बिहार में पहले चरण की 71 सीटों पर हुए मतदान में युवाओं ने एक हद तक पुरानी धारणाओं को तोड़ दिया है। राजनीतिक दलों ने टिकट वितरण में चाहे जातियों का जितना ख्याल रखा हो, लेकिन युवाओं के रुझान से साफ है कि उन्होंने विकास और रोजगार को सबसे ऊपर रखा। इस चुनाव में शुरू से ही विकास और रोजगार के मुद्दे हावी और प्रभावी दिख रहे थे, परंतु जैसे-जैसे राजनीतिक सरगर्मी बढऩे लगी, वैसे-वैसे जातीय गोलबंदी की कोशिशें भी परवान चढऩे लगीं। आखिरकार युवाओं ने नकारात्मक कयासों पर पलीता लगा दिया। अपने सपनों के मुताबिक नए बिहार के निर्माण और प्रत्याशियों की तकदीर तय करने के लिए बुधवार को नई पीढ़ी ने जमकर वोट डाले। सुबह से ही मतदान केंद्रों पर बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ पड़ी थी, जिसमें अधिकांश भागीदारी युवाओं की ही थी। माना जा रहा है कि युवाओं के इस ट्रेंड का असर बाकी दो चरणों पर भी पड़ सकता है।
40 साल से कम उम्र के वोटरों की संख्या 51 फीसद से ज्यादा : निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में पहली बार वोट डालने वाले युवाओं की संख्या भी करीब डेढ़ फीसद है। 40 साल से कम उम्र के वोटरों की संख्या 51 फीसद से ज्यादा है। इसमें भी 20 से 29 वर्ष के 23 फीसद मतदाता हैं। ये ऐसे युवा हैं, जो तरक्की पसंद हैं। पुरानी पीढ़ी से ज्यादा समझदार भी। प्रत्याशियों को परखने और वादों की हकीकत को समझने का नजरिया भी अलग है। इन्हें जात-पात से ज्यादा लेना-देना नहीं है। इन्हें रोजगार चाहिए। खुद के साथ-साथ समाज का भी विकास चाहिए। ये अपने घर-परिवार को प्रभावित भी करने में सक्षम हैं। इसलिए इनका बाहर निकलकर बूथों पर जाने का मतलब अलग होगा। यही कारण है कि शुरू से ही सभी दलों की नजर युवा वोटरों पर ज्यादा है। इन्हें रिझाने-समझाने का प्रयास किया जा रहा है। प्रत्याशी चयन में राजनीतिक दलों का जातीय नजरिया, जनसभाओं में स्टार प्रचारकों के बिगड़े बोल, सियासी तल्खी, दल-बदल, नौकरशाही, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और घोटालों के आरोप-प्रत्यारोपों से आजिज युवाओं को भरोसा है कि नई सरकार उनके ही सपनों के अनुसार चलेगी। विकास, रोजगार और शिक्षा के सिर्फ वादे नहीं करेगी, बल्कि उसके लिए प्रयास भी करेगी। यही कारण है कि पहली बार बूथों तक पहुंचने वाले युवा कुछ ज्यादा ही उत्साहित दिखे। उन्हें अब इंतजार है, 10 नवंबर का, जिस दिन उनकी उम्मीदों पर मुहर लगने की मुहूर्त बन रही है।