‘पैसे देकर हम कार खरीद सकते हैं, संस्कार नहीं’

भारत के जाने-माने अध्यात्म गुरु गौरांग दास ने संबोधित किया। इस्कॉन, मुंबई से जुड़े गौरांग दास आईआईटी स्नातक हैं। उन्होंने योग और अध्यात्म के विषय पर अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि किस तरह ये दोनों विषय आज सबसे ज्यादा प्रासंगिक और जरूरी हैं…

सोशल मीडिया के जमाने में समस्या यह आ गई है कि लोग यह नहीं देखते कि उनके पास क्या है, लोग देखते हैं कि दूसरों के पास क्या है। कम्पेयरिंग, कम्प्लेनिंग एंड क्रिटिसाइजिंग। यानी तुलना, शिकायत और आलोचना। ये तीन तरह के कैंसर हैं। इससे बचने की जरूरत है।’ यह कहना है जाने-माने अध्यात्म गुरु गौरांग दास का। वे इस्कॉन जीबीसी और गोवर्धन इको विलेज के निदेशक हैं। पढ़ें उनका दृष्टिकोण, उन्हीं के शब्दों में…

‘योग और अध्यात्म हम सभी के जीवन में महत्वपूर्ण क्यों हैं। आप सभी जानते हैं कि भारत में लगभग 70 हजार अस्पताल हैं, लेकिन 20 लाख मंदिर हैं। कोविड काल में कई कारोबार बंद हुए, एक भी मंदिर बंद नहीं हुआ। यहां तक कि कोविड के दौर के बाद मंदिरों में भीड़ तीन से पांच गुना बढ़ गई। प्रश्न उठता है कि भारत इतना आध्यात्मिक देश है, कई पीढ़ियों से भारत को इस क्षेत्र में विश्व गुरु माना गया है, लेकिन युवा पीढ़ी को हम कैसे आश्वस्त कराएं कि योग और अध्यात्म हमारे जीवन का अभिन्न अंग है।’

मन अपने आप में विकराल स्वरूप लेता है…
‘उजाला देने वाली अग्नि होती है। यानी फायर। फायर का पहला एफ है फोकस। मन भटकता है, मन परेशान करता है। इसके लिए चाहिए फोकस। आज 30 करोड़ लोग अवसाद के शिकार हैं। प्रतिदिन 370 लोग आत्महत्या कर रहे हैं। मैं जब आईआईटी में था, तब मेरा दोस्त टॉपर था। अचानक उसने एक दिन आत्महत्या की कोशिश की। मैं चकरा गया। मैंने कहा कि आप तो टॉपर हो, आपने यह प्रयास क्यों किया। वह कहता है कि हमेशा मुझे गोल्ड मेडल की आदत थी, इस बार सिल्वर मिला तो मुझसे रहा गया नहीं गया। मैं चौंक गया। लोग तो आईआईटी में आने के लिए मरते हैं, आप यहां अंदर आकर मरने का प्रयास कर रहे हो। उसी बैच में मेरे बाकी मित्र थे, वे तीन-तीन चार विषय में फेल हो गए थे, लेकिन आराम से हंसते-खेलते घूम रहे थे। मैं उन्हें भी देखकर चकरा गया। आपको तो तनाव में होना चाहिए। इस मनोचेतना के पीछे रहस्य क्या है। उन्होंने कहा कि हमारा फलसफा एकदम साफ है। कॉलेज में घुसना अपना काम है, निकालना कॉलेज का काम है। मैं इस फलसफे का प्रचार नहीं करता, लेकिन समझने वाली बात है कि मन अपने आप में विकराल स्वरूप लेता है। जब तक हम फोकस नहीं करेंगे, तब तक हम कोई भी अपनी बात को पूर्ण नहीं कर पाएंगे। इसलिए विचारों को केंद्रित करें।’

तुलना करने वाला समाज बन गया है…
‘यह विज्ञापन का जमाना हो गया है। एक हमारे मित्र किसी कॉन्फ्रेंस में गए। किसी ने बिजनेस कार्ड दिया। नाम के नीचे शिक्षा लिखी हुई थी पीएचडी, बीएफ। मतलब पूछा तो बताया कि पीएचडी बट फेल। पूछने पर कहा कि हमारे पिताजी की इच्छा थी कि हम पीएचडी बनें, लेकिन तीन साल बाद पता चला कि हमसे होगा नहीं। इसलिए हम निकल गए। फिर भी लोग बोलते थे तो मैंने कार्ड पर सच लिख दिया। अब लोगों को लगता है कि यह पीएचडी के आगे की कोई डिग्री है। जितना हम कम्पेयर करेंगे, उतना हम यह नहीं जान पाएंगे कि हम क्या कर सकते हैं। जो कर सकते हैं, वह भी ठीक तरह से नहीं कर पाएंगे।’

‘मुंबई में बहुत बड़ा फाइव स्टार होटल है। वहां वही जा पाएगा, जो पैसे खर्च कर सकता है। उस होटल के ठीक बाहर एक समोसे वाले ने अपना ठेला लगा दिया और उसका नाम दे दिया होटल वाइस प्रेसिडेंट है। उसका कहना है कि जो प्रेसिडेंट में न जा पाए, वह यहां आकर खा ले। आज समाज ऐसे बन गया है कि लोग हर जगह तुलना ही कर रहे हैं।’

‘भारत की सबसे बड़ी शक्ति है, उसका संस्कार। पैसे देकर हम कार खरीद सकते हैं, लेकिन पैसे देकर संस्कार नहीं खरीद सकते। इसलिए भारत की विशेषता है भारत का संस्कार है। इसलिए तुलना न करें, अपनी शक्तियों पर ध्यान केंद्रित हैं। महाभारत की कथा में पांच पांडव के बारे में सब जानते हैं। इनमें से एक हैं भीमसेन। एक दिन अचानक उनके मन में विचार आया कि विभिन्न प्रकार के संगीत के उत्सवों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अर्जुन को ही न्योता मिलता है। मुझे हमेशा बल के इस्तेमाल के लिए भेजा जाता है। भीमसेन ने कहा कि मैं भी संगीतकार बनूंगा। दो-तीन लोगों ने समझाने की कोशिश की, लेकिन ये आपके बस की बात नहीं है। आपके पास शारीरिक बल है, उस पर ध्यान केंद्रित करें। भीम ने कहा कि नहीं, हम भी अर्जुन की तरह बनेंगे। प्रतिदिन भीमसेन ऐसा चिल्लाते थे कि उन्हें सुनकर पूरा इंद्रप्रस्थ कांप जाता था। शिकायत युधिष्ठिर के पास पहुंची, लेकिन उन्होंने कहा कि भीम को कौन समझाए। फिर द्रौपदी भीमसेन से कहती हैं कि यह संगीत बड़ा ही कोमल स्वर के साथ गाया जाता है। इतना अभ्यास करना हो तो किसी वन में पर्वतों पर जाना होगा। भीमसेन मान गए। एक दिन गांव के एक व्यक्ति आया और भीम को देखकर भाग गया। भीम ने पूछा तो उसने कहा कि मैं गांव का धोबी हूं। आपकी आवाज सुनकर लगा कि मुझे लगा कि मेरा गधा मिल गया। उस दिन भीम संगीत से रिटायर हो गए। इसलिए फायर के अंदर पहला एफ है फोकस।’

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