इन दिनों हैदराबाद का स्थानीय चुनाव जहां मीडिया की सुर्खियां बना हुआ है वहीं लोगों की भी दिलचस्पी इसको लेकर काफी बढ़ गई है। इसकी बड़ी वजह भाजपा है। दरअसल, भाजपा ने इस चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी है। पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इस चुनाव के प्रचार में दिखाई देने वाले हैं। इसको लेकर हर किसी के जेहन में एक सवाल उठ रहा है कि आखिर केंद्र की सत्ताधारी और इस समय सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी का इस तरह के स्थानीय चुनाव में इतने ताम-झाम के साथ उतरने का क्या मतलब है।
क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार
राजनीतिक जानकार इस सवाल के जवाब को बखूबी जानते हैं। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप सिंह का कहना है कि भाजपा इसके माध्यम से मोहम्मद असदुद्दीन औवेसी को उनके ही घर में चुनौती देना चाहती है। इसका मकसद एआईएमआईएम को उसके ही गढ़ में कमजोर करना है। ऐसा करके भाजपा अपने लिए आगे की राह आसान करना चाहती है। दरअसल, भाजपा को लगता है कि कर्नाटक के बाद तेलंगाना उसके लिए दूसरा ऐसा राज्य बन सकता है, जहां पर वो एक बड़ी ताकत बन सकती है। उनका ये भी मानना है कि बीते लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने इतनी ताकत नहीं झोंकी थी। इसके बाद भी वहां से भाजपा की झोली में चार सीट आ गई थीं। इसके बाद पार्टी को ऐसा लगता है कि यदि उस वक्त यहां पर ताकत लगाई होती तो ये सीटें बढ़ सकती थीं। उस कमी को पार्टी अब आगामी विधानसभा चुनाव में पूरा करना चाहती है।
हाशिये पर है कांग्रेस
प्रदीप सिंह मानते हैं कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कांग्रेस हाशिये पर है और तेलुगू देशम पार्टी को भी लोग पसंद नहीं करते हैं। इसकी वजह उसका तेलंगाना के गठन का विरोध करना रहा है। ऐसे में पार्टी को यहां पर ताकत दिखाने से फायदा हो सकता है। हालांकि यहां पर एआईएमआईएम की अच्छी पकड़ है, इसलिए भाजपा की टक्कर भी सीधे तौर पर इसी पार्टी के साथ है। स्थानीय चुनाव में यदि भाजपा अच्छा कर जाती है तो इसका फायदा उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में मिल सकता है। भाजपा ये भी मानती है कि एआईएमआईएम जिस तरह से देश के दूसरे राज्यों में अपने पांव फैला रही है, वो देशहित में नहीं है। ऐसे में उसको रोकना भी जरूरी है। इसके लिए उसको उसके ही गढ़ में हराने का मैसेज भाजपा की बढ़त में काफी बड़ी भूमिका निभा सकता है। बतौर राजनीतिक विश्लेषक उनका ये भी कहना है कि भाजपा को इस बात की उम्मीद है कि आगामी विधानसभा चुनाव के लिए यदि अभी से मेहनत की जाए तो उस वक्त वो कम से कम राज्य में दूसरी बड़ी ताकत जरूर बन सकती है।
औवेसी के लिए यहां जीतना बना नाक का सवाल
आपको यहां पर ये बताना जरूरी है कि इस चुनाव में भाजपा के खेमे की ही तरफ से पूरी ताकत नहीं झोंकी जा रही है, बल्कि एआईएमआईएम की तरफ से भी औवेसी खुद इसकी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। वो लगातार लोगों से पैदल संपर्क साधकर जनसमर्थन जुटाने की कवायद में लगे हैं। उनके लिए भाजपा से पार पाना नाक का सवाल भी बन गया है। यदि औवेसी यहां पर नाकाम होते हैं तो न सिर्फ उनकी छवि को गहरा धक्का लगेगा, बल्कि उसके दूसरे राज्यों में बढ़ते कदमों पर भी रोक लग जाएगी।
एआईएमआईएम पर एक नजर
गौरतलब है कि औवेसी के लिए हैदराबाद हमेशा से ही पार्टी के लिए एक कवच की तरह रहा है। 1927 में जब इस पार्टी का गठन हुआ था तब ये केवल तेलंगाना तक ही सीमित थी। 1984 के बाद से लगातार इस पार्टी की झोली में हैदराबाद की लोकसभा सीट जाती रही है। वर्ष 2014 में हुए तेलंगाना विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने 7 सीटें जीती थीं। इसके अलावा इसी दौरन पहली बार ये पार्टी राज्य के बाहर महाराष्ट्र में विधानसभा की दो सीटें जीतने में कामयाब रही थी। हाल ही में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 5 सीटें हासिल की है। अब उसकी निगाह पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव पर भी लगी हुई है।