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(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘द स्टेट्समैन’ तथा ‘द हिन्दुस्तान टाइम्स’ के साथ काम कर चुकी हैं…)
65 वर्षीय ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की तीसरी बार सत्ता पाने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा के रूप में सबसे बड़े सियासी शत्रु केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को देख रही हैं. पिछले कुछ हफ्तों में उनकी पार्टी के कुछ प्रमुख सदस्यों को भाजपा में शाह की तरफ लुढ़कते देखा गया है. अंत में, कुछ आश्चर्यजनक तौर पर लेकिन उनकी वास्तविक मदद के रूप में हाथ बढ़े हैं- शरद पवार, जो महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की अगुवाई में गठबंधन सरकार के मुख्य शिल्पकार हैं, ने नए साल पर जनवरी के पहले हफ्ते में कोलकाता जाने का प्लान बनाया है. उनकी योजना ममता बनर्जी के साथ कोलकाता में साझा रैली को संबोधित करने की है.
बनर्जी और पवार, दोनों ने अपनी-अपनी क्षेत्रीय पार्टियां बनाने के लिए कांग्रेस छोड़ दी थीं. दोनों नेताओं ने संघीय ढांचे पर मोदी सरकार के हमले को उजागर करने की योजना बनाई है. शरद पवार, भारतीय राजनीति में सबसे लोकप्रिय लड़ाकों और संचालकों में से एक हैं, जिन्हें पीएम ने “राजनीतिक गुरु” के रूप में वर्णित किया है, और 80 साल की उम्र में भाजपा के मुंह से सरकार छीन कर मोदी-शाह की चुनावी बाजीगरी के खिलाफ क्षेत्रीय दलों के लिए एक सफल जीवन कोच के रूप में उभरे हैं.
कुछ सप्ताह पहले ही, ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनावों में बीजेपी आक्रामक नजर आई थी और मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (“केसीआर”), जिनकी पार्टी ने सबसे अधिक सीटें जीतीं, के खिलाफ प्रचार करने के लिए वहां अपने शीर्ष नेताओं की फौज उतार दी थी. इस चुनाव में भाजपा को बड़ी बढ़त मिली है. इस अनुभव ने ऐसे सभी क्षेत्रीय दलों के रोंगटे खड़े कर दिए हैं जो संसद में महत्वपूर्ण मुद्दों पर भाजपा के साथ कदमताल मिलाते रहे हैं या उनके पक्ष में मतदान करते रहे हैं या उसे मदद करने के लिए सदन में वोटिंग से गैरहाजिर होते रहे हैं. इन पार्टियों में केसीआर, ओडिशा में नवीन पटनायक और तमिलनाडु में एमके स्टालिन शामिल हैं, जहां मेगास्टार रजनीकांत अपनी राजनीतिक शुरुआत कर रहे हैं, जो भाजपा के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.
आधिकारिक सूत्रों ने मुझे इस बात की पुष्टि की है कि पवार इन सभी नेताओं के साथ एक हद तक पहुंच बना रहे हैं, ताकि उन्हें भाजपा द्वारा उनके अस्तित्व पर खड़े किए जा रहे खतरे के प्रति सचेत किया जा सके और उन्हें एक विशाल छतरी के नीचे लाने को राजी किया जा सके. पवार ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस बात के उदाहरण के रूप में सामने रखा कि भाजपा ने बिहार में कैसे बड़े भाई के रूप में उभरने के लिए जेडीयू का इस्तेमाल किया.
दिलचस्प बात यह है कि पवार और बनर्जी अशोक गहलोत, भूपेश बघेल और अमरिंदर सिंह जैसे कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों तक भी पहुंचे हैं, लेकिन गांधी परिवार तक नहीं पहुंच सके हैं. पवार कमलनाथ से भी लगातार संपर्क में हैं, जो हाल के दिनों में कांग्रेस में नए संकटमोचक के रूप में उभरे हैं (भले ही इस साल के शुरुआत में ही मध्य प्रदेश में उनकी सरकार चली गई हो).
ये राजनीतिक चहलकदमी क्षेत्रीय छत्रपों को भाजपा के बढ़ते क्षेत्रीय प्रसार को रोकने और संघीय ढांचे के खिलाफ उसके आचरण के मद्देनजर एकजुट करने की कोशिशों के तहत की जा रही है. पवार की पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने मुझे बताया कि वे उत्तर प्रदेश को छोड़कर सभी विपक्षी ताकतों तक पहुंच चुके हैं, जो भाजपा के खिलाफ लड़ाई के लिए उतावले हैं.
ऐसा माना जाता है कि शरद पवार ने ममता बनर्जी को सार्वजनिक आक्रामकता को कम करने और अमित शाह की बंगाल की यात्राओं के खिलाफ नाराजगी जताने की सलाह दी है (शाह 12 जनवरी को अगली रैलियों के आयोजन के लिए फिर से बंगाल आ रहे हैं). असामान्य रूप से बनर्जी ने उन्हें धैर्यपूर्वक सुना. पवार की दूसरी सलाह यह थी कि उन्हें सार्वजनिक रूप से यह घोषणा करनी चाहिए कि उनके परिवार का कोई भी सदस्य कोई भी पद नहीं संभालेगा. यह उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी के बढ़ते प्रभाव और उसके आधार पर अमित शाह द्वारा लगाए गए वंशवाद के आरोप का मुकाबला करने के लिए होगा. बनर्जी की पार्टी के नेताओं का कहना है कि जब उन्होंने यह उद्घोषणा कर दी है, फिर भी मीडिया जानबूझकर ऐसे महत्वपूर्ण घोषणा की अनदेखी कर रहा है.
पवार ने जब से महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए घोर चिर प्रतिद्वंद्वियों की एक टीम बनाई है, तब से उनका राजनीतिक कद और बढ़ गया है. वह हमेशा राजनीतिक स्थितियों के प्रति जागरूक बने हुए हैं. लिहाजा, वह एकजुट विपक्ष के लिए एक महान सम्मानित नेता हो सकते हैं. बेशक इसमें यूपीए अध्यक्ष का बेहद प्रभावशाली पद शामिल है, जो वर्तमान में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के पास है. गांधी रिटायर होना चाहती हैं और कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं को लगता है कि पवार की कांग्रेस में ‘घर वापसी’ की योग्यता है. इसके लिए उन्हें यूपीए अध्यक्ष पद की पेशकश की जा सकती है जो उनके लिए एक प्रलोभन भी हो सकता है.
बाकी विपक्ष भी इस बात पर एकमत और स्पष्ट है कि अगर कांग्रेस एकजुट मोर्चे का हिस्सा बनने के बारे में अपना मन नहीं बना पाती है, तो यह बेहद विचलित करने वाला हो सकता है कि अगले राष्ट्रपति के तौर पर विपक्षी उम्मीदवार कौन होगा? और यह गैर भाजपाई दलों के लिए कोई भी नई चाल चल सकता है. बनर्जी की पार्टी के एक नेता ने कहा, “कांग्रेस ने हाल के दिनों में मौजूदा राजनीतिक झुकाव को कम कर दिया है. वास्तविकता यह है कि वे अब तीसरे पहिये हैं क्योंकि वे महाराष्ट्र सरकार में शामिल हैं, उन्हें इस मुहिम को धार देने के लिए आगे आने की जरूरत है.”
अगर शरद पवार पश्चिम बंगाल में विपक्षी पार्टियों को एक ठोस टीम के रूप में एकसाथ रखने में सफल होते हैं तब उनके इस मॉडल को आगामी चुनावों के लिए जल्द ही अन्य राज्यों में तेजी से कॉपी करने लायक माना जाएगा, तभी उनकी यह कुल राजनीतिक पूंजी दुर्जेय होगी.