केंद्र सरकार के खिलाफ बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अब एक नया मोर्चा खोल दिया है। चुनावी मौसम में इस तरह का विरोध सामान्य है। परंतु अगर बात राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी हो और उसका विरोध किया जा रहा हो तो उसे सियासी स्वार्थ ही कहा जाएगा। बुधवार को पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ शब्दों की मर्यादा तोड़ने के बाद कोरोना वैक्सीन उपलब्ध कराने को लेकर पीएम को पत्र लिखा। इसके महज 24 घंटे के भीतर ही ममता ने गुरुवार को प्रधानमंत्री को एक और पत्र भेज दिया। इस बार पत्र उन्होंने शिक्षा मंत्रलय के एक ज्ञापन को लेकर लिखा है।

उन्होंने पीएम से मांग की है कि शिक्षा मंत्रलय को निर्देश दें कि वह उस संशोधित दिशानिर्देश को तत्काल वापस ले, जिसमें राज्य सरकार से सहायता प्राप्त विश्वविद्यालयों को वैश्विक सम्मेलनों के आयोजन से पहले मंत्रलय की मंजूरी लेने को कहा गया है। मंत्रलय ने 15 जनवरी को कहा था कि सरकार द्वारा पोषित विश्वविद्यालय अगर राष्ट्रीय सुरक्षा या फिर प्रत्यक्ष तौर पर भारत के आंतरिक मामलों से जुड़े मुद्दों पर ऑनलाइन वैश्विक सम्मेलन आयोजित करना चाहते हैं तो उन्हें मंत्रलय से पहले इसकी मंजूरी लेनी होगी।

परंतु यहां सवाल यह उठ रहा है कि आखिर ममता इस निर्देश का विरोध क्यों कर रही हैं? उन्होंने पत्र में विश्वविद्यालयों के शीर्ष स्तर के स्वशासन और स्वतंत्रता का अनुभव होने की जो बात लिखी है क्या वह बंगाल में है? यहां तो विश्वविद्यालयों पर सत्तारूढ़ दल का ऐसा वर्चस्व है कि कुलपति से लेकर रजिस्ट्रार तक बिना राज्य सरकार की अनुमति के कुछ नहीं करते। फिर सिर्फ यह दुहाई देना उचित नहीं है। यह सही है कि विश्वविद्यालयों को पूरी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, लेकिन देश विरोधी गतिविधियों के लिए छूट भी नहीं मिलनी चाहिए।

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