बिहार चुनाव के अंतिम जंग में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम (आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) ने विपक्षी महागठबंधन के खेमे में हलचल मचा रखी है। सीमांचल और कोसी क्षेत्र में दो दर्जन सीटों पर एआइएमआइएम चुनाव लड़ रही है। मुस्लिम बहुल इलाकों में ओवैसी मुसलमान वोटरों को अपनी ओर खींचने के लिए आक्रमकता के साथ सारे पैतरे अपनाए हैं जो महागठबंधन के खिलाफ अधिक है जबकि एनडीए खेमे के लिए राहत वाली बात है क्योंकि वोटों के ध्रुवीकरण से एनडीए को अपना फायदा दिख रहा है। चुनाव विश्लेषक भी मान रहे हैं कि ओवैसी फैक्टर चुनाव में बड़ा प्रभाव डालने पर महागठबंधन को नुकसान तय है क्योंकि ओवैसी ने सोच-समझकर मुस्लिम, यादव और अनुसूचित जाति के उम्मीदवार उतारे हैं जो महागठबंधन के वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश है।
ओवैसी की चाल, विपक्षी खेमे में बुरा हाल
चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि असदुददीन ओवैसी ने 24 में से 6 सीटों से दलितों, ओबीसी और आदिवासियों को टिकट देकर एकता का संदेश देने की कोशिश की है तो वहीं यादव, दलित और मुस्लिम मतदाताओं में सेंध लगाने की चाल भी चली है। मुस्लिम और यादव मतदाता राजद के परंपरागत वोट बैंक माने जाते हैं। ग्रैंड यूनाइटेड सेक्यूलर फ्रंट में शामिल ओवैसी ने मायावती की बसपा, उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा और देवेंद्र यादव की समाजवादी जनता दल से वोटरों पर भी भरोसा जताया है। चुनाव विश्लेषक हेमंत के मुताबिक सीमांचल की 19 सीटों पर मुसलमान मतदाता जहां निर्णायक होते हैं वहीं कोसी के 18 सीटों पर भी मुस्लिम वोटर चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं। राजनीति के जानकार व किशनगंज के निवासी रत्नेश्वर झा के मुताबिक ओवैसी और देवेंद्र यादव के साथ आने के बाद तय है कि यादव और मुस्लिम वोट बैंक का बिखराव होगा, जो महागठबंधन के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। फ्रंट के उम्मीदवारों को जो वोट मिलेंगे, वह महागठबंधन के वोट माने जाते रहे हैं। इसलिए फ्रंट जितना भी वोट पाएगा, वह महागठबंधन को ही नुकसान पहुंचाएगा।
ओवैसी की आक्रमक शैली से एनडीए को राहत
कहा जा रहा है कि असदुद्दीन ओवैसी ने प्रचार में एनआरसी जैसे मुद्दे को उछाल कर सीमांचल और कोसी इलाके मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया है। इससे एनडीए को फायदा मिलता दिख रहा है। चुनाव विश्लेषक भी मान रहे हैं कि महागठबंधन के अलावा एनडीए के खिलाफ ओवैसी की प्रचार शैली आक्रामक और ध्रुवीकरण पैदा करने वाली रही है, ऐसे में ओवैसी का प्रभाव बिहार के अन्य क्षेत्रों में भी पड़े तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। यह तय है कि सभी मुसलमान ओवैसी को वोट नहीं देंगे और वोटों का बंटवारा होगा।