राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 ई को गुजरात राज्य के पोरबंदर शहर में हुआ था। बचपन से गांधी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। गांधी जी का संबंध पंसारी जाती से था। उनके पिता जी का नाम करमचंद और और माता जी का नाम पुतलीबाई था। पुतलीबाई की धर्म में अगाध आस्था थी। गांधी जी की माता हर समय भगवान की पूजा-उपासना और सुमरन किया करती थी। जैन परम्पराओं के संपर्क और माता जी की भक्ति से गांधी जी पर आध्यात्मिक प्रभाव पड़ा। इससे गांधी जी के जीवन में व्यापक बदलाव हुआ। हालांकि, गांधी जी के शाकाहारी होने के पीछे अन्य वजह हैं। अगर आपको नहीं पता है, तो आइए जानते हैं-

गांधी जी शाकाहारी कैसे बनें

इतिहासकारों का मानना है कि गांधी जी बाल्यावस्था में मांसाहारी थे। कई अवसर पर उन्होंने नॉन वेज का स्वाद चखा था। हालांकि, समय के साथ गांधी जी में नॉन वेज के प्रति अरुचि बढ़ती गई। एक बार गांधी जी मांसाहारी और शाकाहारी भोजन को लेकर असमंजस में पड़ गए। यह बात उस समय की है। जब गांधी जी शिक्षा हेतु लंदन जा रहे थे। उस समय उनकी माता और चाचा जी ने उन्हें तीन चीजें मांस, मंदिरा और गलत संगत से दूर रहने की सलाह दी। गांधी जी ने माता और चाचा जी को वायदा किया कि लंदन में वे इन चीजों से परहेज करेंगे। उस समय से ही गांधी जी ने शाकाहार को अपना लिया। वर्तमान समय में पीएम मोदी समेत दुनियाभर के कई दिग्गज व्यक्ति शाकाहारी हैं।

गांधी जी के विचार

गांधी जी ने The Moral Basis of Vegetarianism किताब लिखी हैं। इसमें उन्होंने शाकाहारी भोजन पर प्रकाश डालने की कोशिश की है। इस बारे में उनका कहा था कि शाकाहारी भोजन के सेवन से मन सात्विक होता है और शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। साथ ही आर्थिक दृष्टि से यह लाभप्रद है। फलों और सब्जियों में सभी पोषक तत्व पाए जाते हैं, जिनसे व्यक्ति सदैव सेहतमंद रह सकता है। वहीं, मांसाहारी भोजन करने से व्यक्ति कभी भी सात्विकता को नहीं पा सकता है। उसका मन कभी स्थिर नहीं रह सकता है।

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