चीन ने अपने एक पत्रकार को सोशल मीडिया पर बैन कर दिया है। बिजनेस जर्नलिस्‍ट वू शियाबाओ जिनकी चीनी माइक्रो ब्‍लॉगिंग साइट वीबो पर जबरदस्‍त फालोइंग है, देश की अर्थव्‍यवस्‍था पर अपने एक खुलासे के बाद परेशानी में आ गए हैं। शियाबाओ ने कुछ दिनों पहले कहा था कि चीन एक बार फिर से बड़ी मंदी की तरफ बढ़ रहा है। उनका कहना था कि देश की स्थिति फिर से सन् 1931 की तरफ जाती हुई दिख रही है जब चीन की अर्थव्‍यवस्‍था में तेजी से गिरावट दर्ज की गई थी। उनके अलावा दो और यूजर्स को वीबो ने ‘नकारात्मक और हानिकारक जानकारी फैलाने’ के आरोप में प्रतिबंधित कर दिया है।

शियाबाओ ने बताई हकीकत

शियाबाओ को 47 मिलियन लोग वीबो पर फॉलो करते हैं। चीन के नेशनल ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2022 में रोजगार सब्सिडी में 980 मिलियन युआन यानी 135.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्‍यादा की धोखाधड़ी की गई थी। जिस दिन यह रिपोर्ट आई शियाबाओ को उसी दिन प्रतिबंधित कर दिया गया। हांगकांग से निकलने वाले अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्‍ट ने कहा है कि अभी यह स्‍पष्‍ट नहीं है कि कौन सी सोशल मीडिया साइट पर शियाबाओ की किस टिप्‍पणी की वजह से उनका अकाउंट सस्‍पेंड किया गया है।

रोजगार की कमी

इससे पहले मई में शियाबाओ ने एक और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जियाहोंगशु पर लिखा था कि ‘औद्योगिक अर्थव्यवस्था सुस्त है और निजी उद्यमियों में सामूहिक रूप से निवेश करने की इच्छा कम होती जा रही है।’ वू ने अपने आधिकारिक जियाहोंगशु चैनल पर कहा, ‘ विनिर्माण और रियल एस्टेट, जो परंपरागत रूप से लाखों चीनियों को रोजगार देते हैं, अब कमजोर पड़ गए हैं और नए रोजगार के अवसर देने में असमर्थ हैं।’ मंगलवार तक, वू की लेटेस्‍ट पोस्‍ट उनके वीबो अकाउंट पर दिखाई दे रही थी, जहां उनके कई मिलियन फॉलोअर्स हैं। शियाबाओ अप्रैल 2022 से इस साइट पर थे।

दशकों बाद सबसे मुश्किल दौर

चीन में इस समय युवाओं को दशकों बाद सबसे मुश्किल दौर का सामना करना पड़ रहा है। मई के महीने में देश में युवा-बेरोजगारी दर रिकॉर्ड 20.8 फीसदी पर पहुंच गई। जबकि जुलाई और अगस्त में इसमें और इजाफा होने की आशंका जताई गई है। इससे अलग 11.58 फीसदी युवा यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट होकर बाहर निकलने को तैयार हैं। ऐसे में इस दर में और ज्‍यादा इजाफा होगा। पिछले महीने शहरों में बेरोजगारी दर पर हुए सर्वे के मुताबिक इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ और यह 5.2 फीसदी पर ही अटकी है। लेकिन हाल के महीनों में बड़ी टेक्‍नोलॉजी कंपनियों में लगातार छंटनी हो रही है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्‍ट ने लिखा है कि ऐसा लगता है कि चीन में महामारी के बाद आर्थिक सुधार की गति एक छोटे से उछाल के बाद खो गई है।

क्‍या हुआ था 1931 में

जापान की यूनिवर्सिटी ऑफ टोक्‍यो के ग्रेजुएट स्‍कूल ऑफ इकोनॉमिक्‍स में एशियन हिस्‍ट्री की प्रोफेसर तोमोको शिरोयामा ने सन् 1920 के दशक में जब यूरोप, अमेरिका और एशिया की अर्थव्‍यवस्‍थाएं चौपट रही थीं तो चीन की अर्थव्‍यवस्‍था तेजी से आगे बढ़ रही थी। सन् 1927 में देश के राष्‍ट्रवादी शासन ने एक नए मुद्रा तंत्र को थोड़े बदलाव के साथ अपनाया। जहां अमे‍रिका, यूरोप और जापान सोने पर निर्भर थे तो चीन चांदी की मुद्रा पर आगे बढ़ रहा था। मगर चांदी की मुद्रा को अंतरराष्‍ट्रीय कीमत में कैसे बदला जाए, चीन के पास न तो जरूरी ज्ञान था और न ही जरूरी आधारभूत ढांचा। ऐसे में सन् 1920 में आर्थिक तरक्‍की का आनंद उठाने वाले चीन ने सन् 1931 से बुरा दौर देखना शुरू किया। देश के उद्योग और बाजार चौपट होते जा रहे थे। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर आगे क्‍या होगा।

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