गुरुनानक देव का 551 वांं प्रकाशोत्सव पर्व काशी में धूमधाम से मनाया जा रहा है। कार्तिक पूर्णिमा पर प्रकाशोत्‍सव की तैयारियों के लिए काशी में गुरु नानक से जुड़े गुरुद्वारा गुरुबाग को अनोखे ढंग से साज सज्‍जा के साथ प्रकाशित किया गया है। गुरु नानक के प्रकाशोत्‍सव के लिए गुरुद्वारा में सबद कीर्तन और गुरुवाणी गूंज रही है। ‘सतगुरु नानक प्रगट्या, मिट्टी धुंध जग चानन होया…’, ‘निर्गुण राख लिया सतन का सदका…’ ‘नानक नाम जहाज है चढे़ सो उतरे पार…’ आदि भजन और निर्गुण गीत गुरुनानक के प्रकाश पर्व पर काशी को भी प्रकाशित कर रहे हैं।

हालांकि, कोरोना वायरस संक्रमण के खतरों के बीच गुरुबाग में आस्‍थावानों की कमी भले हो लेकिन आस्‍था के स्‍वर अनवरत परिसर में गूंज रहे हैं। गुरुद्वारा गुरुबाग की आस्‍था में पीएम नरेंद्र मोदी भी सिर झुका चुके हैं तो कबीरपंथी काशी के लिए यह स्‍थल किसी तीर्थ से कम नहीं है। सोमवार की सुबह से ही आस्‍थावानों का रेला गुरुद्वारे में उमड़ा और लंगर छककर गुरु की महिमा का भी बखान किया।

काशी में गुरुनानक देव की महिमा 

गुरुद्वारा गुरुबाग के मुख्य ग्रंथी भाई सुखदेव सिंह ने जागरण को बताया कि फरवरी माह में वर्ष 507 में शिवरात्रि के मौके पर गुरु नानक देव काशी की धार्मिक यात्रा पर थे। गुरुबाग गुरुद्वारे के स्थान पर उस समय यहां सुंदर और हरा भरा बाग था। इसी स्थान पर गुरु नानक देव सबद-कीर्तन कर रहे थे, जिससे प्रभावित होकर बाग के मालिक पंडित गोपाल शास्त्री उनके शिष्य भी बन गए। कई विद्वानों को उस दौरान शास्त्रार्थ में पराजित करने वाले पंडित चतुरदास भी गुरु नानक देव के पास ईर्ष्‍या के वशीभूत होकर पहुंचे। इस पर गुरु नानक ने मनोभावों को समझते हुए उनसे कहा कि – ‘पंडित चतुरदास आप मुझसे कुछ प्रश्न करने हैं तो इस बाग के भीतर एक कुत्ता है, आप उसे यहां लाइए, वही आपके प्रश्नों का उत्तर देगा।’

गुरुनानक का इशारा पाकर वह कुछ ही दूर गए थे कि उन्हें कुत्ता मिला, जिसे वे लेकर गुरुनानक के पास आ गए। गुरु नानक देव ने जब उस पर दृष्टि डाली तो कुत्ते के स्थान पर धोती, जनेऊ, तिलक और माला धारण किए एक विद्वान नजर आया। लोगों के पूछने पर बताया कि मैं भी एक समय विद्वान था, लेकिन मेरे भीतर ईष्या और अहंकार भरा हुआ था। काशी में आने वाले सभी साधु, संत, महात्मा, जोगी, सन्यासी को अपने शास्त्रार्थ से निरुत्तर कर यहां से मैं भगा देता था। एक बार एक महापुरुष से काफी देर तक वाद-विवाद करता रहा तो उन्होंने मेरे हठधर्मिता पर मुझे शाप दे दिया। माफी मांगने पर कहा कि कलयुग में गुरु नानक जी का आगमन होगा, उनकी कृपा से तेरा उद्धार होगा।

गुरुकृपा से संगत हुई निहाल

गुरु नानक देव ने उस समय लोगों को उपदेश देते हुए कहा कि कर्म कांड और बाह्य आडंबर में लोग लिप्त हैं, लेकिन इनसे मोक्ष की प्राप्ति तब तक संभव नहीं जब तक कि निश्चय संग परम पिता का ध्‍यान न किया जाए। गुरु गुरु के अलौकिक वचनों को सुन सभी के शीश गुरु चरणों में झुक गए, वहीं पंडित चतुरदास का मन भी

अति निर्मल हो गया। इस पूरे घटनाक्रम को देख रहे पंडित गोपाल शास्त्री ने कहा कि गुरु के चरण पडऩे से मेरा यह बाग पवित्र हो गया है। इसलिए यह बाग आपके चरणों में ही अब समर्पित है। मान्‍यता है कि उसी दिन से यह बाग ‘गुरुबाग’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया और गुरुनानक की कथाओं में अमिट हो गया।

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