साइंस’ नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन से साफ है कि उत्तरी अटलांटिक से चलने वाली लहर भारतीय मानसून को अनियमित करती है, जिस पर भारतीय अर्थव्यवस्था काफी हद तक निर्भर है। निष्कर्ष बताते हैं कि मानसून और इसकी परिवर्तनशीलता के साथ-साथ सूखे की स्थिति के बेहतर पूर्वानुमान के लिए प्रशांत और हिंद महासागर के अलावा मध्य अक्षांशों के प्रभाव का अध्ययन किया जाना जरूरी है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) के सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक एंड ओशनिक साइंसेज (सीएओएस) की एक टीम द्वारा किए गए अनुसंधान से पता चला है कि पिछली शताब्दी में भारतीय मानसून में अल-नीनो वाले वर्षों में जो सूखे की घटनाएं हुईं, वे उप-मौसमी थीं। यह अल नीनो के दौरान सूखे के विपरीत थीं, जहां पूरे मौसम में यह कमी बनी रहती है। यह अनुसंधान कार्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम के तहत विभाग द्वारा समर्थित था।

अनुसंधान दल ने 1900 से 2015 तक दो श्रेणियों के सूखे के दौरान दैनिक वर्षा का विश्लेषण किया और वर्षा की कमी की उत्पत्ति में आकस्मिक अंतर पाया। अल नीनो के दौरान सूखे में वर्षा की कमी जून के मध्य में शुरू होती है और उत्तरोत्तर बदतर होती जाती है। अगस्त के मध्य तक वर्षा की अत्यधिक कमी रहती है और यह कमी पूरे देश में दिखने लगती है और इसमें सुधार का कोई संकेत नहीं दिखता है।

गैर-अल नीनो सूखे के दौरान जून की वर्षा में मध्यम कमी होती है। इसके बाद जुलाई के मध्य से मौसम के चरम अगस्त के मध्य तक भरपाई के संकेत मिलते हैं। हालांकि, अगस्त के अंत में बारिश में अचानक और कमी आ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है।

सीएओएसके एसोसिएट प्रोफेसर और आईआईएससी के वरिष्ठ लेखकों में से एक जय सुखात्मेने ने कहा कि हमने अगस्त के अंत में उस प्रभावी घटक अथवा प्रणाली का पता लगाने की कोशिश की, जो भारतीय मौसम के व्यवहार को प्रभावित करता है। हमने उन गैर-अल नीनो वाले सूखे वर्षों में चलने वाली हवाओं पर गौर किया। सीएओएस में एसोसिएट प्रोफेसर और सह-लेखक वी. वेणुगोपाल ने बताया कि अगस्त के अंत से सितंबर की शुरुआत के दौरान ठंडे उत्तर अटलांटिक वायुमंडल पर ऊपरी स्तर की हवाओं और गहरे चक्रवात की विसंगतियों के प्रभाव से वायुमंडलीय विक्षोभ उत्पन्न होता है। यह विक्षोभ एक लहर के रूप में भारत की ओर मुड़ता है और तिब्बती पठार द्वारा मानसूनी हवाओं के प्रवाह को बाधित करता है।

इस शोध-पत्र में वायुमंडलीय टेली-कनेक्शन का अध्ययन किया गया था। यह अध्ययन विशेष रूप से प्रशांत क्षेत्र में प्रचलित संकेतों की अनुपस्थिति में सूखे की बेहतर भविष्यवाणी के लिए एक अवसर प्रदान करता है।

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