फाइबर ऑप्टिक्स.. यह शब्द सुनकर दिमाग में हाई-स्पीड इंटरनेट केबल का विचार आता है। विज्ञान की गहराइयों में जाकर समङों तो यह लचीले तंतुओं के माध्यम से प्रकाश को प्रसारित करने का विज्ञान है। कंप्यूटर से जुड़ी अधिकतर चीजों की खोज विदेश में हुई है, लेकिन कम ही लोगों को पता है कि फाइबर ऑप्टिक्स शब्द गढ़ने वाले नरिंदर सिंह भारत में पैदा हुए और यहीं पढ़े हैं। उनकी पिछले महीने अमेरिका में मृत्यु हो गई। वे एक ऐसे गुमनाम हीरो हैं, जिसने दुनियाभर के अरबों लोगों के जीवन में योगदान दिया।
94 वर्षीय डॉ. नरिंदर सिंह कपानी का जन्म पंजाब के मोगा में हुआ था, लेकिन उन्होंने अपनी अंतिम सांस कैलिफोíनया के रेडवुड सिटी में ली। वह देहरादून के पहाड़ी शहर में पले-बढ़े थे। वर्ष 1948 में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद में वर्ष 1955 में इंपीरियल कॉलेज लंदन से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। कपानी के कारण ही आधुनिक विश्व में इंटरनेट क्रांति संभव हो सकी। वैज्ञानिकों का मानना है कि वे दूरदर्शी व्यक्ति थे, जिन्होंने फाइबर आप्टिक्स शब्द से दुनिया का परिचय कराया। फाइबर ऑप्टिक्स, लेजर और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में उनके शोध ने जैव-चिकित्सा उपकरणों, रक्षा, संचार और प्रदूषण-निगरानी में अहम किरदार निभाया है।
वर्ष 2003 में आई पुस्तक सैंड टू सिलिकॉन : द अमेजिंग स्टोरी ऑफ डिजिटल टेक्नोलॉजी में भारतीय भौतिक विज्ञानी शिवानंद कानवी ने कपानी के बारे में उन्हीं के शब्दों में बताया है कि, जब मैं देहरादून में हिमालय की खूबसूरत तलहटी में एक हाई स्कूल का छात्र था, तो मेरे मन में विचार आया कि प्रकाश को एक सीधी रेखा में यात्र करने की आवश्यकता नहीं है और इसे मोड दिया जाए। यह विचार मैंने आगे बढ़ाया।
भारतीय भौतिक विज्ञानी शिवानंद कानवी उन कई विज्ञानियों में से एक हैं जो मानते हैं कि कपानी के योगदान पर रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा ध्यान नहीं दिया गया। यह संस्था नोबेल पुरस्कार का चयन करती है। चीनी वैज्ञानिक चाल्र्स केकाओ को भौतिक विज्ञान के लिए वर्ष 2009 में नोबेल पुरस्कार मिला था। उन्हें यह सम्मान तंतुओं में प्रकाश के ऑप्टिकल संचरण से जुड़े शोध के लिए मिला। कानवी कहते हैं, कपानी ने पहली बार सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया था कि प्रकाश को कांच के फाइबर के माध्यम से परिवíतत किया जा सकता है।
एक विज्ञानी, इंजीनियर और उद्यमी के रूप में अपने शानदार करियर के दौरान कपानी ने फाइबर ऑप्टिक्स और उद्यमशीलता पर चार पुस्तकें लिखीं। वर्ष 1999 में फॉच्यरुन में उन्हें सदी के श्रेष्ठ उद्योगपतियों पर आधारित अंक में अनसंग हीरो कहा। कपानी को पहली सफलता वर्ष 1953 में मिली जब उन्होंने लंदन के इंपीरियल कॉलेज में अपने पीएचडी गाइड हेरोल्ड होरेस हॉपकिंस के साथ सफलता के साथ उच्च गुणवत्ता वाली छबि को फाइबर बंडल के माध्यम से ट्रांसमिट किया।
ऐसा करने वाले वह पहले व्यक्ति बने। दोनों ने 2 जनवरी 1954 को जर्नल नेचर में अपने परिणाम प्रकाशित किए और उसके बाद कभी पीछे पलटकर नहीं देखा। इस उपलब्धि के बाद उन्होंने वर्ष 1960 में लिखे आलेख में फाइबर ऑप्टिक्स शब्द का इस्तेमाल किया। उन्होंने लिखा, यदि प्रकाश को एक ग्लास फाइबर के एक छोर में निर्देशित किया जाता है, तो यह दूसरे छोर पर उभरेगा। इस तरह के फाइबर के बंडलों का उपयोग छवियों का संचालन करने और उन्हें अलग-अलग तरीकों से बदलने के लिए किया जा सकता है।
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