इंटरनेट के क्षेत्र में विदेशी साइटों की बढ़ती ताकत से सरकार सतर्क, ट्रंप पर ट्विटर के एक्‍शन से उठे सवाल

इंटरनेट मीडिया साइट ट्विटर ने जिस तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अपने प्लेटफार्म से बाहर किया है उसको लेकर भारत में अलग-अलग तरह से प्रतिक्रिया जताई जा रही है। सत्तारूढ़ भाजपा के कुछ नेताओं ने जहां कड़ी आपत्ति जताई वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को इन कंपनियों की बढ़ती ताकत को लेकर सर्तक रहने की जरूरत है। बगैर किसी देरी के इंटरनेट मीडिया साइट्स को लेकर अपना सुरक्षा कवच मजबूत करना चाहिए।

डाटा प्रोटेक्शन विधेयक की जरूरत

संसद में लंबित डाटा प्रोटेक्शन विधेयक तेजी से पारित कराने की जरूरत बताई गई ताकि भारत में इन साइट्स का इस्तेमाल करने वाले लोगों के अधिकारों की कुछ रक्षा सुनिश्चत हो सके। एक बड़ा वर्ग ट्विटर के इस कदम को सही भी मानता है क्योंकि ट्रंप ने राष्ट्रपति रहते अमेरिका की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाने का काम किया है।

विदेशी कंपनियों के रवैये पर गहरी नजर

सरकारी सूत्रों का कहना है कि वह एक इंटरनेट मीडिया साइट की तरफ से अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के अकाउंट को बंद करने के साथ वाट्सएप की तरफ से अपने नियम-शर्तों में हो रहे बदलाव को लेकर आने वाली प्रतिक्रियाओं पर नजर रखे हुए हैं। सरकार का मानना है कि विदेशी कंपनियों की साइट्स मौजूदा परिवेश में विचारों को सामने रखने का एक बढि़या प्लेटफार्म हैं जिनका समाजिक व आर्थिक विकास पर सकारात्मक असर हो रहा है।

भारतीय संविधान के दायरे में करें काम

पूर्व में इन कंपनियों के साथ बैठक में स्पष्ट किया जा चुका है कि इन्हें भारतीय संविधान के दायरे में काम करना होगा। अगर कोई इस प्लेटफार्म का गलत उपयोग करेगा तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। आगे भी सरकार इस बात का ख्याल रखेगी और अपनी चौकसी बढ़ाएगी ताकि देश की लोकतांत्रिक व चुनावी प्रक्रियाओं में किसी विदेशी कंपनी के जरिए हस्तक्षेप नहीं किया जा सके।

विधेयक पर हो रहा विचार

इस संदर्भ में जानकार संसद में पेश डाटा प्रोटेक्शन विधेयक का उदाहरण देते हैं जिसके पारित होने के बाद देश में संचालित किसी भी इंटरनेट मीडिया साइट का इस्तेमाल करने वाले भारतीयों के अधिकारों को सुनिश्चित किया जा सकेगा। विधेयक पर फिलहाल संयुक्त संसदीय समिति विचार कर रही है और सरकार समिति की रिपोर्ट का इंतजार कर रही है।

खोजी जा रही विदेशी घुसपैठ की काट

विदेशी साइट्स की देश में गहरी घुसपैठ की काट भी खोजी जा रही है। बहुत जल्द सरकारी कर्मचारियों के लिए आधिकारिक संदेशों के आदान प्रदान के लिए एक इंस्टैंट सोशल मीडिया एप की बाध्यता लागू की जाएगी। पहले चरण में यह केंद्र सरकार के अधिकारियों के लिए होगा।

सूचनाओं के लीक होने का भी खतरा

बाद में राज्यों के लिए लागू करके इसे निजी क्षेत्र के लिए भी खोला जाएगा। इस एप पर दी गई किसी भी सूचना के देश से बाहर जाने का खतरा नहीं होगा इसका सारा डाटा नेशनल इंफॉरमेटिक्स सेंटर (एनआइसी) के तहत निर्मित केंद्र में रखा जाएगा। भारत सरकार के काम काज में वाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर की सक्रियता को कम करने का यह पहला कदम साबित हो सकता है।

भारत के पास हों अपनी कंपनियां

सूचना प्रोद्योगिकी (आइटी) सेक्टर के विशेषज्ञ मनोज गोइराला ने बताया कि जब तक भारत के पास अपना गूगल, ट्विटर, फेसबुक नहीं होगा तब तक विदेशी कंपनियों की दखलअंदाजी का खतरा नहीं टलेगा। ट्रंप गलत हो सकते हैं लेकिन ट्विटर ने जो कदम उठाया है वह उसकी ताकत को दिखाता है।

देश की संप्रभुता के लिए खतरनाक

इन कंपनियों की बढ़ती ताकत किसी भी देश की संप्रभुता के लिए खतरनाक है। चीन ने इन संभावनाओं को देख कर इन सभी कंपनियों को प्रतिबंधित किया और अपना प्लेटफार्म बनाया। गोइराला बताते हैं कि वर्ष 2012-13 में सैम पित्रोदा की अध्यक्षता वाली ई-गवर्नेंस समिति ने इस तरह की कई सिफारिशें की थीं जिन पर अब गंभीरता से ध्यान दिए जाने की जरूरत है।

कंपनियों पर नजर रखने की दरकार

पीएचडी चैंबर की आइटी समिति के अध्यक्ष एवं सरकार की तरफ से स्थापित निकाय टीईपीसी (टेलीकॉम इक्विपमेंट एंड सर्विसेज एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल) के संदीप अग्रवाल का कहना है कि हमारे पास ऐसी तकनीकी बॉडी होनी चाहिए जो इन कंपनियों के व्यापक रवैये पर नजर रख सके। इन कंपनियों को खुला छोड़ना आगे खतरनाक हो सकता है। हाल ही में सरकार ने नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (एनआइए) को टेलीकॉम सेक्टर को लेकर बड़े अधिकार दिए हैं। देखना होगा कि आगे सरकार का रुख क्या होता है।