।
जानें इसे क्यों कहा जाता है ‘विजय दिवस’
16 दिसंबर, 1971 को देश की पश्चिमी सीमा पर बसंतर नदी के किनारे खुले मोर्चे पर भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को हरा दिया था। इसलिए भारतीय सेना 16 दिसम्बर को ‘विजय दिवस’ मनाती है।
कहां-कहां से होकर गुजरेगी यात्रा ?
विजय यात्रा दिल्ली से चलकर मथुरा होते हुए भरतपुर, अलवर, हिसार, जयपुर, कोटा, आदि सैन्य छावनी क्षेत्रों और उनके दायरे में आने वाले शहरों का भ्रमण करती हुई वापस दिल्ली पहुंचेगी। यात्रा की अवधि एक साल की होगी। यात्रा बांग्लादेश की राजधानी ढाका भी जाएगी।