दूरसंचार विभाग भारत में भी इस सेवा का प्रसार चाहता है। विभाग के कहने पर इस सेवा को लेकर लाइसेंस देने के लिए भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण ने मसौदा जारी किया है। वर्तमान में सेटेलाइट संचार सेवा सीमित रूप से चलाई जा रही है। सरकार सरकार इसका व्यवसायीकरण चाहती है।
सरकार सेटेलाइट संचार सेवा के प्रसार के लिए सरकारी व निजी सभी प्रकार की कंपनियों को लाइसेंस देने की तैयारी कर रही है। वहीं, रेलवे व स्टेट ट्रांसपोर्ट जैसी अन्य सरकारी एजेंसियां अपना कैप्टिव सेटेलाइट आधारित संचार केंद्र स्थापित कर पाएंगी। सेटेलाइट संचार सेवा के प्रसार से इस क्षेत्र में निवेश में भी बढ़ोतरी होगी, क्योंकि कई स्टार्ट-अप्स अपने छोटे-छोटे सेटेलाइट के जरिये कंपनियों को संचार सेवा मुहैया करा सकेंगे। अमेरिका व यूरोप के कई देशों में यह मॉडल काफी कारगर साबित हो रहा है।
दूरसंचार विभाग भारत में भी इस सेवा का प्रसार चाहता है। विभाग के कहने पर इस सेवा को लेकर लाइसेंस देने के लिए भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने मसौदा जारी किया है। वर्तमान में सेटेलाइट संचार सेवा सीमित रूप से चलाई जा रही है। सरकार सरकार इसका व्यवसायीकरण चाहती है।
TRAI के मुताबिक सेटेलाइट कम्यूनिकेशन का फायदा यह होगा कि दूरस्थ इलाके में भी मोबाइल फोन व इंटरनेट से जुड़ी अन्य चीजें पहुंचाई जा सकेंगी। वर्तमान में भी देश में ऐसे सैकड़ों गांव हैं जहां संचार सेवा उपलब्ध नहीं है। इससे देश में राष्ट्रीय स्तर पर संचार से जुड़े बुनियादी ढांचे का विकास होगा।
ट्राई के मुताबिक सेटेलाइट संचार सेवा के व्यवसायीकरण से सप्लाई चेन प्रबंधन, स्मार्ट ग्रिड्स, रेलवे, आपदा प्रबंधन, आंतरिक सुरक्षा, मत्स्य पालन, स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों को मुख्य रूप से लाभ मिलेगा। ट्राई के प्रस्ताव के मुताबिक राज्य परिवहन प्राधिकरण, भारतीय रेलवे व अधिक संख्या में वाहन रखने वाली अन्य कंपनियां कैप्टिव नेटवर्क स्थापित करने के लिए अलग से लाइसेंस ले सकेंगी। सेटेलाइट संचार सेवा के जरिये रेलवे सभी ट्रेन की आवाजाही, ट्रेन की सुरक्षा जैसी चीजों को एक जगह से कंट्रोल करने में सक्षम हो जाएगा।
ट्राई के मुताबिक ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्यूनिकेशन बाई सेटेलाइट (जीएमपीसीएस) सेवा के जरिये लाइसेंसधारक अपने इलाके में सेटेलाइट फोन सेवा चला सकता है। लाइसेंस मिल जाने पर ऑपरेटर अपने इलाके में सभी प्रकार की इंटरनेट व वॉयस सेवा यानी कॉलिंग की सुविधा भी मुहैया करा सकेगा। जीएमपीसीएस के लिए लाइसेंसधारक को भारत में अपना स्टेशन स्थापित करना होगा।
ट्राई के मुताबिक इन दिनों कई स्टार्ट-अप कंपनियां मात्र 1.3 किलोग्राम के उपग्रह के जरिये सेटेलाइट संचार सेवा मुहैया कराने में सक्षम हैं। इनकी लागत भी 10 लाख डॉलर यानी सात करोड़ रुपये से कुछ ही ज्यादा है। ट्राई का मानना है कि आने वाले समय में इस प्रकार के चलन में बढ़ोतरी होगी। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा जैसे देशों में सेटेलाइट आधारित संचार सेवा काफी सफल साबित हो रही है और इसका चलन भी तेजी से बढ़ रहा है।