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टोक्‍यो (रॉयटर्स)। जापान के एक कदम से पूरी दुनिया के विशेषज्ञ काफी चिंतित हैं। इसकी वजह बना है फुकुशिमा दाइची न्‍यूक्लियर प्‍लांट। दरअसल, ये प्‍लांंट मार्च 2011 में आए जबरदस्‍त भूकंप और फिर आई सूनामी से बर्बाद हो गया था। इसके बाद से जापान की बिजली कंपनी टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी के पास दस लाख टन रेडियोधर्मी पानी जमा हो गया है। अब इसके इसी वेस्‍ट को समुद्र में बहाने की आशंका से विशेषज्ञ चिंतित हैं। हालांकि जापान के उद्योग मंत्री हिरोशी काजियामा ने कहा है कि सरकार ने अब तक कोई फैसला नहीं लिया है लेकिन जल्द ही ऐसा कर सकती है। स्थानीय मीडिया में चल रही खबरों के मुताबिक सरकार इस तरह का फैसला ले चुकी है। काजियामा की मानें तो परमाणु संयंत्र को जल्द से जल्द साफ करने की जरूरत है। हालांकि इसकी कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार जापान सरकार के सलाहकारों ने पानी को समुद्र में छोड़ने का प्रस्ताव दिया है जिसे सरकार ने स्वीकार भी कर लिया है। औपचारिक रूप से इसकी घोषणा करने से पहले सरकार मछुआरों के साथ बात करना चाहती है। उनकी चिंताओं पर विचार करने के लिए एक पैनल के गठन की भी बात चल रही है।

 

आपको बता दें कि 2021 में जापान में ओलंपिक गेम्‍स होने हैं। माना जा रहा है कि सरकार इसको लेकर इस तरह के फैसले ले रही है। हालांकि फुकुशिमा में मौजूद पानी को हटाने में दशकों का वक्त लग सकता है। ध्‍यान रहे कि ओलंपिक खेल 2020 में ही आयोजित होने थे लेकिन कोरोना के कारण इन्हें स्थगित करना पड़ा। 2021 में इसका आयोजन फुकुशिमा न्‍यूक्लियर प्‍लांट से महज 60 किलोमीटर दूर होने हैं। ऐसे में खिलाड़ी भी चिंतित हैं। रेडियोएक्टिव कंटेमिनेटेड वाटर को इस तरह से समुद्र में डालना जापान को और मुश्किल में डाल सकता है। इसके खिलाफ स्‍थानीय मछुआरे भी खड़े हो सकते है और पड़ोसी देश भी नहीं चाहेंगे कि समुद्र के रास्ते उन तक यह जहरीला पानी पहुंचे। जापान में मछुआरों के संघ पहले ही सरकार को पत्र लिख कर ऐसा ना करने की अपील कर चुका है। जापान यूं भी व्हेल मछली के शिकार के चलते दुनिया भर में बदनाम हैं। मछुआरों के संघ ने अपनी चिट्ठी में लिखा है कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि बदलने के लिए पिछले सालों में जितना काम किया है, सरकार के इस कदम से उसपर पानी फिर जाएगा।

गौरतलब है कि फुकुशिमा का रेडियोएक्टिव पानी पिछले एक दशक से चर्चा के केंद्र में रहा है। इसकी वजह से दक्षिण कोरिया ने फुकुशिमा क्षेत्र से आने वाले सीफूड पर पाबंदी लगाई हुई है। इस पानी की निकासी को लेकर वहां की सरकार ने जापान से स्‍पष्‍टीकरण भी मांगा था। फुकुशिमा का भूजल लगातार ऊपर आ रहा है जो रिएक्टर के निचले तलों में पहुंच जाता है। इस पानी को फिल्टर करने के बाद जमा कर रखा जा रहा है।  दुर्घटनाग्रस्त रिएक्टर को ठंडा करने के लिए पानी की जरूरत होती है।

फिलहाल हर दिन इसमें 170 टन पानी और जमा हो रहा है। इस गति से 2022 तक और पानी रखने की जगह नहीं बचेगी। फिलहाल फुकुशिमा में एक हजार से भी ज्यादा टैंक रेडियोधर्मी पानी से भरे हुए है। पानी को समुद्र में डालने के लिए कंस्ट्रक्शन की जरूरत होगी और परमाणु एजेंसी की अनुमति भी चाहिए। इसमें दो साल तक का समय लग सकता है।