पांच वर्ष पहले इसी तरह असम में सीएम के करीबी भाजपा के हिमंत बिस्वा सरमा ने पलट दी थी बाजी। भाजपा के हिमंत बिस्वा सरमा ने असम में कमल खिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

बंगाल विधानसभा चुनाव इस बार ऐतिहासिक होने जा रहा है। एक तरफ 34 वर्षों के वाम शासन का अंत कर 10 वर्षों से सत्ता पर काबिज ममता बनर्जी हैं तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा है। भगवा पार्टी चुनावी इतिहास में पहली बार बंगाल में सत्तारूढ़ दल को समान रूप से टक्कर दे रही है। तृणमूल से एक-एक कर नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं। भगवा दल ने सबसे बड़ा दांव ममता के खास सिपहसलार रहे सुवेंदु अधिकारी को अपने खेमे में शामिल कर चला। वह बंगाल में भाजपा के लिए हिमंत बिस्वा सरमा साबित होते हैं या नहीं यह तो दो मई को पता चलेगा। क्योंकि हिमंत ने असम में कमल खिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

बंगाल के विधानसभा चुनाव में मात्र 3 सीटें जीतने वाली भाजपा आज मुख्य लड़ाई में है। भाजपा ने ममता बनर्जी के किले को ध्वस्त करने के लिए पूरा जोर लगा रखा है। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं है कि भाजपा ने सीएम के सबसे खास नेता को अपने में शामिल करने की रणनीति के साथ सत्ता का पासा फेंका हो। 5 साल पहले पड़ोसी राज्य असम में भाजपा ने ऐसा ही किया था।

2016 के चुनाव में भाजपा ने असम में कांग्रेस के 15 साल के शासन को सत्ता से उखाड़ते हुए पूर्वोत्तर के राज्य में पहली बार जीत का डंका बजाया था। इसके पीछे तत्कालीन कांग्रेसी सीएम तरुण गोगोई के खास माने जाने वाले हिमंत बिस्वा सरमा थे। कांग्रेस के टिकट पर लगातार जलुकबाड़ी सीट से विधायक बन रहे सरमा ने सीएम गोगोई से मतभेद के बाद पार्टी छोड़ दी। 2015 में उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। इसके बाद वह खुद भी चुनाव जीते और साथ ही भाजपा भी सत्तासीन हो गई। वह ना सिर्फ कैबिनेट में शामिल हुए बल्कि उन्हें नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस का संयोजक भी बनाया गया।

अब भाजपा ने असम के उसी सूत्रो को बंगाल में भी लागू किया है। तृणमूल की शुरुआत से ही ममता के साथ लगे सुवेंदु बीते 25 साल से सक्रिय राजनीति में हैं। 2007 में तत्कालीन वाम सरकार के खिलाफ नंदीग्राम भूमि अधिग्रहण आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाने वाले सुवेंदु सांसद,विधायक और मंत्री भी रहे हैं। यह वही आंदोलन था, जिसने 2011 में ममता बनर्जी को सीएम की कुर्सी तक पहुंचाया था। सुवेंदु अब बगावत कर भाजपा में शामिल हो गए हैं और किसी भी कीमत पर ममता को हराने का एलान कर दिया है। उधर चार बार की विधायक एवं दशकों से तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी की करीबी सहयोगी रहीं सोनाली गुहा और सिंगुर आंदोलन का एक प्रमुख चेहरा रहे 80 वर्षीय रवींद्रनाथ भट्टाचार्य भाजपा में शामिल हो गए क्योंकि उन्हें चुनाव में टिकट नहीं दिया गया था। इसके पीछे भी सुवेंदु की ही भूमिका प्रमुख तौर पर देखी जा रही है।

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