द्रविड़ शैली का बेहद नायाब नमूना है तिरुपति बालाजी मंदिर, जो भारत ही नहीं दुनियाभर में है मशहूर

भारत को मंदिरों का देश यूं ही नहीं कहा जाता। यहां पर कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जो भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मशहूर हैं। इन्हीं में से एक तिरुपति बालाजी मंदिर भी है। जो आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के तिरुमाला पहाड़ियों पर स्थित है।

भारत में कई ऐसे मंदिर हैं, जहां हमेशा दर्शन करने वालों का तांता लगा रहता है। इन्हीं मंदिरों में शुमार है आंध्र प्रदेश का तिरुपति बालाजी मंदिर। बालाजी या भगवान वेंकटेश्वर को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। इसलिए इस मंदिर को श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां भगवान विष्णु अपनी पत्नी मां लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं। तिरुमाला की पहाड़ियों पर बना यह भव्य मंदिर भगवान विष्णु के 8 स्वयंभू मंदिरों में से एक है।

अद्भूत है इस मंदिर की वास्तुकला

यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्पकला का एक नायाब नमूना है। इस मंदिर का निर्माण दक्षिण द्रविड़ शैली में किया गया है। मंदिर का मुख्य भाग यानी अनंदा निलियम देखने में काफी आकर्षक है। अनंदा निलियम में भगवान श्री वेंकटेश्वर की सात फुट ऊंची प्रतिमा विराजमान है। जिसका मुख पूर्व की तरफ बना हुआ है। गर्भ गृह के ऊपर का गोपुरम पूरी तरह से सोने की प्लेट से ढका हुआ है। मंदिर के तीनों परकोटों पर स्वर्ण कलश लगे हुए हैं। मंदिर के मुख्य द्वार को पड़ी कवाली महाद्वार भी कहा जाता है। जिसका एक चर्तुभुज आधार है। मंदिर के चारों तरफ परिक्रमा करनेके लिए एक परिक्रमा पथ भी है, जिसे संपांगी मंडपम, सलुवा नरसिम्हा मंडपम, प्रतिमा मंडपम, ध्वजस्तंब मंडपम, तिरुमाला राया मंडपम और आइना महल समेत कई बेहद सुंदर मंडप भी बने हुए हैं।

यहां रोज बनते हैं 3 लाख लड्डू

यहां की गुप्त रसोई को पोटू के नाम से जाना जाता है। इस रसोई में रोज प्रसाद के लिए 3 लाख लड्डू बनाए जाते हैं। इन लड्डूओं को बनाने के लिए यहां के कारीगर 300 साल पुरानी पारंपरिक विधि का प्रयोग करते हैं। खास बात यह है कि ये लड्डू केवल पुंगनूर प्रजाति की गाय के दूध से बने मावे से ही बनाए जाते हैं। ऐसा सालों से होता आ रहा है। चित्तूर आंध्र प्रदेश स्थित पलमनेर फार्म हाउस में कुल 130 पुंगनूर गाय हैं। यहीं से दूध रोजाना तिरुपति मंदिर को भेजा जाता है। वहीं मंदिर में रोजाना तीन बार प्रसाद तैयार होता है। लड्डू के अलावा बाकी प्रसाद निःशुल्क दिया जाता है। तीनों समय चावल के साथ प्रसाद बनता है।

खुद प्रकट हुई थी यहां की मूर्ति

मान्यता है कि यहां मंदिर में स्थापित भगवान वेंकटेश्वर की काले रंग की दिव्य मूर्ति किसी ने बनाई नहीं बल्कि वह जमीन से खुद ही प्रकट हुई थी। स्वयं प्रकट होने की वजह से इसकी बहुत मान्यता है। माना जाता है कि मंदिर में मौजूद इस प्रतिमा से समुद्री लहरों की आवाज सुनाई देती है। साथ ही वेंकटांचल पर्वत को लोग भगवान का ही स्वरूप मानते हैं और इसलिए उस पर जूते लेकर नहीं जाया जाता है।

होता है बालों का दान

मान्यता है कि तिरुपति बालाजी को भगवान विष्णु का ही रूप माना जाता है। इन्हें प्रसन्न करने पर देवी लक्ष्मी की कृपा अपने-आप ही मिलती है और सारी परेशानी खत्म हो जाती है। मान्यता है कि जो व्यक्ति अपने मन से सभी पाप और बुराइयों को यहां छोड़ जाता है, उसके सभी दुख देवी लक्ष्मी खत्म कर देती हैं। इसलिए यहां अपनी सभी बुराइयों और पापों के रूप में लोग अपने बाल छोड़ जाते हैं। साथ ही कोई मन्नत पूरी होने पर भी श्रद्धालु यहां अपने बाल दान करते हैं।